Monday, September 22

दोबारा लोकसभा स्पीकर बनते ही ओम बिरला ने इमरजेंसी की निंदा, सदन में मच गया बवाल

ओम बिरला ने दोबारा से लोकसभा स्पीकर बनते ही सदन में इमरजेंसी (Emergency) का जिक्र कर दिया। इसे लेकर सदन में काफी ज्यादा हंगामा खड़ा हो गया। ओम बिरला ने कहा कि सदन इमरजेंसी की कड़ी निंदा करता है। दोबारा लोकसभा स्पीकर बनने पर ओम बिरला ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी लगाई थी। मीडिया पर प्रतिबंध लगाया गया और लोगों के अधिकारों को छीना गया। स्पीकर के इस बयान के बाद काफी ज्यादा हंगामा देखने को मिला। विपक्ष के नेताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी।

Emergency की 50वीं बरसी पर विपक्षी दलों का हंगामा

आपातकाल की 50वीं बरसी पर विपक्षी दलों के हंगामे के बीच लोकसभा ने सदन में निंदा प्रस्ताव पारित किया। वहीं, सदन की कार्यवाही के समापन के बाद केंद्रीय मंत्रियों और एनडीए सांसदों ने संसद भवन की सीढ़ियों पर विरोध प्रदर्शन कर देश में आपातकाल लगाने के लिए कांग्रेस के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और माफी मांगने की भी मांग की। विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और प्रल्हाद जोशी ने आपातकाल लगाने के लिए कांग्रेस से माफी मांगने की मांग की। साथ ही भारतीय लोकतंत्र के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का भी जिक्र करते हुए दावा किया कि उनकी सरकार संविधान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

25 जून भारत के इतिहास में काला अध्याय

इससे पहले, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में आपातकाल लगाए जाने के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि ये सदन 1975 में देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। इसके साथ ही हम, उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया। भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उस दिन को हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा।

इंदिरा गांधी ने भारत पर थोपी थी तानाशाही

इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था। उन्होंने कहा, “भारत की पहचान पूरी दुनिया में ‘लोकतंत्र की जननी’ के तौर पर है। भारत में हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों और वाद-संवाद का संवर्धन हुआ, हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा की गई, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया। ऐसे भारत पर इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया गया। इमरजेंसी के दौरान भारत के नागरिकों के अधिकार नष्ट कर दिए गए, नागरिकों से उनकी आजादी छीन ली गई। ये वो दौर था, जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया, पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था। तब की तानाशाही सरकार ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी थी और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर भी अंकुश लगा दिया था।”

आपातकाल था ‘अन्याय का काल’

इमरजेंसी का वो समय हमारे देश के इतिहास में एक ‘अन्याय काल’ था, एक ‘काला कालखंड’ था। आपातकाल लगाने के बाद उस समय की कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय किए, जिन्होंने हमारे संविधान की भावना को कुचलने का काम किया। क्रूर और निर्दयी मेंटेनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) में बदलाव करके कांग्रेस पार्टी द्वारा सुनिश्चित किया गया कि हमारी अदालतें मीसा के तहत गिरफ्तार लोगों को न्याय नहीं दे पाएं। मीडिया को सच लिखने से रोकने के लिए पार्लियामेंट्री प्रोसिडिंग्स (प्रोटेक्शन ऑफ पब्लिकेशन) रिपील एक्ट, प्रेस काउंसिल (रिपील) एक्ट और प्रिवेन्शन ऑफ पब्लिकेशन ऑफ ऑब्जेक्शनेबल मैटर एक्ट लाए गए। इस काले कालखंड में ही संविधान में 38वां, 39वां, 40वां, 41वां और 42वां संशोधन किया गया।”

संविधान संशोधन कर एक हाथ में रोकी शक्ति

ओम बिरला ने कहा, ”कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए इन संशोधनों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं, न्यायपालिका पर नियंत्रण हो और संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सकें। ऐसा करके नागरिकों के अधिकारों का दमन किया गया और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया। इतना ही नहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमिटेड ब्यूरोक्रेसी और कमिटेड ज्यूडिशियरी की भी बात कही, जो उनकी लोकतंत्र विरोधी रवैये का एक उदाहरण है। इमरजेंसी अपने साथ ऐसी असामाजिक और तानाशाही की भावना से भरी भयंकर कुनीतियां लेकर आई, जिसने गरीबों, दलितों और वंचितों का जीवन तबाह कर दिया। इमरजेंसी के दौरान लोगों को कांग्रेस सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी का, शहरों में अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गई मनमानी का और सरकार की कुनीतियों का प्रहार झेलना पड़ा।”