भारत। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार देर शाम पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंपा। उनका इस्तीफा सोमवार को अचानक आया। वह दिन भर राज्यसभा में रहे। उन्होंने सभा का संचालन भी किया। जगदीप धनखड़ ने अगस्त 2022 में भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया। जगदीप धनखड़ का कार्यकाल उथल-पुथल भरा रहा। सदन में उनकी विपक्षी सांसदों के साथ नियमित तौर पर बहस होती रही। जगदीप धनखड़ एकमात्र ऐसे उपराष्ट्रपति रहे हैं, जिनके खिलाफ विपक्ष राज्यसभा के सभापति के रूप में पक्षपातपूर्ण आचरण के लिए नोटिस लेकर आई थी। हालांकि, विपक्ष के इस नोटिस को उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था, जबकि धनखड़ ने नोटिस को जंग लगे हुआ चाकू बताया। उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर न्यायपालिका की आलोचना की।
एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर बड़ी टिप्पणी कर दी थी। धनखड़ ने कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय सीमा तय करने की बात कही थी। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 142 एक ऐसी परमाणु मिसाइल बन गया है, जो लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ न्यायपालिका के पास चौबीसों घंटे मौजूद रहती है। वही जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति बनने से पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। मोदी सरकार ने साल 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया था। बंगाल के राज्यपाल रहते हुए वह कई मुद्दों पर ममता सरकार के निशाने पर रहे। राजभवन और सरकार के बीच टकराव की खबरें सुर्खियां बनती रही। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने उन्हें सोशल मीडिया साइट X पर ब्लॉक कर दिया था। धनखड़ ने पहला चुनाव जनता दल के टिकट पर लड़ा था। साल 1989 में उन्होंने झुंझुनू सीट से जीत दर्ज की थी। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए। 1993 से 1998 तक राजस्थान के किशनगढ़ विधानसभा से विधायक रहे। 1998 से, वह सर्वोच्च न्यायालय में पूर्णकालिक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कार्यरत रहे।