Wednesday, September 24

800 मीटर से कम दृष्यता लैंड नहीं करेगी फ्लाइट, एक साथ कंट्रोल हो सकेंगी 400 फ्लाइट्स

इंदौर। आने वाले सालों में इंदौर से हवाई सफर के लिए जाने वाले लोगों के साथ ही फ्लाइट्स की संख्या भी बढ़ेगी। एयरपोर्ट अथॉरिटी द्वारा एयरपोर्ट पर एयर ट्रैफिक कंट्रोल रूम के लिए नया वॉच टॉवर बनाया जा रहा है। जिसमें राडार सिस्टम से विमानों की जानकारी मिल सकेगी। फिलहाल 100 से 150 फ्लाइट कंट्रोल की सुविधा है। राडार सिस्टम होने से यह क्षमता 400 तक पहुंचेगी। नए राडार सिस्टम से फ्लाइट्स की लाइव स्थिति स्क्रीन पर नजर आएगी। अभी पुराने सिस्टम से स्क्रीन पर यह जानकारी मिलती है। नए सिस्टम से पीछे आने वाले विमान की गति को भी कंट्रोल करने में मदद मिलेगी।

150 किलोमीटर दूर से मिल जाती है जानकारी

इंदौर एयरपोर्ट की सीमा से 150 किलोमीटर के दायरे में आने वाले विमान की जानकारी एटीसी रूम में मिलती है। इसके बाद एटीसी रूम का काम शुरू होता है। दिशा के साथ ही विमान कितनी ऊंचाई से उड़ाया जाए यह संदेश पायलट को दिया जाता है। साथ ही मौसम विभाग की सूचनाओं पर आधारित जानकारी पायलट को दी जाती है।

80 फीट से रखते हैं निगरानी

जमीन से लगभग 70 से 80 फीट ऊंचाई बने एयर ट्रैफिक कंट्रोल रूम से हवाई दुर्घटनाओं को रोकने व विमानों की सफल लेंडिंग में मदद मिलती है। इस वॉच टॉवर से रन वे पर 24 घंटे नजर रखी जाती है। रन वे पर आने व उड़ान भरते समय पायलट को सही जानकारी दी जाती है। मौसम संबंधित या हवाई मार्ग में कोई परेशानी नजर आती है तो तुरंत ही पायलट को संपर्क किया जाता है। वॉच टॉवर में एंटिना सहित पायलट व एयरपोर्ट अर्थारिटी, सुरक्षा अधिकारियों से संपर्क के लिए व्यवस्था रहती है। सबसे अहम हवाई जहाज की दिशा भी इसके माध्यम से पायलट को बताई जाती है।

800 मीटर से कम दृष्यता पर हो जाते हैं अलर्ट

एटीसी रूम के एजीएम जितेंद्र सिंह यादव ने बताया इंदौर केट 1 कैटेगरी में आता है। जिसमें 800 मीटर से कम दृष्यता होने पर विमान उतरने की अनुमति नहीं होती। जब 1500 से कम दृष्यता होने पर एटीसी सेंटर व पायलट दोनों ही अलर्ट हो जाते हैं। अगर दृष्यता 800 मीटर तक रह जाती है तो विमान को उतरने की अनुमति नहीं रहती।

आंख से भी नापी जाती है दृष्यता

मौसम वैज्ञानिक विवेक सलौत्रे ने बताया कोहरा छाए रहने पर मौसम विभाग के वैज्ञानिकों को सूचना मिलती है। ऑटौमेटिक सिस्टम के साथ ही रन वे पर भी जाते हैं। वहां 60-60 मीटर की दूरी पर लाइट लगी हुई है। इन लाइट को आंख के माध्यम से देखा जाता है। जितनी लाइट नजर आती है उसके आधार पर दूरी की गणना होती है। इसे इंस्टूमेंट लेंडिंग सिस्टम कहा जाता है। आंख से दृष्यता मापने के लिए मौसम विभाग के वैज्ञानिक अधिकृत होते हैं।