शरणार्थियों की मेजबानी को लेकर यूरोपीय संघ एक डील पर पहुंच गया है। नए सिस्टम के तहत शरण और वापस भेजने की प्रक्रिया में बदलाव किए जाएंगे। इसके अंतर्गत भारत, उत्तरी मैसेडोनिया, मोल्डोवा, वियतनाम, ट्यूनीशिया, बोस्निया, सर्बिया और नेपाल जैसे देशों को सुरक्षित इलाकों की श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब है कि इन देशों से गैरकानूनी तरीके से यूरोप आने वाले लोगों को शरण मिलने की गुजाइंश बहुत कम रहेगी और उनको डिपोर्ट किया जाएगा। कम सुरक्षित माने जाने वाले देशों के नागरिक सामान्य तरीके से शरण के लिए आवेदन कर सकेंगे। इन देशों में सीरिया, बेलारूस, इरीट्रिया, यमन और माली शामिल हैं। गौरतलब है कि, 2022 में शरण का आवेदन करने वाले कुल आप्रवासियों में से सिर्फ 40 फीसदी आवेदन सफल रहे। बाकियों को उनके देश वापस भेजने की कवायद तेज की गई।
नैन्सी फैजर, गृह मंत्री, जर्मनीयह अस्वीकार्य है। वे ताकत के बूते हंगरी को आप्रवासियों के एक देश में बदलना चाहते हैं।
विक्टर ओरबा, प्रधानमंत्री, हंगरी
यल्वा जोहानसन, आंतरिक मामलों की आयुक्त, ईयूशरणार्थियों के समान वितरण की कवायद
फिलहाल यूरोप में कुछ देशों पर शरणार्थियों का बहुत ज्यादा बोझ है, तो कुछ पर बहुत कम। यूरोपीय संघ में बिना किसी पूर्व सूचना के गैरकानूनी तरीके से दाखिल होने वाले ज्यादातर लोग, संघ की दक्षिणी सीमा से प्रवेश करते हैं। तुर्की, ट्यूनीशिया, मोरक्को या लीबिया की ओर से ये आप्रवासी नावों के जरिए खतरनाक समुद्री सफर करके इटली, स्पेन और ग्रीस पहुंचते हैं। ईयू के कानून के तहत आप्रवासी जिस देश में सबसे पहले पहुंचते हैं, उन्हें वहीं शरण का आवेदन देना चाहिए। इस कारण दक्षिणी सीमा के देशों पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ा है। शरणार्थी संकट के चलते इन देशों में राजनीतिक रुझान भी बदला है। बीते बरसों में ब्रसेल्स ने यूरोपीय संघ के उत्तरी और पूर्वी देशों को अपनी जनसंख्या के अनुपात में शरणार्थियों को लेने का निर्देश दिए हैं, लेकिन फिलहाल ऐसी कोशिशें नाकाम रही हैं।
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों मंत्रियों की बैठक में अब नई आप्रवासन नीति पर सहमति बनी है। इसके तहत आप्रवासियों को अपने यहां शरण देने से इंकार करने वाले देशों को प्रति आप्रवासी 20 हजार यूरो प्रतिमाह की रकम एक संयुक्त यूरोपीय फंड में देनी होगी। यह फंड ब्रसेल्स के अधीन होगा। इसके जरिए आप्रवासियों को अपने यहां रखने वाले देशों को आर्थिक मदद दी जाएगी।
इस नई डील पर यूरोपीय संघ के सांसद इस पर वोट करेंगे। सारे चरणों में सहमति के बाद 2024 में इन प्रस्तावों के कानून बनने की संभावना है।