पाकिस्तान में सियासी घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहे हैं। इमरान खान की गठबंधन सरकार से दो दलों ने समर्थन वापस ले लिया है, इससे उनकी विदाई तय हो गई है। हालांकि, संसद में बहुमत गंवा चुके इमरान खान अब भी अपनी सरकार बचाने की कोशिशों में जुटे हैं।
पाकिस्तान के मौजूदा सियासी हालात, इमरान खान के नाकाम होने की वजहों और वहां के सियासी घटनाक्रम का दक्षिण एशिया के सुरक्षा हालात पर क्या असर हो सकता है, इसे समझने के लिए हमने पाकिस्तान के दो वरिष्ठ पत्रकारों से बात की। इनमें एक, अरशद यूसुफजई चेवनिंग फैलो हैं और पाकिस्तान के हालात को बारीकी से समझते हैं। वहीं पत्रकार वजाहत काजमी पाकिस्तान के चर्चित टीवी होस्ट हैं।
अभी के सियासी हालात में इमरान खान के पास क्या विकल्प हैं?
इस सवाल पर वजाहत काजमी कहते हैं, “पाकिस्तान में राजनीतिक हालात तेजी से बदल रहे हैं और प्रधानमंत्री इमरान खान के विकल्प सीमित होते जा रहे हैं। अभी ऐसा लगता है कि इमरान के पास दो ही विकल्प हैं। पहला तो ये कि वे इस्तीफा दे दें और दूसरा ये कि वे किसी तरह अपने गठबंधन की संख्या पूरी कर लें। मौजूदा हालात में दूसरा विकल्प असंभव नजर आ रहा है।”
इमरान खान पाकिस्तान के चर्चित क्रिकेटर रहे हैं। पाकिस्तान को वर्ल्ड कप जिता चुके हैं। 2018 में जब वो सत्ता में आए थे तो उन्होंने पाकिस्तान को नई उम्मीद दी थी, लेकिन अब साढ़े तीन साल बाद वो एक बेगाने की तरह सत्ता से बाहर होते दिख रहे हैं।
‘नया पाकिस्तान’ बनाने का वादा करने वाले इमरान खान भी पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार के कार्यकाल पूरा न कर पाने के मिथक को नहीं तोड़ पाए।
इसकी वजह समझाते हुए अरशद युसुफजई कहते हैं, “इमरान खान करीब साढ़े तीन साल सत्ता में रहे। इस दौरान लगातार वो अपने आप को मुस्लिम वर्ल्ड या मुस्लिम उम्मा (दुनियाभर के मुसलमान) के नेता के तौर पर पेश करते रहे, लेकिन ना ही उन्होंने अपने देश के लिए कुछ खास किया और ना ही मुस्लिम वर्ल्ड के लिए कुछ कर सके।”
युसुफजई कहते हैं, “इमरान खान के साथ एक मसला और ये हुआ कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार चली गई। अफगानिस्तान में तालिबान के वापस आने से पाकिस्तान पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। पश्चिमी देश और पूरी दुनिया पाकिस्तान से अधिक भूमिका निभाने की मांग करने लगी। इमरान खान इस दबाव को भी ठीक से नहीं झेल पाए।”
क्या सेना ने खींच लिए हाथ
पाकिस्तान के बारे में एक आम राय ये है कि वहां सेना के समर्थन के बिना सरकार चलाना नामुमकिन है। इमरान खान जब सत्ता में आए तो कहा जा रहा था कि उनके पीछे भी सेना ही है। उन्हें सेना का साथ मिलता भी रहा, लेकिन अब सेना ने भी हाथ पीछे खींच लिए हैं।
अरशद युसुफजई कहते हैं, “इमरान खान की सरकार को करीब साढ़े तीन साल हो गए हैं। इस दौरान पाकिस्तान की न्याय व्यवस्था और एस्टेब्लिशमेंट (सेना और खुफिया एजेसियां) इमरान खान सरकार का पूरा समर्थन करती रही।
यहां तक कहा जाता रहा है कि इमरान खान के समर्थक दल जैसे बलूचिस्तान अवामी पार्टी, ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस, पाकिस्तान मुस्लिम लीग- कायद-ए-आजम और मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट (MQM), को भी एस्टेब्लिशमेंट ने ही एकजुट किए रखा, लेकिन अभी जो पाकिस्तान में सियासी हालात हैं इनके पीछे कई कारण हैं।
सबसे बड़ा कारण ये है कि एस्टेब्लिशमेंट इमरान खान की हुकूमत की नाकामी से और गलत फैसलों से तंग आकर अब तटस्थ किरदार अदा कर रही है।”
