Monday, September 22

भारत GDP का 3 प्रतिशत शिक्षा पर कर रहा खर्च, चीन, अमेरीका स्वीडन से सीख

देश में शिक्षा की स्थिति में सुधार की जब भी बात होती है, इस पर खर्च बढ़ाने का सुझाव सामने आता है, हालांकि पिछले कई दशकों से कोई सुधार नहीं दिख रहा है। ज्यादातर विकसित देशों की तुलना में शिक्षा पर भारत का खर्च सबसे कम है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) का मानना है कि भारत में शिक्षा खर्च को तत्काल जीडीपी का छह फीसदी किया जाना जरूरी है। सीआईआई के हाल में किए एक अध्ययन में इस बात पर नाराजगी जताई गई कि पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा पर निवेश तीन फीसदी से भी कम के स्तर पर बरकरार है। पिछले छह वर्षों में भारत का शिक्षा पर खर्च जीडीपी के 2.7 फीसदी और 2.9 फीसदी के बीच स्थिर रहा है। सीआईआई का मानना है कि वैश्विक मानकों को पूरा करने के लिए शिक्षा पर निवेश तुरंत बढ़ाया जाए।

स्कूल शिक्षा प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन: भारत, ऑस्ट्रेलिया, चीन, इंडोनेशिया, स्वीडन, थाईलैंड, यूके और यूएसए’ शीर्षक से सीआईआई की यह रिपोर्ट जारी की गई है। इसमें विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले आठ देशों में शिक्षा प्रणालियों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट से 2018 से 2023 तक विभिन्न देशों में शिक्षा पर खर्च के विशिष्ट पैटर्न का पता चलता है।

ऑस्ट्रेलिया ने सबसे ज्यादा बढ़ा शिक्षा खर्च

अध्ययन में बताया गया कि विकसित देशों स्वीडन ने 6.7-6.9 प्रतिशत और अमरीका ने 5.3-5.6 प्रतिशत तक खर्च किए। साथ ही विकासशील देशों इंडोनेशिया ने जीडीपी का 3.7 से 4.3 प्रतिशत और थाईलैंड ने 4.0-4.3 प्रतिशत खर्च किया है। ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा खर्च पर आठ फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। चीन ने भी मामूली 2.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की जबकि, भारत के खर्च में छह वर्षों में कोई वृद्धि नहीं देखी गई। इंडोनेशिया और स्वीडन में मामूली बदलाव देखा गया। इंडोनेशिया में 2.8 फीसदी की गिरावट आई। स्वीडन ने अपने खर्च में कुछ कमी की थी लेकिन अब वह फिर पुरानी स्थिति (6.90 फीसदी) पर आ गया है।

माध्यमिक स्कूलों में सुधार जरूरी

-भारत का शिक्षा पर खर्च राष्ट्रीय रणनीति के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है। वैश्वकी बेंचमार्क की तुलना में भारत का शिक्षा खर्च 2.7 से 2.9 फीसदी तक स्थिर रखना हमारी कमजोरी को दर्शाता है। जबकि, विकसित अर्थव्यवस्था इस पर जीडीपी का पांच से सात फीसदी खर्च कर रहे हैं।
-अधिकांश देशों ने प्राथमिक नामांकन में वैश्विक लक्ष्य हासिल कर लिए हैं और माध्यमिक स्तर पर मामूली अंतर है, वहीं भारत में माध्यमिक स्तर पर नामांकन की स्थिति विकसित देशों की तुलना में कम है। यहां शिक्षा में विस्तार की गुंजाइश बनी हुई है।
-भारत में माध्यमिक स्कूलों में नामांकन की स्थिति 79.6 फीसदी है। जबकि, विकसित और विकासशील देशों ब्रिटेन (100%), स्वीडन (100%), यूएसए (98%), चीन (92%), ऑस्ट्रेलिया (90%), इंडोनेशिया (82%), और थाईलैंड (80%) की स्थिति काफी बेहतर है।

स्वीडन से लेकर चीन तक से सीखने की जरूरत

-रिपोर्ट के अनुसार, विद्यार्थियों का तनाव कम करने के लिए भारत को चीन के मॉडल से सीखना चाहिए।
-हाशिये पर पड़े समूहों को शामिल करने के लिए ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के मॉडल से सीखना चाहिए।
-स्वीडन के मॉडल से सीखकर ट्रेनिंग का विस्तार और उद्योग-विद्यालय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
-यूके के मॉड्यूलर पाठ्यक्रम का लचीलापन अपनाना चाहिए, जिससे स्ट्रीम में बदलाव आसान हो सके।

ग्रामीण इलाकों में शिक्षा पर घटा खर्च

ग्रामीण इलाकों में शिक्षा पर होने वाले खर्च में गिरावट आई है, जबकि शहरों में खर्च कुछ बढ़ा है। केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में जारी उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के मुताबिक, गांवों में वर्ष 2023-24 में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च में शिक्षा पर होने वाले खर्च की हिस्सेदारी घटकर 3.24 फीसदी पर आ गई, जो 2022-23 में 3.30 फीसदी थी। वहीं शहरों में कुल खर्च में एजुकेशन की हिस्सेदारी 5.97 फीसदी हो गई, जो 2022-23 में 5.78 फीसदी थी। यह खर्च कपड़े, एसी-फ्रीज, यातायात आदि पर होने वाले खर्च से कम है।