Wednesday, October 1

‘हंसी आती है जब चपरासी कांग्रेस के बारे में ज्ञान देते हैं’, आजाद के इस्तीफे के बाद बोले मनीष तिवारी

कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पार्टी में बढ़ता असंतोष उसकी नींव को ही अब कमजोर कर रहा है। एक के बाद एक बड़े नेता पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं। ताजा मामले में कद्दावर नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से पार्टी में एक घमासान से मचा हुआ है। इस बीच पार्टी से नाराज चल रहे लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने भी अपना गुस्सा जाहिर किया है और कहा है कि कांग्रेस पार्टी और भारत के बीच समन्वय में दरार आ गई है। इसके साथ ही गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर भी उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी है।

गुलाम नबी आजाद पर क्या बोले मनीष तिवारी?

दरअसल, शुक्रवार को आजादी ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पाँच पन्नों में अपना इस्तीफा सौंपा था। इसपर मनीष तिवारी ने कहा, “मैं आजाद के पत्र के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, वो समझाने की सबसे अच्छी स्थिति में होंगे।”

चपरासी कांग्रेस के बारे में ज्ञान दे रहे

उन्होंने आगे कहा, “ये काफी अजीब है कि जिन व्यक्तियों के पास वार्ड का चुनाव लड़ने की भी योग्यता नहीं है, जो कभी कांग्रेस नेताओं के चपरासी हुआ करते थे वो पार्टी के बारे में ज्ञान देते हैं तो हंसी आती है।”

मनीष तिवारी ने कहा- मैं कांग्रेस का किरायेदार नहीं

उन्होंने पार्टी के सदस्य होने पर उठ रहे सवालों पर कहा, “हमें किसी से किसी से सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है। मैंने इस पार्टी को 42 साल दिए हैं। मैंने यह पहले भी कहा है, हम इस कांग्रेस के किरायेदार नहीं हैं, हम सदस्य हैं, अब अगर कोई पार्टी से बाहर निकालने की कोशिश करेगा तो ये एक अलग बात है।”

भारत और कांग्रेस पार्टी के बीच समन्वय में दरार

पंजाब की आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने पार्टी हाई कमान को एक पत्र भी लिखा है और नसीहत दी है। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि 1885 को अस्तित्व में कांग्रेस पार्टी और भारत के बीच समन्वय में एक दरार दिखाई दे रही है। मुझे लगता है कि 20 दिसंबर 2020 को सोनिया गांधी के आवास पर बैठक की सहमति बन गई होती तो शायद आज ये स्थिति नहीं होती। पार्टी को आत्मनिरीक्षण की जरूरत थी।”

उन्होंने जोर देकर कहा, “दो साल पहले, हम में से 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को लिखा था कि पार्टी की स्थिति चिंताजनक है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उस पत्र के बाद कांग्रेस सभी विधानसभा चुनाव हार गई। अगर कांग्रेस और भारत एक जैसा सोचते हैं तो ऐसा लगता है कि दोनों में से किसी ने अलग-अलग सोचना शुरू कर दिया है।”