सेना के अलावा पाकिस्तान के सभी वर्गों में इमरान के प्रति नाराजगी नजर आ रही है। यही वजह है कि उनके कट्टर फैंस को छोड़ दें तो पाकिस्तान में उनकी सरकार के जाने को लेकर आम लोगों में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं है।
युसुफजई कहते हैं, “इमरान की नाकामी का दूसरा बड़ा कारण ये है कि वह सरकार में रहने के बावजूद सियासी मैच्योरिटी हासिल नहीं कर पाए। वो वही किरदार अदा करते रहे जो वो विपक्ष में रहते हुए कर रहे थे। वो देश में कोई राजनीतिक आम सहमति नहीं बना सके। इमरान खान से इस समय पाकिस्तान के धार्मिक लोग भी नाराज हैं, उदारवादी भी नाराज हैं और राष्ट्रवादी भी नाराज हैं।”
आर्थिक मोर्चे पर भी पाकिस्तान नाकाम
इमरान खुशहाली का वादा करके सत्ता में आए थे, लेकिन उनकी सरकार के दौरान देश की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती रही और महंगाई बढ़ती गई। आम लोगों का जीना मुहाल हो गया। विदेशी कर्ज बढ़ता गया। ईंधन के दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गए। आर्थिक नाकामी को भी इमरान सरकार जाने की अहम वजह माना जा रहा है।
युसुफजई कहते हैं, “पाकिस्तान में इस हालिया सियासी हलचल के पीछे एक और कारण इमरान खान सरकार की नाकाम फाइनेंशियल टीम है। उन्होंने बीते साढ़े तीन साल में पांच वित्त मंत्री बदले, इसके बावजूद आर्थिक मोर्चे पर सरकार कुछ डिलीवर नहीं कर सकी। देश में कोई मेगा प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका। ना ही उनके पास देश को चलाने के लिए कोई विजन नजर आया। हालांकि, इमरान खान सरकार को देश के एस्टेब्लिशमेंट और जनता का पूरा समर्थन मिलता रहा।”
युसुफजई कहते हैं, “इस समय पाकिस्तान की जनता भी इमरान खान के खिलाफ है। पाकिस्तान में महंगाई इस हद तक बढ़ गई है कि लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। वो लोग जो इमरान खान का समर्थन कर रहे थे उनमें से भी अधिकतर लोग इमरान खान के खिलाफ हो गए हैं।”
मजबूत एकजुट विपक्ष के सामने अकेले इमरान
इमरान खान ने देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने का वादा किया था। विपक्ष के नेता नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) के निशाने पर रहे। नवाज शरीफ परिवार और उनका राजनीतिक विरोधी आसिफ अली जरदारी परिवार नैब के शिकंजे में आया।
भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में नैब ने नवाज शरीफ और जरदारी को गिरफ्तार किया। दोनों पार्टियों के कई और नेता भी गिरफ्तार हुए। विश्लेषक मानते हैं कि नैब की कार्रवाइयों से त्रस्त विरोधी दल इमरान खान के खिलाफ एकजुट हो गए और उन्हें सत्ता से हटाने में जुट गए।
युसुफजई कहते हैं, “एक और कारण जो बहुत ही अहम है वो है मजबूत विपक्ष। पिछले तीन साढ़े तीन साल में एस्टेब्लिशमेंट ने इस विपक्ष को दबाए रखा। लेकिन अब जब एस्टेब्लिशमेंट पूरी तरह तटस्थ हो गया है तो ये विपक्ष खुलकर सामने आ रहा है। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी, पाकिस्तान मुसलिम लीग-नवाज और जमीयत-उलेमा ए इस्लाम एक साथ आ गई हैं। इमरान के सभी विरोधी अब एकजुट हैं और उन्होंने मजबूत गठबंधन बना लिया है।”
इसके अलावा इमरान खान खुद अपनी पार्टी को एकजुट नहीं कर सके। वो उन्हीं लोगों को नाराज करते रहे जो मजबूती से उनके साथ थे। अब इमरान की अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के कई सांसद विदेशी कैंप में जाकर बैठ चुके हैं।
युसुफजई कहते हैं, “इसका सबसे बड़ा उदाहरण जहांगीर खान तरीन का है जो इमरान खान से नाराज हो चुके हैं। कहा ये भी जाता है कि तरीन के साथ सात-आठ सांसद हैं। अगर ये इमरान खान का साथ छोड़ते हैं तो उनकी सरकार पूरी तरह नाकाम हो जाएगी।”
अमेरिका की तरफ झुकने को मजबूर होगा पाकिस्तान?
