Tuesday, September 23

अफसरों ने नहीं देखा बच्चों का दर्द:गंजबासौदा में सड़क किनारे मटके बेच रहे बच्चों पर दिखाई अफसरी; रोते-बिलखते बच्चों को नजरअंदाज कर जब्त किए मटके

कोरोना काल में जहां बीमारी से बचने के प्रयास जारी है, वहीं दो वक्त की रोटी के लिए भी लोग परेशान हो रहे हैं। लॉकडाउन के चलते काम-धंधे चौपट हो गए हैं। ऐसे में गरीब वर्ग किसी तरह दो जून की रोटी की जुगाड़ कर रहा है। हालांकि इसमें उन्हें हर दिन अपमानित और प्रताड़ित होना पड़ रहा है।

ऐसा ही मामला गंजबासौदा में सामने आया है। यहां सड़क किनारे कुछ बच्चे मटके बेच रहे थे। अव्वल तो दिनभर में एक-दो से ज्यादा मटके नहीं बिक रहे थे। ऊपर से पुलिस के साथ यहां अफसर पहुंच गए। उनके मटके जब्त कर लिए। बच्चे रोते-बिलखते हुए मटके जब्त नहीं करने की गुहार लगाते रहे, लेकिन अफसर इन बच्चों का दर्द नहीं देख सके।

विदिशा जिले के गंजबासौदा में एसडीएम राजेश मेहता ने आला अफसरों के साथ सड़क किनारे मटके बेच रहे बच्चों पर कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन का हवाला देते हुए कार्रवाई की। बच्चों के दर्जनों मटके नगर पालिका की गाड़ी बुला कर जब्त कर लिए। रोते बिलखते बच्चों ने कहा- हम भीड़ लगाकर मटके नहीं बेच रहे थे, फिर भी प्रशासन ने मटके जब्त कर लिए।

नगर पालिका के कर्मचारी दर्जनों मटके गाड़ी में भर कर ले गए। गरीब बच्चों की मानें, तो मटके बेचना उनकी मजबूरी थी। सालभर धंधा चौपट रहा। गर्मी के सीजन में थोड़ी बहुत खरीदारी होती थी। बच्चों ने ब्याज से पैसे लेकर मटके बनवाए। जय स्तंभ चौक पर बेचने आ गए। इसके बाद भी अफसरों को बच्चों पर तरस नहीं आया। रोते हुए एक बच्चा दर्द बताता रहा।

पीड़ित बच्चे अनिल प्रजापति ने कहा, मेरे घर में मां का देहांत हो गया है। पैसे नहीं है। मजबूरी है कि हम कुछ बेच कर घर का गुजारा कर सकें। हमारी दुकान पर ज्यादा भीड़ भी नहीं थी। हम गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं। दिन में एक या दो ही मटके बिकते हैं। जैसे-तैसे घर का गुजारा चल जाता है, लेकिन साहब ने अन्याय कर दिया। पूर्व विधायक निशंक जैन ने कार्रवाई को गलत बताया।

दिनभर थाने में बैठाए रखा
एक बच्चे को तो पुलिस वाले थाने भी ले गए। उसे दिनभर बैठाए रखा और शाम को छोड़ दिया गया। बच्चों को इस बात की चिंता है कि अभी पता नहीं कितने दिन लॉकडाउन चलेगा और तब तक हम अपना और परिवार का पेट कैसे पालेंगे।

एसडीएम का कहना- चाकू निकाल लिया था, बच्चे नहीं सब बड़े है
घटनाक्रम के दौरान तो किसी अफसर ने मीडिया से बात करना भी उचित नहीं समझा। एसडीएम राजेश मेहता ने बाद में कहा कि जो बच्चा रो रहा था, उसी ने चाकू निकाल लिया था। कोई बच्चे नहीं है, सब 20-20, 22-22 साल के हैं। इन्हें समझाने जाते थे, तो यह भाग जाते थे। मटके जब्त करने लगे तो आ गए। एसडीएम ने कहा कि गरीब होने का मतलब यह थोड़े है कि नियम कानून तोड़कर काम करोगे।