Tuesday, September 23

मनोरंजन की दुनिया का गम:4320 करोड़ से ज्यादा के ऑनलाइन मूवी टिकट मार्केट में दोबारा बहार की उम्मीद, फिर भी मार्केट लीडर बुक माय शो में छंटनी

देश के ज्यादातर राज्यों में अनलॉक के साथ सिनेमा फिर से शुरू होने जा रहा है। अक्षय कुमार की ‘बेल बॉटम’ 27 जुलाई को रिलीज हो रही है, लेकिन उम्मीद भरे इस माहौल में भी ऑनलाइन टिकट के मार्केट लीडर बुक माय शो में छंटनी की खबर से सिनेमा इंडस्ट्री में खलबली मच गई है। इसको सिनेमा बिजनेस रिवाइवल में देरी के अलावा, ऑनलाइन टिकट मार्केट में कॉम्पिटिशन और ओटीटी जैसे दूसरे पहलुओं के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है।

ज्यादातर ऑनलाइन बुकिंग मल्टीप्लेक्स में

  • देश में करीब 9600 स्क्रीन हैं। इसमें सिंगल स्क्रीन करीब 6300 के आसपास हैं, लेकिन ऑनलाइन बुकिंग ज्यादातर मल्टीप्लेक्स में ही होती है। भारत में मल्टीप्लेक्स के 3200 स्क्रीन हैं। इनमें से 70 प्रतिशत चार कंपनी के हैं।
  • भारत में एक स्क्रीन में औसतन 200 सीटें होती हैं। एक स्क्रीन में हर रोज के पांच शो के हिसाब से हर रोज की 1000 सीट्स हुईं। पूरे देश के 3200 स्क्रीन के हिसाब से यह संख्या होती है 32 लाख।
  • वीक डेज में मल्टीप्लेक्स की ऑक्यूपेंसी सिर्फ 30-40 प्रतिशत होती है। वीक-एंड में भी अगर फिल्म सुपरहिट है तो ही 100 प्रतिशत ऑक्यूपेंसी मिलेगी। ऐसे में एवरेज ऑक्यूपेंसी 50% मान सकते हैं।
  • टिकट के रेट में भी काफी अंतर है, लेकिन यहां भी औसत निकालकर देखें तो मल्टीप्लेक्स में औसतन टिकट दर 150 रुपए होती है।
  • इसी से अंदाज लगा सकते हैं कि भारत में सालाना 4320 करोड़ रुपए के मल्टीप्लेक्स के टिकट ऑनलाइन बेचे जाते हैं।

बुक माय शो ऑनलाइन टिकट का सुपरस्टार

  • एक जमाने में कहा जाता था कि बॉलीवुड में एक से दस पायदान पर अमिताभ ही अमिताभ हैं। ऑनलाइन मूवी टिकट मार्केट में बुक माय शो सुपरस्टार है।
  • बुक माय शो ऑनलाइन मूवी टिकट मार्केट में 75 प्रतिशत हिस्से का दावा करती है, लेकिन मार्केट सोर्स बताते हैं कि पेटीएम ने काफी सेंध लगाई है। अब यह अनुपात शायद 60:40 का है।
  • ऑनलाइन मूवी टिकट के बाजार में डुओपॉली है। यानी कि बुक माय शो और पेटीएम ये दो कंपनियां ही तकरीबन पूरे बाजार पर काबिज हैं।
  • इनसाइडर इन, मूवी टिकट इन, इवेंट फायर, टिकट ग्रीन, मस्ती टिकट, टिकट न्यू, जस्ट टिकट्स, मूवी ई-कार्ड, टिकट बाजार, वेब टिकट्स, न्यू टिकट प्लीज, जैसे कई ऑनलाइन मूवी टिकटिंग ऐप आ चुके हैं, पर इनमें से कुछ बंद हो गए, कुछ बुक माय शो ने तो कुछ पेटीएम ने खरीद लिए। सारे मल्टीप्लेक्स के अपने भी ऐप हैं।

बुक माय शो में क्या सीन है?