पाकिस्तान पारंपरिक रूप से अमेरिका का सहयोगी रहा है, लेकिन इमरान खान बार-बार ये दावा करते रहे कि उन्होंने पाकिस्तान को अमेरिका के प्रभाव से मुक्त करने और स्वतंत्र विदेश नीति बनाने की कोशिश की।
वो चीन और रूस के करीब जाते नजर आए। जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, इमरान मॉस्को में राष्ट्रपति पुतिन के साथ थे। इमरान ने दुनिया को एक संदेश देने की कोशिश की।
विश्लेषक ये मानते हैं कि चीन भी बीते सालों में पाकिस्तान से बहुत खुश नहीं रहा है। युसूफजई कहते हैं, “इमरान खान की सरकार के दौरान पाकिस्तान में चीन के ड्रीम प्रोजेक्ट सी-पैक (ये पाकिस्तान में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का अहम हिस्सा है) पर भी काम बहुत धीमी गति से हुआ। ये बात सुनने में आती रही कि चीन पाकिस्तान की सरकार से बहुत खुश नहीं है। ये भी इमरान खान की सरकार के दौरान एक अहम मसला रहा।”
सवाल ये भी है कि क्या पाकिस्तान आखिरकार अमेरिका की तरफ फिर से झुकने को मजबूर हो जाएगा? वजाहत काजमी कहते हैं, “ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो पाकिस्तान अमेरिका का अहम सहयोगी देश रहा है और बाइडेन के राष्ट्रपति बनने से पहले तक पाकिस्तान अमेरिका का सहयोगी था।
हालांकि, एक सहयोगी होने के बावजूद पाकिस्तान को अमेरिका की तरफ से कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी अमेरिका के साथ संबंध नहीं तोड़े। पिछले कुछ सालों में चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है और हाल ही में यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से वैश्विक हालात भी बदले हैं।
ऐसे में ये कहना बहुत मुश्किल होगा कि पाकिस्तान अमेरिका की तरफ झुकेगा, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि आखिरकार पाकिस्तान अमेरिका की तरफ ही झुक जाएगा। इसकी एक वजह ये है कि अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति के पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और आसिफ अली जरदारी के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं।”
इमरान खान बार-बार ये कह रहे हैं कि विदेशी ताकत उनकी सरकार गिराना चाहती है। उनका इशारा अमेरिका की तरफ है। वो एक पत्र का भी जिक्र कर रहे हैं। हालांकि, ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट का हवाला देकर उन्होंने इसके कंटेट सार्वजनिक नहीं किए हैं। वो संसद की समिति के समक्ष इसे रख सकते हैं। सवाल ये है कि क्या कोई विदेशी ताकत उनकी सरकार गिराने के पीछे है और पाकिस्तान की जनता इमरान के इन दावों को कैसे ले रही है?
