प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) पर कार्ति चिदंबरम की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई हुई। इस मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा है कि PMLA फैसले पर फिर से विचार करने को तैयार है। इस संबंध में उसने केंद्र को नोटिस भी जारी किया है।
फैसले के दो पहलुओं पर फिर करेगा विचार
भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कार्ति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के तर्कों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर कहा कि उसे दो अहम मामलों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
पीएमएलए के फैसले दो अहम पहलू कौन से हैं?
1. आरोपी को ECIR की कॉपी ना देना
2. दोष सिद्ध होने तक निर्दोष होने की अवधारणा को नकारना
केंद्र को कोर्ट ने जारी किया नोटिस
क्या है मामला?
बता दें कि कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी वो PMLA की संवैधानिक वैधता बनाए रखने के अपने फैसले पर फिर से विचार करे। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को अपने फैसले में ED की शक्तियों और अधिकारों को बरकरार रखा था। कोर्ट ने कहा था कि ECIR प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के समान नहीं है क्योंकि ये प्रवर्तन निदेशालय का आंतरिक दस्तावेज है। इसके साथ ही कहा था कि इसकी कॉपी आरोपी को उपलब्ध कराना अनिवार्य नहीं है।
क्या है ‘प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट’?
गैर-कानूनी तरीकों से कमाए गए काले धन को कानूनी तरीके से कमाए गए धन में बदलने को मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं। यानि अवैध तरीके से कमाए गए धन को छिपाने के लिए उसे व्हाइट मनी में बदलना है। वर्ष 2002 में NDA सरकार द्वारा प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) को पारित किया गया था। इसके बाद इसे 1 जुलाई 2005 में इसे लागू कर दिया गया था। इस कानून को लाने का मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग पर पूरी तरह से रोक लगाने का है। इसके अलावा, इसके जरिए आपराधिक गतिविधियों में इस काले धन के इस्तेमाल को रोकना है।