दिल्ली एम्स (AIIMS) के डॉक्टरों ने किडनी की धमनी सिकुड़ने (रेनोवैस्कुलर हाइपरटेंशन) की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित सात साल के लड़के की सफल ऑटोट्रांसप्लांट सर्जरी की। आठ घंटे चली इस मुश्किल सर्जरी में डॉक्टरों ने बच्चे की प्रभावित एक किडनी को पेट के निचले हिस्से में प्रत्यारोपित किया। डॉक्टरों का दावा है कि यह देश में पहली और दुनिया में तीसरी ऑटोट्रांसप्लांट सर्जरी है। 29 जून को सर्जरी के बाद बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है और वह पूरी तरह स्वस्थ है।
किडनी को अलग करना बड़ी चुनौती
सर्जरी बेहद जटिल थी और बच्चे का वजन सिर्फ 21 किलो। बड़ी समस्या यह थी कि धमनी में एम्यूरिज्म किडनी के बिल्कुल करीब बड़ी नस (वेना कावा) के पीछे था। इसलिए किडनी को नसों से सुरक्षित ढंग से अलग करना बड़ी चुनौती था। गलती से भी बड़ी नस कटने पर 20-30 सेकंड में एक से डेढ़ लीटर रक्तस्राव हो सकता था। इसलिए बेहद सावधानी से खराब नस को हटाया गया। पेशाब में खून आने के बाद परिजन उसे डॉक्टरों के पास दिखाने ले गए थे।
डाक्टरों के पास दो विकल्प थे
पिछले तीन वर्ष के दौरान तीन बार खून आया तो माता-पिता प्रणिल को दिल्ली के दो निजी अस्पतालों में दिखाया, जहां बच्चे की किडनी निकालने की सलाह दी। इसके बाद वे बच्चे को एम्स के सीटीबीएस (कार्डियो थोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी) विभाग में लेकर गए। डॉक्टरों के पास इलाज के दो विकल्प थे। पहला स्टेंट और दूसरी सर्जरी। चूंकि स्टेंटिंग संभव नहीं था, इसलिए सर्जरी को चुना गया।