लखनऊ। बच्चो ंके नरकंकाल मिलने से जुड़े निठारी कांड में सुरेंद्र कोली की फांसी फिलहाल 29 अक्टूबर तक टल गई है, लेकिन कोली का मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर को जमानत मिल गई। पंढेर ही उस कोठी नंबर डी-5 का मालिक है, जहां से करीब आठ साल पहले बच्चों के साथ दरिंदगी की कई कहानियां सामने आई थीं। वहीं निठारी गांव जहां के कई बच्चे ऐसे गायब हुए कि कभी नहीं मिले। पास के नाले से उनके कंकाल ही बरामद हुए।
इस दरिंदगी के भुक्तभोगी परिवारों और उनकी पीड़ा के साझीदार बने पड़ोसियों ने बताया कि असली नरपिशाच तो पंढेर था। उनके मुताबिक पंढेर का स्वभाव बेहद सौम्य व सरल था। इसी वजह से उन्हें कभी उस पर शक नहीं हुआ। तब भी नहीं, जब वे उसकी कोठी पर कई संदिग्ध गतिविधियां होते हुए देखते थे।
नोएडा के निठारी गांव में साल 2006 में पंढेर के घर में बच्चों के कंकाल मिलने का मामला सामने आया था। सीबीआई को जांच के दौरान मानव हड्डियों के हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले थे, जिनमें मानव अंगों को भरकर नाले में फेंक दिया गया था। नोएडा सेक्टर-31 में पंढेर की कोठी डी-5 के सामने रहने वाले धोबी ने बताया कि उसने कई बार कोठी में एंबुलेंस और डॉक्टरों की टीम को आते और काली पन्नी में कुल ले जाते देखा था। इस धोबी परिवार की बच्ची ज्योति 10 भी निठारी कांड की भेंट चढ़ गई थी। इस परिवार का कहना है कि पंढेर की कोठी में अक्सर नर्सों के साथ डॉक्टर आते थे। उनके साथ एंबुलेंस भी होती थी। नर्सें अपना मुंह ढंके रहती थीं। ज्योति की मां सुनीता का कहना है कि मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी में दो डॉक्टरों और चार नर्सों का आना जाना लगा रहता था। वे दो गाडिय़ों से आते थे। उनके साथ एंबुलेंस भी होती थी। जब उन्होंने नौकर सुरेंद्र कोली से बार-बार डॉक्टरों के आने की वजह पूछी, तो उसने बताया कि घर में माताजी बीमार हैं। उनकी रूटीन चेकअप के लिए डॉक्टर आते हैं, जबकि कोठी में कभी कोई बूढी औरत नहीं दिखती थी।
ज्योति का भाई अर्जुन उन लोगों में शामिल है, जिन्होंने सबसे पहले कोठी में नरकंकालों और कटे सिरों को देखा था। उसके मुताबिक, कोठी के अंदर का नजारा दहला देने वाला था। पन्नियों में कटे हुए सिर रखे थे। बोरे कटे हुए हाथ-पैरों से भरे पड़े थे। खास बात यह थी कि कोई भी शव पूरा नहीं था, किसी के पेट का हिस्सा गायब था, तो किसी की आंखें गायब थीं। पीडि़त परिवार के लोगों और प्रत्यक्षदर्शी धोबी परिवार ने शक जताया कि मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली मानव अंगों की तस्करी करते थे। इस बात के पीछे उनकी दलील है कि कोठी के अंदर और बाहर नाले से मिलने वाले शवों के बीच का हिस्सा गायब था। किसी भी शव का गुर्दा, सीना और पसलियों की हड्डियां नहीं मिलीं। कटे हुए सिर मिलते थे, लेकिन उनमें आंखें गायब रहती थीं। इससे आशंका जाहिर होती है कि मानव अंगों की तस्करी की जाती थी। ज्योति की मां सुनीता ने बताया कि मामले के खुलासे के बाद उन्हें कोली के शातिरपने का अहसास हुआ। इससे पहले ऐसे कई मौके आए जब उन्हें शक हुआ था, लेकिन कोली हर बार उन्हें गच्चा दे गया। उन्होंने बताया कि एक बार कपड़ा प्रेस करने के दौरान उन्हें मोनिंदर के कपड़ों पर खून के छींटे मिले थे। पूछने पर कोली ने बताया था कि साहब चिकन लेने गए थे। उसी दौरान खून के छींटे पड़ गए थे।
ज्योति के पिता छब्बूलाल के मुताबिक, उन्हें कभी भी अहसास नहीं हुआ कि मोनिंदर पंढेर और सुरेंद्र कोली ही मासूमों का हत्यारा है। उसने बताया कि सुरेंद्र कोली दुकान पर मोनिंदर के कपड़े प्रेस कराने आता था। यदि वे प्रेस किए कपड़े देने जाते भी थे, तो कोली उन्हें कोठी के गेट पर ही रोक लेता था और कपड़े अंदर चला जाता था। सुरेंद्र कोली बहुत ही सरल स्वभाव का था। उसकी बातों से कभी शक नहीं हुआ। अक्सर कोठी के सामने खड़ा रहता था। मोनिंदर भी अपने कुत्ते को टहलाने के लिए निकलता था। वह ज्यादा बातचीत नहीं करता था, लेकिन कोठी में अखबार पढ़ते हुए अक्सर दिख जाता था। अपनी आठ साल की बेटी रचना को खोने वाले पप्पूलाल ने बताया कि जब वे मोनिंदर की कोठी में घुसे थे, वहां नर कंकाल और कटे हुए सिर बिखरे पड़े थे। इसके बावजूद वहां बदबू बिल्कुल नहीं थी। मोनिंदर सिंह पंढेर का एक बेटा विदेश में रहता है। इसी बहाने वह लगातार विदेश जाता रहता था। इस मामले में उसे मिली जमानत का मुख्य आधार भी यही था कि जिस समय ये वारदातें हुईं, उस समय वह विदेश में था। पीडि़त परिवार भी मानते हैं कि वह अक्सर विदेश जाया करता था, लेकिन उनका कहना है कि वह विदेश अपने बेटे से मिलने नहीं, बल्कि इंटरनेशनल मार्केट में अंगों की तस्करी करने जाता था। पप्पूलाल का कहना है कि मोनिंदर पंढेर ही असली आरोपी है। मामला खुलने के बाद जिन लोगों ने कोठी के अंदर शवों को दखा था, उनका कहना है कि शवों से बदबू नहीं आ रही थी। कोठ्र भी शव सड़ा नहीं था।