वजाहत काजमी कहते हैं, “इसमें कोई शक नहीं है कि विदेशी महाशक्तियां दूसरे देशों के मामले में दखल देती हैं और कई मामलों में उनके फुटप्रिंट मिले हैं। खासकर पाकिस्तान और कुछ और दूसरे देशों के मामले में।
प्रधानमंत्री एक पत्र की बात कर रहे हैं, उन्होंने इसके कंटेंट को कुछ पत्रकारों और कैबिनेट सदस्यों के साथ साझा किया है। ये पत्र विदेशी दखल के संकेत देता है। हालांकि, ये खतरा कितना वास्तविक या बड़ा है इस पर सवाल हैं क्योंकि सरकार ने अभी ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट का हवाला देकर पूरी जानकारियां नहीं दी हैं।”
क्या पाकिस्तान की जनता इमरान खान के इस तर्क को समझेगी? इस सवाल पर काजमी कहते हैं, “भारत या किसी अन्य दूसरे देश की तरह ही पाकिस्तान की जनता भी बहुत भावुक है। पाकिस्तान में इमरान खान का एक बहुत बड़ा फैन बेस भी है। कम से कम इमरान खान के समर्थक तो इस बात में यकीन कर रहे हैं कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश में विदेशी ताकतें शामिल हैं।
हालांकि, ये तर्क भले ही उनकी सरकार को ना बचा पाए, लेकिन ये इमरान खान के आगे के राजनीतिक सफर में अहम साबित हो सकता है और वो आने वाले चुनावों में इसे कैश करने की कोशिशें जरूर करेंगे।”
सरकार बदली तो दक्षिण एशिया के सुरक्षा हालात पर कोई असर?
पाकिस्तान दक्षिण एशिया का एक अहम देश है। हाल के सालों में भारत-पाकिस्तान का तनाव भी बढ़ा है। उधर अफगानिस्तान में सत्ता तालिबान के हाथ में आ गई है। ऐसे में अगर पाकिस्तान में सरकार बदलती है तो क्या इसका असर दक्षिण एशिया के सुरक्षा हालात पर पड़ सकता है?
अरशद युसुफजई कहते हैं, “मैं समझता हूं पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार गिरने से दक्षिण एशिया के सुरक्षा हालात पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि पाकिस्तान के बड़े फैसले अक्सर एस्टेब्लिशमेंट करती है। हिंदुस्तान से संबंध हों, अफगान पॉलिसी हो, चीन के साथ संबंध हों- ये सब अक्सर एस्टेब्लिशमेंट करती है। सरकारों के आने-जाने से इस पर खास असर नहीं पड़ता है।”
वजाहत काजमी इस राय से इत्तेफाक रखते हैं। काजमी कहते हैं, “पाकिस्तान की सुरक्षा नीति आमतौर पर देश के एस्टेब्लिशमेंट के हाथ में ही रहती है। राजनीतिक दलों के पास इसमें करने के लिए बहुत कुछ नहीं होता है। ऐसे में अगर सरकार बदलती भी है तो इसका देश या दक्षिण एशिया के सुरक्षा हालात पर तो कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर नई सरकार बनती है तो पाकिस्तान कुछ नई नीतियां ला सकता है और नए वैश्विक गठजोड़ कर सकता है।”
पड़ोसी देशों से सुधरेंगे रिश्ते?
इमरान खान सरकार की एक बड़ी नाकामी ये रही कि वो अपने पड़ोसी देशों से रिश्ते ठीक नहीं रख सके। भारत और ईरान और खासकर पश्चिमी देशों के साथ पाकिस्तान के रिश्ते बहुत निचले स्तर तक चले गए। इसे भी इमरान खान की सरकार की नाकामी की एक बड़ी वजह माना जा रहा है।
ऐेसे में क्या पाकिस्तान में इमरान की सरकार जाने से उसके पड़ोसियों से रिश्ते सुधर सकते हैं? अरशद युसुफजई कहते हैं, “अगर पाकिस्तान में सत्ता बदलती है और नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुसलिम लीग- नवाज (PML-N) या जरदारी की पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) की सरकार बनती है तो ये दक्षिण एशिया के लिए एक अच्छा संकेत होगा, क्योंकि नवाज शरीफ के आने से पाकिस्तान के चीन के साथ संबंध बेहतर होने की भी उम्मीद है।
हालांकि भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्ते अगले कुछ सालों तक शायद ऐसे ही रहें जैसे अभी हैं, लेकिन ये कहा जा सकता है कि अगर पाकिस्तान में सरकार बदलती है तो पाकिस्तान के दक्षिण एशियाई देशों और पश्चिमी देशों के साथ संबंध बेहतर होंगे। इससे दक्षिण एशिया में सुरक्षा हालात भी बेहतर हो सकते हैं।”
पाकिस्तान के सिरदर्द TTP का क्या होगा?
