Sunday, November 9

विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, PMLA के खिलाफ याचिका खारिज, अदालत ने कहा- ED को समन और गिरफ्तारी का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट से विपक्ष को बड़ा झटका लगा है। जिस ईडी की ओर से की जा रही कार्रवाई का विपक्ष लगातार विरोध कर रहा है, उसे देश की शीर्ष अदालत ने जायज ठहराया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत गिरफ्तारी के ED के अधिकार को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा, ED की गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के कई प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने ये फैसला सुनाया।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडी का गिरफ्तार करने और समन भेजने का अधिकार बिल्कुल सही है। इसके साथ ही, पीएमएलए कानून के खिलाफ दायर याचिका को भी सर्वोच्च अदालत की ओर से रद्द कर दिया गया है।

इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कानून में फाइनेंस बिल के जरिए किए गए बदलाव के मामले को 7 जजों की बेंच में भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जांच के दौरान ED, SFIO, DRI अधिकारियों के सामने दर्ज बयान भी वैध सबूत हैं।

इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत की बेंच ने कहा, आरोपी को ECIR (शिकायत की कॉपी) देना भी जरूरी नहीं है। यह काफी है कि आरोपी को यह बता दिया जाए कि उसे किन आरोपों के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है।

बेल की कंडीशन को भी रखा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को दौरान बेल यानी जमानत की कंडीशन को भी बरकरार रखा है। दाखिल याचिका में बेल की मौजूदा शर्तों पर भी सवाल उठाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क के साथ खारिज की याचिका
शीर्ष अदालत ने इस याचिका को खारिज करने के लिए खास तर्क दिया। कोर्ट ने कहा कि, मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है। उसे मूल अपराध के साथ जोड़ कर ही देखने की दलील खारिज की जा रही है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि, सेक्शन 5 में आरोपी के अधिकार भी संतुलित किए गए हैं। ऐसा नहीं कि सिर्फ जांच अधिकारी को ही पूरी शक्ति दे दी गई है।सर्वोच्च न्यायाल ने इन धाराओं को बताया वैध

सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए जिन धाराओं को वैध बताया उसमें सेक्शन 18 प्रमुख रूप से शामिल है। इसके साथ ही सेक्शन 19 में हुआ बदलाव भी करार किया है।

सेक्शन 24 भी वैध है साथ ही 44 में जोड़ी गई उपधारा भी सही बताई गई। दरअसल, दायर याचिका में PMLA के कई प्रावधान कानून के खिलाफ बताए गए थे।