Tuesday, September 23

2 महीने बाद मानसून का हाल:पूरे देश में अनुमान से केवल 1% कम पानी बरसा; सिर्फ 18 राज्यों में सामान्य बाकी 13 राज्यों में कम और 6 राज्यों में अनुमान से ज्यादा बारिश

मानसून के 4 महीने जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में से 2 महीने यानी 50% समाप्त हो गए हैं। इस दौरान मौसम विभाग के अनुमान से 1% कम बारिश हुई है। अनुमान 452.2 मिमी का था और बारिश हुई है 449 मिमी। अनुमान से 5% ज्यादा या कम बारिश होने पर उसे सामान्य बारिश की श्रेणी में ही रखा जाता है।

राज्यों के अलग-अलग आंकड़े देखें तो 18 राज्यों में सामान्य, 13 में कम और 6 में अनुमान से ज्यादा बारिश हुई है। इसका पूरा लेखा-जोखा इस स्टोरी में सबसे ऊपर कवर इमेज में दिया हुआ है। इसमें जो खास बात है वो ये कि एक तरफ हरियाणा में 51%, दिल्ली में 43%, महाराष्ट्र में 24% और बिहार में 19% ज्यादा बारिश हुई है। दूसरी तरफ चंडीगढ़ में 35%, गुजरात में 34%, असम में 21% और राजस्‍थान में 10% कम बारिश हुई है।

इसे ही बारिश की विषम परिस्थिति या फिर एक्ट्रीम वेदर कंडीशन कहा जा रहा है, यानी देश के एक हिस्से में बाढ़ और दूसरे हिस्से में सूखे की स्थिति। मानसून के 2 महीनों के हाल पर विशेषज्ञों से बात करने पर 3 बातें नजर आती हैं।

  • अचानक भारी बारिश वाले दिन बढ़ रहे हैं
  • मानसून का पैटर्न बदल रहा है
  • बाढ़ वाले क्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं

मानसून के 4 महीनों में से केवल 1 महीने में हो जा रही है 70% बारिश
स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पहलावत बताते हैं कि बीते 20 सालों में मानसून के ट्रेंड में धीरे-धीरे बदलाव आया है। कुल 4 महीनों में से किसी एक महीने में 70% से अधिक बारिश हो जा रही है। बाकी के 3 महीने में 30% हो रही है। इसमें बारिश की कुल मात्रा में कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, लेकिन भारी बारिश वाले दिन बढ़ गए हैं। भारी बारिश का मतलब है एक दिन में 65 मिमी से ज्यादा बारिश।

मौसम विभाग ने 1989-2018 के मानसून पर एक स्टडी छापी है। इसमें कहा गया है कि दक्षिण राजस्‍थान, छत्तीसगढ़, दक्षिणी-पश्चिमी मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और सौराष्ट्र में केवल 1 महीने के भीतर 70% तक बारिश हो जा रही है।

महेश पहलावत कहते हैं कि इससे किसान को नुकसान है, बाढ़ आने का खतरा रहता है और धरती के नीचे जलस्तर को बारिश से होने वाला फायदा नहीं मिलता। 10 साल पहले जितनी बारिश तीन दिन में होती थी, अब वो तीन घंटे में हो जाती है। पहले 4 महीनों तक नियमित रिमझिम बारिश होती थी। पानी जमीन में रिसकर नीचे तक पहुंचता और जलस्तर बढ़ जाता था, लेकिन अब तेज बारिश के चलते सारा पानी बहकर नदियों में चला जाता है।

मानसून के पैटर्न पर असर डाल रहा है हिंद महासागर का बढ़ता तापमान
मौसम विभाग के जीडी मिश्रा बताते हैं कि 1915 से 2015 के दौरान हिंद महासागर में समुद्र के सतह का तापमान करीब 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इसी तरह भारत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार 1901 से 2018 के बीच भारत में सतही हवा का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।

तापमान बढ़ने से हवा में अधिक नमी बन रही है, इसके चलते बादल फटने जैसी घटनाएं घट रही हैं। चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ रही है। अरब सागर की ओर से आने वाले तूफान मानसून की तारीख को प्रभावित कर रहे हैं। राजस्‍थान में पहले 20 सितंबर तक मानसूनी बारिश बंद हो जाती थी, लेकिन अब 28 सितंबर तक मानसून रह रहा है। इसी तरह से मध्य प्रदेश में मानसून 15 जून से आता था अब ये 20 जून तक पहुंच रहा है।

बाढ़ कहर बरपा रही है, हर साल 5649 करोड़ का हो रहा है नुकसान
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार बीते 5 सालों से बाढ़ का ट्रेंड नजर आ रहा है। इसमें हर साल औसतन 5649 करोड़ रुपए की फसल बर्बाद हो रही है। बाढ़ 40 लाख हेक्टेयर जमीन पर प्रभाव डाल रही है।

करीब 1654 लोगों की मौत हो जा रही है। मौसम विभाग के आंकड़े के मुताबिक 1953 से अब तक बाढ़ के चलते कुल 293 हजार करोड़ रुपए की फसल का नुकसान हो चुका है। 1953 से अब तक करीब 20 करोड़ लोगों की जिंदगी प्रभावित हुई है। इसमें लोगों का पलायन से लेकर, सामान बहने और मकान ढह जाने वाले शामिल हैं।

मौसम में होने वाले बदलावों में क्या कोई सकारात्मक बदलाव आ सकता है?
साल 1975 में फ्लड प्लेन जोनिंग कानून के लिए एक मॉडल ड्रॉफ्ट बिल केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को भेजा था। राजस्‍थान और मणिपुर ने इसको ध्यान में रखकर कानून भी बनाए, लेकिन प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाए। इसके अलावा दूसरे राज्य हामी भरने के बाद भी इस पर कानून नहीं बना पाए।

इसमें राज्यों को अपने क्षेत्र को जोन 1, 2 और 3 में बांटना था। इसमें 1 में विकास कार्य करने के लिए किसी किस्म की चुनौती नहीं थी, लेकिन 2 और 3 में विकास कार्य से पहले कई तरह के नियमों का पालन करना होता था।