दुनिया का समय जल्द ही उज्जैन से फिर तय होगा। एमपी के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसकी पहल करने की बात कही है। खास बात यह है कि उज्जैन सदियों से कालगणना का सबसे प्रमुख केंद्र माना जाता रहा है। महज 300 वर्ष पूर्व तक विश्व का समय यहीं से ही तय होता था।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विधानसभा में यह कहकर नई चर्चा छेड़ दी कि भारत ने दुनिया का मानक समय तय किया। डॉ. यादव ने कहा, 300 साल पहले तक दुनिया का मानक समय भारत से निर्धारित होता था। अब प्रदेश सरकार केंद्र के सहयोग से दुनिया का समय तय करने के लिए प्राइम मेरिडियन को इंग्लैंड के ग्रीनविच से फिर उज्जैन लाने (मान्यता दिलाने) पर काम करेगी, जिसके परिणाम जल्द दिखेंगे।
उनका दावा इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि 1114 में जन्मे गणतिज्ञ भास्कराचार्य ने अपने ग्रंथ में उज्जैन से प्राइम मेरिडियन के गुजरने का जिक्र किया है। (इसका मतलब पृथ्वी पर 0 डिग्री देशांतर पर खींची प्रधान मध्याह्न रेखा से है।) इसके पहले सूर्य सिद्धांत और भारतीय खगोल विज्ञान से जुड़े ग्रंथों, स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में प्राइम मेरिडियन के उज्जैन से गुजरने की जानकारी मिलती है।
प्राइम मेरिडियन के साथ कर्क रेखा भी उज्जैन से गुजरती है। कर्क रेखा पर कर्कराज मंदिर बना है, जबकि प्राइम मेरिडियन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के शिखर से होकर जाती है। कर्क और प्राइम मेरिडियन रेखा उज्जैन से 30 किमी दूर डोंगला में मिलती है। महाकाल को ही काल यानी समय का प्रवर्तक व देवता माना है। सवाई जयसिंह ने 1719 में उज्जैन में वेधशाला बनवाई। यहां शंकू समेत विभिन्न यंत्र 300 वर्षों से काल और खगोलीय गणना कर रहे हैं। जयसिंह ने ही जयपुर, वाराणसी, मथुरा और दिल्ली में भी जंतर-मंतर बनवाए।
कैसे बदलेगी कालगणना
स्टैंडर्ड टाइम उज्जैन से तय करने के लिए सरकार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से डोंगला वेधशाला में काम शुरू करेगी। यहां आइआइटी, आइआइएम और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी शोध करेंगे।
भारतीय विज्ञान कांग्रेस के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस कराई जाएगी। अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस निर्धारित करेगी तो स्टैंडर्ड टाइम में बदलाव आएगा और उज्जैन फिर दुनिया का समय तय करने लगेगा।
इसके पहले, 139 वर्ष पूर्व वाशिंगटन डीसी में 1884 में विज्ञान कांग्रेस हुई थी, जिसमें ग्रीनविच को स्टैंडर्ड टाइम (जीएमटी) तय किया गया था।
ये साक्ष्य सूर्यसिद्धांत धर्मग्रंथ में
राक्षसालयदेवौक: शैलयोर्मध्यसूत्रगा:।
रोहीतकमवन्तीं च यथा सन्निहितं सर:।।
राक्षसों के आवास लंका, देवताओं के स्थान सुमेरु पर्वत (उत्तरी ध्रुव) के मध्यगत सूत्र (रेखा) पर स्थित सहीतक (रोहतक), अवन्ती (उज्जैन), सन्निहित सरोवर (कुरुक्षेत्र) नामक स्थान रेखा देश (शून्य देशान्तर) कहे जाते हैं।
जो रेखा लंका और उज्जयिनी में होकर कुरुक्षेत्र आदि देशों को स्पर्श करती हुई मेरु में मिलती है, उसे भूमि की मध्य रेखा कहते हैं। यह रेखा लंका से सुमेरु के मध्य उज्जयिनी सहित अन्यान्य नगरों को स्पर्श करती जाती हैं।
गुलामी का चिह्न है स्टैंडर्ड टाइम…
मुख्यमंत्री यादव ने विधानसभा में कहा कि 300 वर्ष पहले तक दुनिया में भारत का टाइम स्टैंडर्ड माना जाता था लेकिन काल के प्रवाह में जब हम गुलाम हुए तो पहले टाइम स्टैंडर्ड स्पेन, फिर फ्रांस की राजधानी पेरिस में 50 साल तक तय होता रहा। 139 साल पहले अमरीका में इंटरनेशनल कांग्रेस में ग्रीनविच को मान्यता दी गई।
ग्रीनविच वेधशाला व नासा ने माना लोहा
भारतीय खगोलीय ज्ञान का ग्रीनविच रॉयल वेधशाला और नासा लोहा मानते हैं। ग्रीनविच 55 डिग्री उत्तर पर है, जिससे यहां कभी भी 24 घंटे का दिन-रात नहीं होता। सूर्योदय, सूर्यास्त लंबे समय तक चलते हैं। जब हमारे यहां सूर्योदय होता है, तब ग्रीनविच पर रात के 12 बजते हैं। ग्रीनविच भी भारतीय कालगणना के मुताबिक ही सूर्योदय तय करता है।
उज्जैन सबसे उचित
ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास कहते हैं कि कालगणना के प्रवर्तक रूप में महाकाल को स्वीकार किया है। उज्जैन में ही मध्याह्न रेखा कर्क रेखा को क्रॉस करती है। महाकाल मंदिर उसी स्थान पर है। इसीलिए यहां से काल गणना होती थी। वाकणकर वेधशाला डोंगला के ज्ञानदास रतनानी कहते हैं कि उज्जैन ही ऐसा स्थान है, जो समय की सही गणना कर सकता है।