नईदिल्ली। क्या चीन के आगे भारत घुटने टेकने को तैयार है? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि भारत का विदेश मंत्रालय अरूणाचल प्रदेश को लेकर चीन के दबाव में झुकता नजर आ रहा है। अंग्रेजी टैबलायड मेल टुडे में प्रकाशित खबर के मुताबिक विदेश मंत्रालय अरूणाचल प्रदेश को भारत के हिस्से के तौर पर चीन की मान्यता दिलवाने के लिए इतना छटपटा रहा है कि उसने इसके बदले अक्साई चिन पर भारत का दावा छोडऩे के संकेत दिए हैं। इसका मतलब यह हुआ है कि अगर चीन अरूणाचल प्रदेश पर अपना दावा छोड़ दे तो भारत अक्साई चिन पर ऐसा ही करने को सैद्धांतिक तौर पर तैयार हो रहा है। लेकिन यह फॉर्मूला अभी विदेश मंत्रालय की मेज पर ही है और सरकार के शीर्ष लोगों ने इस पर मंथन नहीं शुरू किया है।
अरूणाचल प्रदेश पर चीन लंबे समय से नजर गड़ाए हुए है और इसी क्षेत्र को लेकर भारत पर दबाव बनाता रहा है। भारत औपचारिक तौर पर तो यह कहता रहा है कि भारत अपनी जमीन छोडऩे को किसी कीमत पर तैयार नहीं है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि बंद दरवाजों के पीछे समझौते की मेज पर भारत ने चीन से कहा दिया है कि वह जैसी स्थिति है, वैसी ही रहने देने को तैयार है। इसका मतलब यह हुआ कि अरूणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर चीन अपना दावा छोड़ दे और भारत जम्मू-कश्मीर के 38 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर अपना दावा छोड़ दे। जम्मू-कश्मीर के लदï्दाख क्षेत्र में इसी इलाके अक्साई चिन कहा जाता है। यह क्षेत्र तब से विवाद में है जब से पाकिस्तान ने इस पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा कर लिया था और उसे 1963 में चीन को सौंप दिया था। सूत्रों के मुताबिक इस विवादित फॉर्मूले को भारत ने औपचारिक तौर पर नहीं माना है, लेकिन भारत की विदेश नीति तय करने वाले अफसर इसे सौदेबाजी का एक अहम बिंदू मान रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा कोई भी फॉर्मूला तभी जमीन पर उतारा जा सकता है जब केंद्र में आने वाली नई सरकार जबर्दस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाए।