Tuesday, September 23

MP में 1600 साल पुराने गजानन के दर्शन कीजिए:विदिशा के उदयगिरि के पहाड़ में पत्थरों पर उकेरी प्रतिमाएं मोह लेती हैं मन; गुलाबी रंग ऐसा चढ़ा कि आज तक न मिटा, न फीका पड़ा

विश्व प्रसिद्ध उदयगिरि की पहाड़ी और गुफाएं विदिशा से करीब 7 किमी दूर स्थित है। यहां पुरानी गणेशजी की प्रतिमाएं मौजूद हैं। माना जाता है कि ये प्रतिमाएं चौथी शताब्दी के अंत और 5 वीं शताब्दी के शुरुआत की यानी करीब 1600 साल पुरानी बताई जाती हैं। यह मन को मोह लेने वाली प्रतिमा पहाड़ी पर पत्थर को काटकर उकेरी गई हैं। यहां 3 गणेश प्रतिमाएं प्रमुख हैं। इनमें से 2 बाल स्वरूप में हैं और तीसरी व्यापक स्वरूप में।

गेट पर होते हैं बाल स्वरूप के दर्शन
पहली प्रतिमा जो गुफा नंबर – 6 के द्वार पर स्थित है, उसमें गणेश जी के बाल स्वरूप के दर्शन होते हैं। दो भुजाओं बाली इस प्रतिमा के मस्तक पर न तो मुकुट है, न ही हाथों में कुछ धारण किए हुए हैं। दोनों हाथ घुटनों पर रखे हुए हैं। दूसरी प्रतिमा गुफा नंबर – 17 के बाईं और है। यह भी बाल स्वरूप में ही है। इसमें यह स्पष्ट नहीं होता कि भगवान गणेश ने दोनों हाथों में कुछ धारण किया हुआ है या नहीं। ये प्रतिमाएं 1600 साल पुरानी बताई जाती हैं।

गुलाबी गणेश के नाम से फेमस
पहाड़ी पर गुलाबी गणेश के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि गजानन को उस समय ऐसे प्राकृतिक रंगाें से रंगा गया होगा कि आज तक रंग वैसा ही है। यह न तो मिटा और ना ही फीका पड़ा। प्रतिमा में गणेशजी की चार भुजाएं हैं, जिनमें वह फरसा, पुष्प, माला और मोदक धारण किए हैं। प्रतिमा के नीचे एक भक्त हाथ जोड़े खड़ा है। यह प्रतिमा गणेश जी का व्यापक स्वरूप और आरामदायक मुद्रा में है।

ये कहते हैं इतिहासकार

  • इतिहासविद् नारायण व्यास बताते हैं कि यह प्रदेश की सबसे प्राचीन गणेश प्रतिमा है। क्योंकि इन गुफाओं का निर्माण गुप्तकाल में चौथी शताब्दी के अंत और 5वीं शताब्दी के शुरुआत में गुप्तवंश के राजाओं ने कराया था। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय, जिनकी राजधानी मगध थी, उन्होंने जब मालवा क्षेत्र को विजय किया, तब उस विजय के उपलक्ष्य में इन गुफाओं का निर्माण उनके सेनापति वीरसेन शाब के द्वारा कराया गया था।
  • उनका कहना है कि गुलाबी रंग, दरअसल गेरू है, जो इन मूर्तियों पर लगाया गया है, ताकि वह लंबे समय तक सुरक्षित रहें। गेरू इन मूर्तियों के लिए परिरक्षक का कार्य करता है। इसी तरह का गेरू उदयगिरि की विश्व प्रसिद्ध बराह प्रतिमाओं पर और लगाया गया था। इन गुफाओं का इतिहास आज से करीब 1700 साल पुराना चौथी से पांचवीं शताब्दी गुप्तकाल से संबंधित है। यहां प्राप्त अभिलेखों से प्रमाणित है कि यह गुप्तवंश के अत्यधिक प्रभावी और चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के समय का है।