Thursday, September 25

क्या है चाहबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट? भारत-ईरान के बीच समझौता, चीन और पाकिस्तान को बड़ा झटका

पाकिस्तान से तनातनी के बीच ईरान ने कूटनीतिक मोर्चे पर भी उसे मात देने की तैयारी कर ली है। हाल ही विदेशमंत्री एस. जयशंकर की ईरान यात्रा के दौरान दोनों देश इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना पर समझौते के करीब पहुंच गए हैं। अपनी हालिया तेहरान यात्रा के दौरान जयशंकर ने ईरान के विदेशमंत्री होसैन अमीराब्दुल्लाहियन के साथ चाहबहार बंदरगाह और उत्तर-दक्षिण कनेक्टिविटी पर व्यापक चर्चा की। इस बंदरगाह के निर्माण का मुद्दा दोनों देशों के बीच लंबे समय से लंबित है। यह 2017 में तब चर्चा में आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेहरान गए थे। भारत ने चाहबहार समझौते को ऐसे समय में अंतिम रूप दिया है, जब मध्य पूर्व बड़ी उथल-पुथल से गुजर रहा है और ईरान और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय नौसैनिक व्यापार जलमार्ग खतरे में हैं। लाल सागर से वाणिज्यिक जहाजों की सुचारू आवाजाही में व्यवधान को खत्म करने के लिए अमरीका और ब्रिटेन यमन में हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर लगातार हमले कर रहे हैं।

चाहबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट क्या है?
चाहबहार बंदरगाह, ईरान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में स्थित सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत में स्थिति कनेक्टिविटी परियोजना है, जिसके तहत ओमान की खाड़ी पर 2003 से भारत और ईरान के सहयोग से चाहबहार बंदरगाह का विकास किया जा रहा है। इसके दो मुख्य बंदरगाह हैं, लेकिन भारत दोनों में से केवल एक का ही विकास करेगा, अर्थात् शहीद बेहेश्टी बंदरगाह। इस परियोजना पर दोनों देशों के बीच 8 अरब डॉलर निवेश के समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए ट्रांजिट रूट के रूप में विकसित किया जा रहा है। परियोजना से भारत और ईरान के अलावा अफगानिस्तान भी जुड़ा है। जनवरी 2016 में, तीनों देशों ने बंदरगाह को विकसित करने के लिए एक त्रिपक्षीय आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

अब तक कितना काम
जाहेदान तक 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन और फिर ईरान-तुर्कमेनिस्तान सीमा पर सिराख्स तक 1,000 किलोमीटर से ज्यादा लंबे ट्रैक तैयार करने की योजना तैयार की गई है। हालांकि, अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन और ईरान पर अमरीकी प्रतिबंध और प्रभावित देशों की घरेलू राजनीति के चलते इस पर काम रुक गया।

ये होगा फायदा
भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, चाहबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आइएनएसटीसी) से भूमध्य-स्वेज मार्ग की तुलना में माल ढुलाई 30 फीसदी सस्ती होगी। मध्य एशिया से प्राकृतिक गैस चाहबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत में लाई जा सकती है। भारत पहले ही मध्य एशियाई गणराज्य तुर्कमेनिस्तान से निकलने वाली तापी गैस पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं का हिस्सा है।

चीन का प्रभुत्व कम होगा
पाकिस्तान के साथ सीपीईसी प्रोजेक्ट के जरिए चीन ने इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी को लेकर एक प्रभुत्व का जो निर्माण किया है, चाहबहार प्रोजेक्ट उस प्रभुत्व को भी खत्म कर देगा।