युग निर्माण योजना और हम वैसे तो मेरी प्यारी मातृभूमि आर्यवर्त में सदियों से हर समय परमात्मा का अभियान ऋषियों और मनीषियों के माध्यम से आनादि काल से चल रहा है। इस पवित्र भूमि पर अनेक त्यागी ,तपस्वी, दिव्य आत्माएं आती रही हैं और समाज को नित नई दिशा देती रही हैं।इन ऋषियों ने राजतंत्र पर नियंत्रण रखते हुए राजाओं का मार्ग दर्शन भी किया ।पर जब हम अपने पूज्य गुरु देव का संकल्प और अभियान देखते हैं तो वह हमें सबसे हटकर नजर आता है ।पूज्य वर ने जब प्रचंड साधना कर गयात्री मन्त्र को जीवंत किया तो वे मानव से महा मानव बन गए। उनके प्रचंड तप की शक्ति से जो संकल्प उभरा बो था मनुष्यों में देवत्व और इस पृथ्वी पर स्वर्ग का अवतरण। उन्होंने केवल सपना ही नहीं देखा बल्कि उस सपने को साकार करने के लिए युग निर्माण योजना भी बनाई उन्होंने ही उद्घोष किया कि हमारे असली पिता यज्ञ और माता गयात्री हैं। अर्थात् हम सभी को विश्व कल्याण के लिए यज्ञ और गयात्री मन्त्र से जुड़ना होगा ।उनका चिंतन उस ऋषि सत्ता के चिंतन की परिणति था , जो सदियों से मानव जाति के कल्याण और सुख शांति के लिए प्रयास कर रही थी। पूज्य गुरु देव का सम्बंध हिमालय में तप कर रही ऋषि ,संतों से तो था ही , पर लगता है वे ईश्वर के सानिध्य में भी आ गए थे। उन्होंने बहुत बारीकी से समाज में व्याप्त अज्ञानता, अभाव ,पाखंड और अंध विश्वास पर योग और समाधि की अवस्था में चिंतन किया और निचोड़ निकाला कि सब समस्याओं की जड़ में अज्ञानता है। सद्बुद्धि का आभाव है ।मनुष्य दिशा हींन होकर यहां-वहां भटक रहा है उन्होंने लोगों को बार बार यही समझाया कि आत्म परिष्कार करो, अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा। समझाया ही नहीं बल्कि रास्ता भी दिखाया कि गायत्री महामन्त्र बहुत ही शक्तिशाली है इसका ब्रह्म मुहूर्त और सूर्य अस्त के समय इसके अर्थ का चिंतन करते हुए निरंतर जाप किया जाए , तो पहले धीरे धीरे आप शुद्ध और पवित्र होंगे आपके शरीर की बुराइयां निकलेगी ।काम, क्रोध ,मोह ,लोभ, अहंकार के राक्षस भागेंगे।और आप शुद्ध, पवित्र ,निर्मल होंगे सद्बुद्धि आएगी ,और आपकी बुद्धि पवित्र से पवित्र होगी। आपके अंदर के पापकर्म रूपी सारे राक्षस भागने लगेंगे ।और आपकी पात्रता विकसित होने लगेगी। वही गायत्री मंत्र अमृत, पारस और कल्प वृक्ष बन जायेगा।आप जो चाहेगे, हासिल कर लेंगे । हम यदि विचार करें तो पूज्य वर का लक्ष्य कितना उच्च था, गुरुवर के सपनों को साकार करने में कितना योग दान दे रहे हैं। हमारे नए परिजन गयात्री परिवार में जुड़ रहे हैं ,उन्हें हम प्राथमिक साधना समझा पाए या नहीं। हमने अपना कितना सुधार किया। बहुत से लोग गयात्री मन्दिर को अन्य मन्दिरों की तरह केवल देवस्थली ही मानतें हैं। हमारे मन्दिर जन जागरण के केंद्र क्यों नही बन पा रहे ।आज मन्दिर में आरती के समय परिब्राजक अकेले ही घण्टी क्यों तुन टूना रहे हैं। मुझे लगता है कि हम सभी जो अपने आपको गायत्री परिजन कहते हैं। उन पर इस युग का बहुत बड़ा दायित्व है। हम आप पूरे विश्व की जनसंख्या के उन एक परसेंट लोगों में से हैं जो मांस नहीं खाते ,यज्ञ करते हैं। गायत्री का जाप करते हैं,जो अहिंसा परमो धर्म की विचार धारा पर चलता है ,ऐसे मनुष्य आज के युग के देवता हैं और ऐसे लोगों को पूरा विश्व शांति के मसीहा के रूप में आसा की निगाह से देख रहा है।हम अपने ऋषि के सपनों को साकार करने इस युग की दिव्यात्मायें आदिगुरु संकराचार्य, ऋषि दयानंद, महर्षि अरविंद, नेताजी सुभाषचन्द्र, राम कृष्ण परमहंस, सन्त कबीर, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप ,गुरु गोविंद सिंह, भगतसिंह, चन्द्र शेखर आजाद, स्वामी रामतीर्थ आदि की और हमारे पूज्य गुरु देव देवरहा बाबा , सन्त ज्ञानेश्वर और पता नहीं कितनी पवित्र और शुद्ध आत्माएं सूक्ष्म रूप से युग निर्माण के इस अभियान में लगी हैं और निरन्तर उनका संरक्षण मिल रहा है, बस जरूरत है ,एक सही दिशा में कदम बढ़ाने की ।