
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच एक बार फिर हिंसा भड़कने के आसार नजर आ रहे हैं। वजह है इजराइलियों द्वारा निकाले जाने वाला यरूशलम फ्लैग मार्च। 15 जून, मंगलवार को यहूदियों ने फ्लैग मार्च निकालने की घोषणा की है। इसमें यहूदी नाचते-गाते हाथों में इजराइली झंडा लेकर यरूशलम के डमासकस गेट तक पहुंचेंगे, फिर वो मुस्लिम आबादी वाले इलाके से होते हुए अल-अक्सा मस्जिद की पश्चिमी दीवार (वेस्टर्न वॉल) तक जाएंगे।
फ्लैग मार्च मई में निकाला जाना था, लेकिन तब फिलिस्तीन-इजराइल के बीच हिंसा भड़क जाने के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। 10 जून को भी इसकी अनुमति नहीं दी गई, लेकिन इजराइल के निवर्तमान प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने जाते-जाते इस विवादित यरूशलम मार्च को मंजूरी दे दी है।
हर साल निकाले जाने वाले इस मार्च के दौरान फिलिस्तीन और इजराइल के बीच तनाव बढ़ जाता है, लेकिन इस बार हिंसा भड़कने की आशंका इसलिए ज्यादा है, क्योंकि मई में दोनों देशों के बीच कई दिनों तक युद्ध जैसे हालात रहे थे और हिंसा में 262 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। इसके अलावा फिलिस्तीन के उग्रवादी संगठन हमास ने घोषणा की है कि अगर यरूशलम मार्च निकाला गया तो वो अल-अक्शा मस्जिद की हिफाजत के लिए रॉकेट दागेगा।
क्यों निकाला जाता है यरूशलम मार्च
अरब देशों के साथ 1967 में छह दिन चले युद्ध में इजराइल की जीत हुई थी। इसके बाद पूर्वी यरूशलम पर इजराइल का कब्जा हो गया था। इस जीत की याद में कट्टर यहूदी हर साल मार्च निकालते हैं। यरूशलम मार्च पारंपरिक तौर पर यरूशलम दिवस यानी यहूदी कैलेंडर के हिसाब से 28 इयार (यहूदी महीना) को मनाया जाता है।
ये हर साल अलग-अलग दिन पड़ता है। इस साल ये 9-10 मई को होना था, लेकिन दस मई को फिलिस्तीन प्रदर्शनकारियों और इजराइली पुलिस के बीच टेंपल माउंट के पास शेख जर्राह इलाके में हिंसा भड़क गई थी। उसी दिन हमास ने गाजा से यरूशलम की तरफ रॉकेट दाग दिए थे और इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच नया संघर्ष छिड़ गया था। इससे यरूशलम मार्च आधे रास्ते ही रुक गया था।
मुस्लिम आबादी क्यों करती है इस मार्च का विरोध
यरूशलम इजराइल का सबसे बड़ा शहर है, जहां करीब साढ़े 9 लाख लोग रहते हैं। इनमें से अधिकतर यहूदी हैं, लेकिन पूर्वी यरूशलम की अधिकतर आबादी अरब मूल के मुसलमानों की है। यहूदी जो मार्च निकालते हैं, वह पूर्वी यरूशलम के बीच की मुस्लिम आबादी से गुजरता है। जिससे तनाव के हालात बन जाते हैं। 10 मई को फ्लैग मार्च के दौरान हिंसा भड़क गई थी। इसके बाद हमास और इजराइल के बीच संघर्ष शुरू हो गया था। 11 दिन चली इस हिंसा में 12 इजराइली नागरिक और 250 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए थे।
इसके अलावा इस फ्लैग मार्च के दौरान जो नारेबाजी होती है, उसमें यहूदी अल अक्सा मस्जिद के बड़े हिस्से पर दावा जताते हैं। यह भी मुस्लिमों और यहूदियों में विवाद की वजह है।
कट्टरपंथी यहूदी इस मार्च को फिर 10 जून को पूर्वी यरूशलम की मुस्लिम बहुल आबादी के बीच से निकालना चाहते थे, लेकिन इजराइली पुलिस ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। अब पुलिस के साथ हुए समझौते के तहत ये मार्च सुल्तान सुलेमान रोड से होते हुए डमासकस गेट पर पहुंचेगा और फिर वेस्टर्न वॉल के लिए आगे बढ़ेगा।
हमास ने कहा- मार्च के खिलाफ अरब मुसलमान सड़कों पर उतरें
15 जून को यहूदियों के मार्च निकालने पर हमास ने एक बार फिर हमलों की चेतावनी दी है। हमास ने कहा है कि यदि इजराइल यरूशलम में उकसावे की कोई भी कार्रवाई करता है तो वह फिर से हमले शुरू कर देगा। यरूशलम मार्च के जवाब में हमास ने कहा है कि अरब मूल के मुसलमान भी यरूशलम में सड़कों पर निकलें।
अपने बयान में हमास ने कहा, ‘मंगलवार (15 जून) अल-अक्सा मस्जिद से हमारे रिश्ते को मजबूत करने का दिन होगा। ये यहूदी कब्जे के खिलाफ हमारे गुस्से और संघर्ष का दिन होगा। अल्लाह और अपने लोगों को दिखाओ इस दिन आप क्या करोगे और यरूशलम और अल-अक्सा की हिफाजत के लिए सबसे मजबूत तलवार बनो।’
कट्टरपंथी यहूदियों का कहना कि हर हाल में निकलेगा मार्च
