
कोरोनाकाल में जब रिश्तेदार शव नहीं छू रहे थे, तब हीराबाई ने जिम्मेदारी उठाई
ये हैं 50 साल की हीरा बाई। लोग इन्हें हीरा बुआ कहकर पुकारते हैं। हमारे समाज में जिन श्मशानों में महिलाओं का जाना वर्जित माना जाता है, हीरा उसी श्मशान में बीते 24 साल में 1500 से ज्यादा बेसहारा शवाें का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं।
कहती हैं कि अब तो ठीक ढंग से गिनती भी याद नहीं। पुराने शहर के मालीपुरा में रहने वाली हीरा बाई का एक बेटा भी है मोहित। ग्रेजुएट है। वो भी मां के इस काम में मदद करता है। कहता है कि जब मां अकेली हो गई थीं, तब किसी ने उनका साथ नहीं दिया था। इसलिए मां किसी को ऐसे अकेले नहीं छोड़ना चाहती। हालांकि मां पर क्या बीती थी, ये न हीराबाई याद करना चाहती हैं न ही उनका बेटा। वो कहते हैं कि उस देह की मदद करने का सुख वे शब्दों में बयां नहीं कर सकते, जो उन्हें धन्यवाद भी नहीं कह सकता।
काेराेनाकाल में उन्हाेंने एक भी छुट्टी नहीं ली। दर्जनाें अंतिम संस्कार किए। शव काे श्मशान पहुंचाने से लेकर लकड़ी व अन्य सामग्री की व्यवस्था तक सारे काम अकेले करती हैं।
लॉकडाउन में भी मेरा काम बंद नहीं हुआ..
जब पूरा देश बंद था। घर से निकलने और आवाजाही पर पाबंदी थी, लेकिन उन्हें अस्पताल में जब भी कोई ऐसा परिवार मिलता जो अंतिम संस्कार करने में मदद की जरूर पड़ती वे तुरंत उसके साथ हो लेतीं। छोला और भदभदा विश्राम घाट पर उन्होंने कई अंतिम संस्कार परिजनों की मौजूदगी में खुद किए और आर्थिक रूप से परिजनों की मदद भी की। परिजनों के पास कई बार घर लौटने के लिए पैसे नहीं होते तो हीराबाई उनकी टिकट व खाने के पैसे भी उन्हें देती हैं।
हमीदिया में आया हैं 50 साल की हीरा बाई, कहती हैं- सिर्फ दाे धर्म हैं, एक नर और दूसरा नारी
चाहे शव का काेई भी धर्म हाे, हीराबाई कहती हैं- ईश्वर ने सिर्फ दो धर्म बनाए हैं- एक नर, दूसरा नारी। हिन्दू-मुस्लिम तो इंसान के बनाए धर्म हैं। मेरी एक ही इच्छा है कि मृत व्यक्ति जिसका कोई नहीं या फिर अंतिम संस्कार करने में सक्षम नहीं है उसकी तन, मन और धन से मदद करूं। 20 साल पुरानी बात बताते हुए वे कहती हैं कि एक शव का अंतिम संस्कार परिजनों की सहमति से करने के बावजूद तलैया थाने की पुलिस ने उन्हें दिन भर बैठाए रखा था।
परिजनों के कहने पर देर रात छोड़ा। दो साल पहले भारत टॉकीज ब्रिज की दीवार ढहने से एक युवक की मौत हो गई थी। उसकी सिर्फ मां थी। पोस्टमार्टम के बाद मैंने अंतिम संस्कार किया तो पुलिस पहुंच गई। वो कहने लगे कि आपको ये अधिकार किसने दिया। फिर बूढ़ी मां बोली कि मेरा कोई नहीं है। तुम तब कहां थे, जब ब्रिज गिरने से बेटा लहुलुहान हुआ था।
भतीजे की शादी में देर से पहुंची, पहले विश्राम घाट गई
हीराबाई 3 साल पहले का वाकया याद करते हुए कहती हैं कि भतीजे की बारात लगनी थी। पुलिस का फोन आया- एक शव का अंतिम संस्कार करना है। मैं चुपचाप श्मशान चली गई। शाम 7 बजे आई। तैयार होकर बारात में गई। भतीजे ने बहुत डांटा। मैंने अगले दिन उसे कारण बताया तो उसने गले लगा लिया। मेरा भतीजा आर्मी में है।