
राजनीति में कुछ भी हो सकता हैं यह बात हमेशा से कही जाती रही हैं और यह भी कहा जाता रहा हैं की राजनीति कोई किसी का स्थाई दुश्मन नहीं होता क्योँकि यह राज-निति हैं इसमें किसी के कोई सिद्धांत नहीं रहते किसी भी राजनीतिक व्यक्तियो पर लोग ज्यादा भरोसा नहीं करते क्योँकि ऐसे कई उदाहरण हैं जहा मौके मौके पर वक्त के साथ लोग अपने दलबदलते रहे हैं |
2018 में हुए मध्यप्रदेश के चुनाव में भाजपा – कांग्रेस की सीधी टक्कर थी और यह टक्कर पार्टी के अलावा एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे तो दूसरी और कांग्रेस के मुख्य चेहरे के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया थे इसी के चलते मध्यप्रदेश भाजपा ने जो विज्ञापन बनाया था उसमे भी सीधा सीधा अटैक सिंधिया पर करते हुए यह कहा जा रहा था की माफ़ करो महाराज हमारा नेता शिवराज |
वक्त की बलिहारी देखिये जिस 2018 केचुनाव में जिन महाराज से भाजपा दूरी बनाकर सत्ता पाना चाहती थी आज वही महाराज भाजपा की सरकार और उनकी नीतियों का विरोध करके कांग्रेस पार्टी को 15 साल का बनवास के बाद सत्ता की मलाई तक पहुचाया पर मुख्यमंत्री बनने की वारी आयी तो वही महाराज को उनकी की पार्टी ने दरकिनार कर कमलनाथ के हाथ में बागडोर सौप दी इससे नाराज होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी आपत्ति आला कमान के सामने दर्ज करा दी थी पर आला कमान भी सिंधिया को न्याय नहीं दिला सका आखिरकार सिंधिया के पास अपना बजूद बचाने के लिए दो ही रास्ते थे या तो वह स्वयं की पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में आ जाए या फिर भाजपा के साथ मिल कर अपने आगे की यात्रा सुगमता से पूरी कर सके | इसमें से दूसरा वाला रास्ता ही सबसे सुरक्षित और आसान था जिसे सिंधिया ने अपनाना स्वीकार किया |
इतिहास के पन्नो में ये घटना किस रूप में लिखी जायेगी ये तो पता नहीं पर इतना जरूर हैं इतिहासमें भी कभी कभी अपने आप को दोहराता हैं यह दुसरा मौका हैं जब सिंधिया खानदान को कांग्रेस से विद्रोह करना पड़ा एक वार जब माधवराज सिंधिया को उनकी अपेक्षा कर लोकसभा का टिकिट नहीं दिया था इसके बाद उनहोंने अपनी पार्टी बनायी थी अब ये दुसरा मौक़ा हैं जब उन्ही के पुत्र के साथ उसी पार्टी बैसा ही व्यवहार किया जो उनके पिता के साथ किया था उन्हें भी वही रास्ता अपनाना पड़ा जो उनके पिता ने अपनाया था पर इन्होने अपनी पार्टी न बनाकर भाजपा का दामन थामकर एक सुरक्षित और आसान राज चुनी |