पाकिस्तान में एक और बड़ा खतरा है तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (TTP)। इस आतंकवादी संगठन ने बुधवार को ही पाकिस्तानी सेना पर बड़ा हमला किया जिसमें छह सैनिक मारे गए। TTP ने कहा है कि रमजान के पवित्र महीने में वह सेना के खिलाफ नया अभियान शुरू करने जा रहा है।
इमरान सरकार ने TTP से वार्ता करने की कोशिशें की लेकिन इस मोर्चे पर भी वो बहुत कुछ हासिल नहीं कर सके। मौजूदा सियासी परिस्थितियां TTP की गतिविधियों को भी प्रभावित कर सकती हैं।
अरशद युसुफजई कहते हैं, “तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान जब से अस्तित्व में आया है, इसने पाकिस्तान की सेना, पुलिस और आम लोगों के खिलाफ कई बड़े हमले किए हैं। पाकिस्तानी सेना ने भी TTP के खिलाफ बड़े सैन्य अभियान चलाए हैं और इस दौरान दोनों ही तरफ से बड़ी तादाद में जानें गईं हैं।
इन सबके बावजूद पाकिस्तान की सरकार और सेना ने TTP के साथ शांति प्रक्रिया शुरू करने की कोई कोशिशें की हैं। हाल के महीनों में भी शांति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश हुई है। बीते साल एक पीस प्रोसेस चला था जिसमें संघर्ष-विराम भी हुआ था। हालांकि, वो शांति-समझौता भी कामयाबी की तरफ नहीं जा सका।”
पाकिस्तान में यदि सरकार बदली तो TTP के खिलाफ बड़ा सैन्य अभियान भी शुरू हो सकता है। युसुफजई कहते हैं, “TTP की वजह से पाकिस्तान के सुरक्षा हालात प्रभावित हैं और देश की मौजूदा राजनीति का इन पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है।
पाकिस्तान में इमरान खान की मौजूदा सरकार की ये ख्वाहिश रही है कि TTP के साथ वार्ता हो और समझौता हो, लेकिन अगर राजनीतिक हालात की वजह से पाकिस्तान में सरकार बदलती है और कोई नई सरकार आती है, खासकर पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार आती है तो वो वार्ता के बिलकुल भी समर्थन में नहीं है और वो चाहेगी की TTP के खिलाफ सैन्य अभियान चलाया जाए।
अगर सेना TTP के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू करेगी तो फिर TTP के लिए पाकिस्तान के भीतर अपनी कार्रवाइयां जारी रखना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी तरफ अफगानिस्तान में भी TTP के लिए हालात मुश्किल हो रहे हैं क्योंकि अफगानिस्तान को चेतावनी मिली हुई है कि उसकी जमीन को किसी भी देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने दिया जाए।”
पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट का इतिहास
- पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा ने 7 अक्टूबर 1958 को मार्शल लॉ लागू किया। आर्मी चीफ अयूब खान को PM घोषित किया।
- 4 जुलाई 1977 को आर्मी चीफ जनरल जिया उल हक ने PM जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट किया और राष्ट्रपति बन गए।
- अक्टूबर 1999 परवेज मुशर्रफ ने PM नवाज शरीफ और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर सत्ता पर कब्जा किया। राष्ट्रपति बने।
- 1980 में जनरल जिया उल हक को हटाने की मुहिम चली थी। तब वो राष्ट्रपति थे।
- 1995 में बेनजीर भुट्टो को PM पद से हटाने की कोशिश की गई थी।