
रविवार को PM नरेंद्र मोदी की रैली में तृणमूल तो निशाने पर थी ही, इस बार लेफ्ट-कांग्रेस को भी उन्होंने निशाने पर लिया। इसके पहले तक BJP नेता सिर्फ बुआ-भतीजा को ही टारगेट बना रहे थे। PM ने कहा कि एक समय वामपंथियों ने नारा दिया था कि कांग्रेस के काले हाथ तोड़ दो, मरोड़ दो। इसी के दम पर सत्ता में आए। फिर आज काला हाथ, गोरा कैसे हो गया।
PM ने ये तंज इसलिए कसा क्योंकि इस बार लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। कुछ ही दिनों पहले गठबंधन की ब्रिगेड मैदान में ही रैली थी, जिसमें बड़ी संख्या में भीड़ जमा हुई थी। दरअसल BJP ने 2019 में जो 18 सीटें हासिल की हैं, उसमें लेफ्ट को बहुत बड़ा रोल है। लेफ्ट के वोट ही BJP के पाले में आए थे। जिसके दम पर पार्टी 2 सीटों से 18 पर पहुंच सकी। अब BJP को भी ये खतरा लग रहा है कि, कहीं लेफ्ट-कांग्रेस के वोट दोबारा छिन न जाएं। इसलिए PM ने दोनों को निशाना बनाया। बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं कि अब ये लगातार होता रहेगा। अब BJP के प्रदेश के नेता भी लगातार लेफ्ट-कांग्रेस को निशाने पर लेना शुरू करेंगे।
लेफ्ट के जीतने का नहीं, वोट काटने का डर
लेफ्ट-कांग्रेस के जीतने का डर BJP को नहीं है। डर ये है कि, वो कितनी सीटों पर BJP को नंबर दो या तीन पर ढकेल सकते हैं। BJP के वोट शेयर बढ़ भी गए लेकिन थोड़े बहुत वोट कम होने से सीट चली गई तो TMC को फायदा मिलना तय है। हालांकि लेफ्ट का एक भी कैंडीडेट लोकसभा-2019 में जीत नहीं सका था। विधानसभा में भी पार्टी के गिने-चुने विधायक हैं, लेकिन लेफ्ट ने 34 साल बंगाल पर राज किया है। ऐसे में एक अंडर करंट हो सकता है, जिसे मोदी इग्नोर नहीं करना चाहते। इसी कारण उन्होंने ममता दीदी के साथ ही लेफ्ट-कांग्रेस को निशाने पर लिया है। हालांकि ग्राउंड पर लेफ्ट-कांग्रेस की कोई एक्टिविटी नजर नहीं आ रही। बिग्रेड में जो रैली हुई थी, उसमें भीड़ जमा जरूर हुई थी लेकिन उसमें फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दकी के समर्थक भी बड़ी संख्या में थे।
गठबंधन से ममता को नुकसान नहीं होगा?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बंगाल में 27 फीसदी मुस्लिम आबादी है। ममता को मुस्लिम आबादी के 23 से 24 फीसदी तक वोट मिलते रहे हैं। इस बार अब्बास सिद्दकी के चलते एक दो परसेंट वोट कम भी हो गए तो 21 से 22 फीसदी वोट मिल ही जाएंगे। इतने ही हिंदू वोट भी मिलने की संभावना है। 45 परसेंट वोट शेयर के साथ वो सरकार बनाने की स्थिति में होंगी। ममता ये कह चुकी हैं कि फुरफुरा शरीफ का सिर्फ एक लड़का उनके खिलाफ है, बाकी सभी सीनियर लीडर्स साथ में हैं।
आवैसी का कोई असर जमीन पर अभी नजर नहीं आ रहा। उनकी अभी तक एक भी सभा यहां नहीं हुई है। ऐसे में मुस्लिम वोट बंटने के जो कयास लगाए जा रहे थे, जमीनी हालात उससे अलग लग रहे हैं। वहीं नंदीग्राम और उसके आसपास मुस्लिम आबादी ज्यादा है। ममता वहां से चुनाव लड़ने जा रही हैं, जो मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ने का काम करेगा। एक्सपर्ट्स का ये मानना है कि, ममता के खिलाफ 2016 में भी गठबंधन था, तब भी उनके वोटर उनके पास ही थे। इस बार भी गठबंधन से ज्यादा नुकसान ममता के बजाए BJP को होता दिख रहा है।
कांग्रेस की ISF से दूर बनाने क रणनीति
कांग्रेस ने अब्बास सिद्दकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट से दूरी बनाकर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है। वो अपने मुस्लिम वोट बैंक के साथ किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहती। इसलिए कांग्रेस यही कह रही है कि उसका गठबंधन सिर्फ लेफ्ट के साथ हुआ है और लेफ्ट ने अपनी सीटों में से कुछ सीटें ISF को दी हैं।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि न ही हम ISF के लिए वोट मांगेगे और न ही वो हमारे लिए वोट की अपील करेंगे। दरअसल मुस्लिम बहुल इलाकों में कई ऐसी सीटें हैं, जहां कांग्रेस सालों से जीतती आई है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अधिरंजन चौधरी ही मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद से पांच बार से सांसद हैं। ऐसे में कांग्रेस खुलकर ISF का समर्थन करती है तो उसके खुद के ही वोट कट सकते हैं।