
बासौदा। नगर पालिका चुनाव संपन्न हो गए ओैर पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई पर इन दोनों की चनावों में चुनाव प्रक्रिया पर प्रशन चिन्ह दिखाई दे रहे है। निष्पक्ष चुनाव का दावा करने वाला चुनाव आयोग कि आरक्षण प्रक्रिया की निष्पक्षता दिखाई नहीं दे रही है। तो चुनाव निष्पक्ष कैसे संभव है। नगर पालिका में आरक्षण का जो क्रम अपनाया गया है वह कहीं न कहीं अपनी निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है। क्योंकि एक साधारण भाषा में यदि समझा जाऐ तो पहले नगर पालिका अध्यक्ष पद सामान्य पुरूष हुआ , दूसरा सामान्य महिला, तीसरा पिछड़ा पुरूष और इस बार नियमानुसार पिछड़ा वर्ग महिला होना चाहिए था तो सामान्य महिला सीट होकर चुनाव संपन्न करा दिए गए।
इसी अब पंचायत चनाव आरक्षण की बात करें तो गंजबासौदा जनपद अध्यक्ष सीट वर्ष 2009 में पिछडा़ वर्ग महिला थी और इस बार भी पिछड़ा वर्ग महिला कर दी गई। इसी तरह पंचायत के वार्डों में भी आरक्षण प्रक्रीया की अनदेखी की गई है। इससे चुनाव आयोग कीह पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में दिखाई देती है भले ही चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनावों की बात करता हो चुनाव आरक्षण प्रक्रिया से उसकी निष्पक्षता पर भी एक प्रश्र चिन्ह दिखाई पडता है। सवाल यहां यह उठता है कि जब इस तरह की चुनाव प्रक्रियाओं में आरक्षण का ध्यान नहीं रखा जाता और राजनैतिक पार्टीयां इस तरह के निर्णयों के खिलाफ आवाज नहीं उठातीं तो वह भी कहीं न कहीं संयुक्त रूप से दोषी दिखाई देते है। वैसे बात बात में हल्ला मचाने वाले लोग भी कम दोषी नहीं हैं क्योंकि वह भी इस तरह की मनमानी के खिलाफ दबी जुबान से अपनी सहमति दिए हुए हैं । वैसे यह राजनीति है इसमें चोर चोर मौसेरे भाई सब एक ही भाषा बोलतें हैं, सेटिंग की दुकानदारी का खेल मिलकर खेलते हैं वो तो आम जनमानस है जो सिर्फ वोट देने तक ही सीमित है