  • कंपनी सिनेमा के अलावा स्पोर्ट्स, म्यूजिक इवेंट और ड्रामा सहित कई प्रकार के इवेंट की टिकट बुक करती है। कंपनी की 65% आमदनी सिनेमा से ही है। कोरोना में सब बंद हो गया।
  • पिछले हफ्ते 200 और पिछले साल 270 मिलाकर कंपनी कोरोना के बाद से अपना 30 से 40 प्रतिशत स्टाफ कम कर चुकी है।
  • डिमोनेटाइजेशन के बाद पेटीएम देश में तेजी से बढ़ा। मूवी टिकट बुकिंग में भी उसने सेंध लगाई।
  • मल्टीप्लेक्स अपने ऐप प्रमोट कर रहे हैं। इससे बुक माय शो की कन्वीनियंस फीस से बचा जा सकता है।
  • भविष्य की आहट सुनकर बुक माय शो ने भी पिछले फरवरी में ही पे-पर-व्यू मॉडल से अपनी स्ट्रीम सर्विस शुरू की, पर अभी खास आमदनी नहीं है।
  • कंपनी अभी वर्चुअल इवेंट की टिकट की भी बिक्री करती है, लेकिन अनलॉक के बाद यह बाजार कितना रहेगा, यह किसी को पता नहीं।

पिछले साल 134 करोड़ का घाटा
बुक माय शो की पेरेंट कंपनी का नाम बिग ट्री एंटरटेनमेंट है। 1999 में आशीष हेम्राजानी ने अपने दोस्त परीक्षित दार और राजेश बालपांडे के साथ मिलकर यह कंपनी शुरू की थी। ये कंपनी भारत के 650 शहरों और उसके अलावा इंडोनेशिया और सिंगापुर में भी सर्विस देती है। हालांकि ओवरसीज कंपनी का यूनिट बिल्कुल अलग है। उसका ऐप 5 करोड़ से ज्यादा डाउनलोड हो चुका है।

2019-20 में कंपनी का रेवेन्यू 619 करोड़ था। हालांकि उसे 134 करोड़ का घाटा भी हुआ था। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में यह 51 करोड़ ज्यादा था। मतलब, घाटा 62% बढ़ा था।

यह तो टिप ऑफ आइसबर्ग है
ट्रेड एनालिस्ट गिरीश वानखेड़े ने बताया कि बुक माय शो में छंटनी तो टिप ऑफ आइसबर्ग है। ज्यादातर मल्टीप्लेक्स कंपनियों में भी पिछले डेढ़ साल में बहुत सारे ले-ऑफ हुए हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि बुक माय शो ने एक साथ बडी मात्रा में ले-ऑफ घोषित किया। हालांकि पीवीआर, आइनॉक्स, सिने पोलीस, कार्निवल सबने इस तरह स्टाफ की कटौती की है।
पीवीआर ने बुक माय शो के साथ मिलकर ही सिनेमा ऑन डिमांड प्लेटफॉर्म ‘वकाउ’ शुरू किया था। अब वकाउ से ज्यादातर स्टाफ की छुट्टी हो चुकी है। बुक माय शो तो इनके और कस्टमर्स के बीच की एक एजेंसी ही है। उसका ज्यादातर रेवेन्यू मल्टीप्लेक्स बिजनेस पर ही निर्भर करता है।
सिनेमा एक चेन बिजनेस है। एक फिल्म बनती है तो कितने सारे लोगों को रोजगार मिलता है। फिल्म जब एक थिएटर में लगती है तो ना सिर्फ थिएटर ओनर बल्कि दूसरे बहुत सारे व्यवसायी भी कमाई करते हैं। कैंटीन में समोसा बेचने वाले से लेकर पोस्टर लगाने वाले तक, ऐसे बहुत सारे लोग हैं। ऐसे कितने ही लोगों ने अपना काम खोया है।

50% में भी ठीक से चले तो बेहतर
कुछ राज्यों में 50% ऑक्यूपेंसी के साथ सिनेमा शुरू करने की छूट दी गई है। गिरीश वानखेड़े बताते हैं कि वैसे भी बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें ज्यादा दिनों तक 100 प्रतिशत ऑक्यूपेंसी मिलती है। नॉर्मल समय में वीक डेज में ऑक्यूपेंसी 40-50 प्रतिशत ही होती है। अब अगर 50 प्रतिशत ऑक्यूपेंसी में भी हॉल बुक हो जाता है, तो यह बहुत होगा।

अब लाइन लग जाएगी
गिरीश वानखेड़े ने उम्मीद जताई कि जैसे अमेरिका, चाइना, यूएई सब जगह थिएटर खुलते ही लोगों ने लाइन लगा दी, वैसा ही भारत में भी होगा। प्रोड्यूसर भी थिएटर रिलीज ही चाहेंगे क्योंकि ओटीटी में एक लिमिट से ज्यादा बड़ी डील नहीं मिलती। जबकि थिएटर रिलीज में स्काय इज द लिमिट जैसी बात नहीं है।