कैंसी बिडम्बना है जव देश का नागरिक अपने ही देश मे प्रवासी हो जाये ,ओर दुःख तो तव होता है जव जिनके ऊपर देश की जिम्मेदारी है वही उन मजदूरों पर राजनीति करते नजर आ रहे है ।राज्य सरकार भी इस संकट काल मे सियासत करते नजर आ रहे है।
राज्य सरकारों की नाकामी देखिये मजदूरों का दर्द तक नहीं दिखाई दे रहा ,ऐसी भीषण गर्मी मे मजदूरों की दुर्गति वाकई दुख देना बाला है।इनके लिए ना तो विपक्ष सामने आ रहा ओर ना ही वो मजदूर संगठन जो इनकी राजनीति करते है।यदि राज्य सरकारें चाहती तो एक भी मजदूर इस दुर्दशा मे नहीं पहुचता । पर क्या करे किसी को उन मजदूरों का दर्द दिखाई नहीं दे रहा ।

आज मजदूरों की हालत देखिए पैदल चलकर उनके पैरों मे छाले पड गये , कोई भूख से बेहाल है तो कोई रास्ते मे ही दम तोड रहा है ,तो कोई मंजिल पर पहुंचने के पहले ही भगवान को प्यारा हो रहा है जितनी भी करूणा भरे किससे लिखे जाये तो वो कम है।आज उनके हाल देखकर सिर्फ रोना आ जाता है कल तक जो मजदूर दूसरों की दुनिया मे खुशियां भर रहे थे पर आज वो अपनी खुशियां ढूंढने घर से निकल पड़े है पर कोई आसरा नहीं है।100 कि.मी. से 800 कि.मी. तक का सफर पैदल ,सोचने मे भी डर लगता है ।पर अपना घर अपना ही होता है यही सोचकर ये विचारे निकल पडे है ।
मध्यप्रदेश में करीब बारह लाख मजदूर आ चुके है ओर आने का सिलसिला जारी है । पूरे देश के मुख्यमंत्रीओं में सिर्फ उ.प्र. के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी की तारीफ करनी होगी जिसने अपने राज्य के नागरिकों के प्रति सम्वेदनशील दिखाई दिये । ओर सवसे खराब हाल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे के रहे जिसने मजदूरों के सगथ अच्छा व्यवहार नहीं किया मजदूरों का कहना है अव कभी महाराष्ट्र नहीं जायेंगे।