Saturday, September 27

‘सजा नीति जरूरी, जज के विवेक पर नहीं छोड़ सकते’- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने अपराधियों को सजा के मामले में किसी स्पष्ट नीति या कानून की कमी पर अफसोस जताते हुए केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि वह एक स्पष्ट सजा नीति बनाने पर विचार करे। इस बारे में एक आयोग का गठन कर विशेषज्ञों और विभिन्न हितधारकों से चर्चा कर नीति तैयार की जाए। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में केंद्र सरकार से छह माह में हलफनामा भी मांगा है। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने कहा कि स्पष्ट नीति के अभाव में सजा की मात्रा जज की राय व समझ पर निर्भर (जज सेंट्रिक) हो गई है, जिससे सजा देने में असमानता और विसंगति होती है। सजा देना महज एक लॉटरी नहीं है। एक जैसे अपराध पर अलग-अलग सजा समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन और न्याय के खिलाफ है।

दिशा-निर्देश जरूरी

कोर्ट ने कहा कि सजा के लिए समाज की समझ के आधार पर विवेक को बेलगाम नहीं छोड़ा जा सकता। इसलिए सजा के बिंदु पर विवेक के प्रयोग में अवांछित असमानता से बचने के लिए जज को पर्याप्त दिशा-निर्देश जरूरी है।