Wednesday, September 24

बंगाल में घर वापसी की राजनीति:नतीजे आए 31 दिन ही हुए, अब कई नेता चाहते हैं TMC में वापसी, मुकुल रॉय-राजीब बनर्जी का नाम भी चर्चा में

  • बीजेपी में शामिल हुए तीन नेता खुलकर टीएमसी में वापसी की इच्छा जता चुके हैं
  • बीजेपी प्रवक्ता ने कहा- मुकुल रॉय, राजीब बनर्जी को लेकर चल रही चर्चा सिर्फ अफवाह
  • एक्सपर्ट बोले- बंगाल में चलती है पॉवर पॉलिटिक्स, राजनीति से जुड़े बिना जीवन-यापन मुश्किल

पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनावी नतीजे 2 मई को आए थे। चुनाव के पहले तृणमूल कांग्रेस के 50 से भी ज्यादा नेता बीजेपी में शामिल हुए थे। अब इनमें से कई दोबारा टीएमसी में वापसी चाहते हैं। मुकुल रॉय और राजीब बनर्जी जैसे बड़े नामों को लेकर भी दावा किया जा रहा है कि ये फिर से टीएमसी जॉइन कर सकते हैं। रॉय अभी बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वे टीएमसी छोड़ने वाले पहले बड़े नेताओं में से एक थे। रॉय ने बीजेपी को 2018 में हुए पंचायत चुनाव में जीत दिलवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इस बार वे कृष्णनगर उत्तर सीट से चुनाव लड़े थे और जीते भी। कुछ दिनों से चर्चा चल रही है कि वे दोबारा टीएमसी में शामिल हो सकते हैं, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता शमिक भट्‌टाचार्य ने इस बात का खंडन किया है। भट्‌टाचार्य का कहना है कि रॉय और राजीब बनर्जी को लेकर जो भी बातें हैं, वे सभी अफवाहें हैं। इनमें कोई सच्चाई नहीं। दरअसल हाल ही में मुकुल रॉय के बेटे सुभ्रांशु रॉय ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा था कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार की आलोचना करने के बजाय आत्मनिरीक्षण करना बेहतर है। रॉय की इसी पोस्ट के बाद ये कयास लगाए जाने लगे थे कि वे अपने पिता के साथ टीएमसी जॉइन कर सकते हैं। हालांकि भट्‌टाचार्य का कहना है कि उन्होंने आवेश में आकर ऐसा लिखा था। पार्टी छोड़ने जैसी कोई बात नहीं है। सुभ्रांशु को बीजेपी ने बीजपुर से टिकट दिया था, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

34 विधायक शामिल हुए थे, बीजेपी ने टिकट 13 को ही दिया था
चुनाव के पहले टीएमसी से बीजेपी में 34 विधायक शामिल हुए थे, लेकिन इसमें से टिकट 13 को ही मिल पाया था। जिन्हें टिकट नहीं मिला, उनमें एक बड़ा नाम दिनेश त्रिवेदी का था। वे चुनाव के कुछ ही दिनों पहले बीजेपी में आए थे।

रवींद्र भारती यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, बंगाल देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां लोगों का जीवन पूरी तरह से राजनीति से जुड़ा है। पॉवर पॉलिटिक्स से यहां जीवन-यापन होता है। सामाजिक सुरक्षा मिलती है। जन्म से मृत्यु तक पॉवर पॉलिटिक्स का असर होता है।
यही कारण है कि जो लोग चुनाव के पहले बीजेपी में शामिल हुए, अब वो कुछ भी करके टीएमसी की तरफ लौटना चाहते हैं। बंगाल में हर जगह सत्ता में रहने वाली पार्टी का इन्वॉल्वमेंट होता है। बिना पार्टी की सहमति के कोई कुछ नहीं कर सकता। अपोजिशन का कोई रोल यहां नहीं होता। यह कल्चर शुरू से है, जो आगे भी बनता दिख रहा है।

कहीं बीजेपी की साजिश तो नहीं, ऐसे तमाम सवालों के जवाब तलाशेंगे
टीएमसी सांसद शुखेंदु शेखर राय कहते हैं, 5 जून को दोपहर 3 बजे पार्टी ऑफिस में हमारी मीटिंग है। इसमें इस मुद्दे पर भी बात हो सकती है। हालांकि अब किसी को भी शामिल करने से पहले बहुत सारे सवालों के जवाब तलाशे जाएंगे। जैसे, जो आना चाहता है, वो पार्टी छोड़कर क्यों गया था। वो वापसी क्यों चाहता है।
ये भी देखेंगे कि कहीं ये बीजेपी की साजिश तो नहीं। घुसपैठ की कोशिश तो नहीं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब मिलने के बाद ही पार्टी निर्णय लेगी कि किसी को शामिल करना है या नहीं। राय कहते हैं- सांसदों-विधायकों में कई के नाम अभी सामने नहीं आए हैं, जबकि वे भी टीएमसी में शामिल होना चाहते हैं। जो माहौल बना है, वही रहा तो बंगाल में बीजेपी का पत्ता भी साफ हो सकता है।

ये नेता खुलकर सामने आए
सरला मुर्मु, पूर्व विधायक सोनाली गुहा और फुटबॉलर से राजनेता बने दीपेंदू विश्वास ने साफ कर दिया है कि वे दोबारा टीएमसी में शामिल होना चाहते हैं। सरला मुर्मु को टीएमसी ने हबीबपुर से टिकट दिया था। इसके बावजूद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। अब वे टीएमसी में वापसी चाहती हैं।
इसी तरह पूर्व विधायक सोनाली गुहा भी घर वापसी के इंतजार में हैं। उन्होंने ममता बनर्जी को पत्र लिखकर कहा है, ‘जिस तरह मछली पानी से बाहर नहीं रह सकती, वैसे ही मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगी, दीदी’। फुटबॉलर से राजनेता बने दीपेंदु विश्वास ने भी दीदी को पत्र लिखकर टीएमसी में शामिल होने की इच्छा जताई है।

जो बीजेपी की जीत को लेकर आश्वस्त थे, वो गए
बंगाल की 294 में से 213 सीटें टीएमसी ने जीती हैं। 77 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है। चुनाव के चंद महीनों पहले टीएमसी के 50 से ज्यादा नेताओं ने बीजेपी का दामन थाम लिया था।

इसमें 34 तो विधायक थे, जिन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस बार बीजेपी ही जीतेगी। कईयों की आस बीजेपी में आने के बाद भी पूरी नहीं हो पाई थी, क्योंकि पार्टी ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया।

नेताओं की टीएमसी से दूरी बनाने की तीन बड़ी वजहें थीं। पहली, उनका टिकट काटा या बदला गया था। दूसरी, वे पार्टी जिस ढंग से चल रही थी उससे खुश नहीं थे। तीसरी, वे बीजेपी को जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे और उन्हें बीजेपी से टिकट मिलने की भी उम्मीद थी। नतीजों ने दल-बदलुओं को बड़ा झटका दिया। इसलिए अब ये नेता घर वापसी चाहते हैं।