इस विवादित फ्लैग मार्च को मंजूरी मिलने के बाद आयोजकों ने खुशी जाहिर करते हुए कहा है, ‘हम इजराइल की पुलिस, पुलिस कमिश्नर और यरूशलम डिस्ट्रिक्ट का शुक्रिया अदा करते हैं। हमें खुशी है कि इजराइली झंडे गर्व से लहराए जाएंगे।’ यरूशलम मार्च में बड़ी तादाद में लोग शामिल होते हैं। इनमें से अधिकतर कट्टरपंथी यहूदी विचारधारा के होते हैं, लेकिन इजराइल में अधिकतर लोग इस मार्च का समर्थन करते हैं।
मार्च के समर्थक इजराइली जोनॉथन अलखोरी कहते हैं, ‘इस मार्च का ऐतिहासिक महत्व है। यरूशलम मार्च को फ्लैग डांस भी कहा जाता है। ये परेड हर साल होती है। ये इजराइल की अपनी राजधानी यरूशलम पर संप्रभुता का प्रतीक है।’
हालांकि, यरूशलम मार्च की वजह से हर साल होने वाले तनाव के चलते कुछ इजराइली अब इसके पक्ष में नहीं हैं। इजराइली मूल के ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार जोश फेल्डमेन ने इस मार्च में 2018 में हिस्सा लिया है और अब उनकी इसे लेकर राय बदल गई है। हाल ही में प्रकाशित एक लेख में उन्होंने लिखा, ‘इजराइल में रहने वाले एक रूढ़िवादी यहूदी के रूप में मैंने भी 2018 में मार्च में हिस्सा लिया था। इस साल ये मार्च 15 जून को हो रहा है और मैं इसका समर्थन नहीं कर रहा हूं।’
फेल्डमेन कहते हैं, ‘जश्न और जोश के बावजूद इस मार्च में ऐसी चीजें भी हैं, जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता। जब हम डमासकस गेट के पास पहुंचे तो मैंने देखे कि स्थानीय फिलिस्तीनियों को रास्तों से हटा दिया गया था। मुसलमान आबादी वाले हिस्सों में दुकानें बंद थीं। इजराइली पुलिस ने फिलिस्तीनियों को उनके घरों में बंद कर दिया था। वो अपने डरे-सहमे बच्चों के साथ मार्च देख रहे थे। उन्हें डर था कि कहीं उनकी दुकानों को नुकसान न पहुंचा दिया जाए।’
अमेरिका ने दोनों पक्षों से शांति बरतने की अपील की
फ्लैग मार्च के दौरान हिंसा की संभावना से विश्व समुदाय भी चिंतित है। अमेरिका ने दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है। अमेरिका के गृह विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने एक बयान में कहा है, ‘हम मानते हैं कि ऐसे कदम उठाने से बचना चाहिए जो तनाव को बढ़ाते हैं। अमेरिका तनाव कम करने और उकसावे की ऐसी कार्रवाइयों को रोकने की कोशिश कर रहा है जो फिर से हिंसा भड़का सकती हैं।’
हमेशा से विवादित रहा है यरूशलम
यरूशलम यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों की आस्था का केंद्र हैं। ईसाई, यहूदी और मुस्लिम तीनों ही इस शहर को अपने पैगंबर इब्राहिम से जोड़ते हैं और इस पर अपना हक जताते हैं। छह हजार साल पहले बसा ये शहर इतिहास में कई बार तबाह हुआ और उसके बाद फिर आबाद हुआ। इस शहर पर 52 बार हमले हुए और 44 बार कब्जा हुआ है।
हालिया इतिहास में इस शहर में सबसे बड़ा बदलाव 1967 में आया। जब छह दिन चले युद्ध में इजराइल ने अरब देशों को हरा दिया और और पूर्वी यरूशलम पर कब्जा कर लिया। इसी इलाके में मुस्लिमों की आस्था का अल अक्सा मस्जिद है। जिसका प्रबंधन एक समझौते के तहत फिलहाल जॉर्डन के पास है।
यरूशलम के केंद्र में संकरी गलियों और ऐतिहासिक वास्तुकला का ये प्राचीन शहर किसी भूलभुलैया सा है जो चार इलाकों में बंटा है। ये है ईसाई, यहूदी और मुस्लिम। एक प्राचीन दीवार इसकी किलेबंदी करती है। इसमें अलग-अलग आबादियों के अपने-अपने इलाके हैं। ईसाई इलाके का केंद्र ‘द चर्च आफ़ द होली सेपल्कर’ है जो दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र भी है। ईसाई परंपराओं के मुताबिक ईसा मसीह को यहीं सूली पर चढ़ाया गया था।
वहीं, मुसलमानों का इलाका चारों इलाकों में सबसे बड़ा है और इसी में मस्जिद अल अक्सा और डोम ऑफ द रॉक स्थित है। ये मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। यहूदी इलाके में पश्चिमी दीवार है जो वॉल ऑफ द माउंट का बाकी बचा हिस्सा है।
यहूदी मानते हैं कि उनका प्राचीन मंदिर (टेंपल माउंट) कभी इसी स्थान पर था, जहां अल अक्सा मस्जिद है। अल अक्सा मस्जिद में मौजूदा समय में नमाज होती है। यहूदी भी इसी की पश्चिमी दीवार पर पूजा करते हैं। धार्मिक लिहाज से यही दोनों धर्मों के बीच विवाद का विषय है।