Monday, September 29

मजदूरी के लिए सैंकड़ों मील दूर से आए हजारों मजबूर

विदिशा. जिले में धान का रकवा लगातार बढ़ता जा रहा है। लेकिन विदिशा जिले में मजदूर धान रोपाई का ठेका नहीं लेते। कई बार वे एक-दो दिन आकर नागा करके और गायब भी हो जाते हैं, ऐसे में किसान परेशान होते हैं। पैसा पूरा देने के बाद भी उन्हें समय पर काम नहीं मिलता। ऐसे में बाहरी मजदूर किसानों को ज्यादा भरोसेमंद लगते हैं। वे ठेके पर काम करते हंैं और एक बार शुरू करने के बाद काम पूरा करने के बाद ही वहां से जाते हैं। यही कारण है कि जिले में धान रोपाई के लिए पिछले कुछ वर्षों से बाहर के मजदूरों का आना शुरू हो गया है। पिछले चार दिन से विदिशा में कटनी, शहडोल, सतना से हजारों मजदूरों का रोजाना पहुंचना हो रहा है। ये मजदूर स्थानीय की तुलना में कम दाम पर और फुर्ती से काम करने के लिए जाने जाते हैं। किसानों से इनका सीधे कोई ताल्लुक नहीं है, ये मुकद्दम के माध्यम से विदिशा आते हैं। कटनी, शहडोल और सतना क्षेत्र में इन दिनों इन श्रमिकों को कोई खास काम नहीं होने पर ये पूरे परिवार समेत अन्य जिलों में मजदूरी और पेट पालने के लिए पलायन करते हैं।

पंचायत चुनाव के पहले चरण में मतदान के बाद कटनी, शहडोल, सतना आदि जिलों से बडी संख्या में मजदूरों का रोजी रोटी की तलाश में दूसरे शहरों में पलायन शुरू हो गया है। विदिशा में पिछले चार दिन से हर रोज सैंकड़ों मजदूर अपने परिवार और घर-गृहस्थी का जरूरी सामान बांधकर आ रहे हैं। सुबह विंध्याचल एक्सप्रेस के प्लेटफार्म पर रुकते ही करीब एक घंटे तक दूर तक ये श्रमिक ही दिखते हैं। प्लेटफार्म के बाहर ट्रेक्टर ट्राली, पिकअप वाहन इन मजदूरों को ढोने के लिए किसानों द्वारा लगाए जाते हैं और फिर इनमें सवार होकर चल पडते हैं ये अपनी गृहस्थी की पोटली साथ लिए मजदरी को। दरअसल विदिशा-रायसेन के किसानों द्वारा मुकद्दम के माध्यंम से इन्हें खेतों में धान की रोपाई के लिए बुलाया जाता है। अपेक्षाकृत कम मेहनताने पर ज्यादा काम करने के लिए इन मजदूरों की यहां मांग लगातार बढ़ती जा रही है।
एक दिन में चार बीघा की धान रोपाईढोलखेड़ी के किसान सुनील शर्मा बताते हैं कि हम 50 बीघा में धान लगाते हैं। मुकद्दम के माध्यम से हमने कटनी से 20 मजदूर बुलवाए हैं। ये 20 मजदूर एक दिन में चार बीघा में धान की रोपाई आसानी से कर देते हैं। हम मुकद्दम को 2 हजार रुपए बीघा के हिसाब से भुगतान करते हैं। इसके बाद श्रमिकों के आने-जाने,्र रहने, कंडे-लकड़ी का प्रबंध भी हम ही करते हैं। हमारे पास करीब 15 दिन का काम है, इसके बाद वे किसी और के खेतों में काम करने चले जाते हैं।

बूढ़े लोग घर संभालते हैं हम बाहर मजदूरी

ब्यौहारी शहर के गांव से आए राजू का कहना है कि हम करीब 500-600 लोग कटनी के आसपास के गांव से आए हैं। 4 तारीख को गांव से निकले थे, आज(7 जुलाई को)यहां आए हैं। मुकद्दम के कहने पर ही आते हैं, वहीं हमको खेतों में भेजता है और जब वापस गांव जाते हैं तो हमारे हिस्से का पूरा पैसा हमको दे देता है। राजू बताते हैं कि उनके घर के 6 सदस्य विदिशा आए हैं। केवल बूढ़े माता-पिता ही घर में हैं जो घर संभालते हैं। बाकी गांव के मजदूर परिवारों का भी यही हाल है। सभी बड़े महिला-पुरुष काम की तलाश में बाहर आ जाते हैं।

वहां इन दिनों काम नहीं मिलताकटनी के एक गांव से आए नेतराम ने बताया कि हमारे क्षेत्र में इन दिनों काम नहीं मिलता, इसलिए मजदूरी के लिए यहां आ जाते हैं। जब यहां से वापस जाएंगे तब तक हमारे यहां भी रोपाई शुरू हो जाती है। मजदूरी करीब दो-तीन सौ रूपए रोज वहां मिलती है, वही यहां मिलती है। खाली समय है इसलिए यहां काम को आ जाते हैं, कुछ घर-गृहस्थी का काम चल जाता है।

किसानों का भरोसा बाहरी मजदूरों पर ज्यादाधान की खेती करने वाले संजय राठी कहते हैं कि विदिशा में धान का रकबा बढ़ता जा रहा है। विदिशा में मजदूर तो हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर लोग या तो धान रोपाई का काम नहीं करना चाहते, या फिर करते भी हैं तो उतनी तत्परता और मन लगाकर नहीं करते। जो काम कटनी के मजदूर एक दिन में करते हैं, वही काम विदिशा के मजदूर दो दिन में कर पाते हैं। फिर स्थानीय मजदूर ठेके पर धान रोपाई नहीं करते, इसलिए आशंका बनी रहती है कि आज तो कर दिया, कल आएंगे या नहीं। जबकि बाहरी मजदूर ठेके पर काम करते हैं और एक बार आपके खेत में काम श्ुारू करते हैं तो फिर काम पूरा करके ही जाते हैं। फिर बाहरी मजदूरों से काम अपेक्षाकृत कम खर्चीला भी पड़ता है।