Sunday, October 5

हओ, हम तो पइसा भी ले लेहें और वोट भी न देहें, को देखवे आ रओ…


विदिशा. नगरपालिका चुनाव को अब चंद रोज ही बचे हैं। राजनैतिक दलों, प्रत्याशियों की धडकऩें बढ़ती जा रही हैंं। वे घर-घर दस्तक दे रहे हैं। ऐसे में चौका चौराहों पर चाय-पान की गुमठियां भी अब चुनावी चर्चा में मशगूल हैं। बसस्टेंड के पास पर दोपहर करीब 12 बजे चंद लोग चाय की चुस्कियों के साथ ही चुनावी चकल्लस में जुटे हैं। चाय का जायका तब और बढ़ जाता है जब एक असंतुष्ट नेता आकर चर्चा में शामिल हो जाते हैं। ये नेताजी उन्हीं में से हैं, जिनकी श्रीमती जी का टिकट उम्मीदवारों की लिस्ट से हटा दिया गया था। पढि़ए आप भी इस चर्चा को उसी देसी अंदाज में, जिसमें ये चर्चा हुई। प्रस्तुत हैं कुछ अंश-

काये…सुन रए कि तुमाए वार्ड के तीन-चार लोगन खौं तो नोट दैके चुप करा दओ। सई है का?और तो का…। तुमने देखो नई, कल तक जो हका मचा रए थे, बे संगे खड़े होकर फोटू खिंचवा रए हैं। पर ऐसो होत है का? कित्तोए खरीदो के तुम? चार-छह, दस…बस। का पूरे वार्ड खरीदवे की औकात है का कोई की। और फिर हम औरें तो पइसा भी ले लेहें और वोट भी न देहें..(ठहाका गूंज उठता है)

हां, जा सई है यार…।तो और का। पइसा देवे कोउ घरे आ रओ है तो ले लो, का बुराई है। वोट देवो न देवो अपने हाथ में है। कौन बतावे जा रओ है कि हमने कौनए वोट दओ है कौने नई दओ।

नहीं लेकिन ये तो गलत तरीका है…।

का गलत है, उनको तरीका गलत नईं है। वो हमाओ वोट खरीदवे आ रए जा गलत नहीं है। धोखेबाजों खौं धोखे से निपटाने चइए। आ जाओ बेटा, खूब पैसा है तो दे जाओ, हमाओ का है, वोट की कसम कौन खाई है हमने कि तुमेइ देंगे।

(इसी बीच एक नेताजी चर्चा में शामिल हो जाते हैें)और नेताजी, काए अब का कर रए तुम।का कर रए हैं, जो करने हैं बोई कर रए। फार्म खींचों है, मनो चुप रेहें का? उनके करम भूल जेहें। अपन तो सोचे बैंठे हैं बेटाहों को निपटाने है जा बेर। और अपनोई नई, दूसरे वार्डन में भी जाको असर हो रहो है। देखत जाओ अब, मोसे पंगा लओ है नेताजी ने। भगवान कसम भाईसाब, जिते जा रहों हों, उतई जा बात है। देखियो का हाल होने है जा बार। अपने चक्कर में जा आदमी ने पूरी पार्टी दांव पर लगा दई।

…तो काए पार्टी के भोपाल वालों खों जो नई दिखे?का पते, का करत हैं यार, सबे सब पतो है, कौन की का कहें, अपन तो अब बस एकई काम में जुटे हैं, हमें धोखा दओ है सो बाको नतीजा तो भुगतनेई पड़हे।

और दूसरे वार्डन में का हाल है?..अरे सबमें मचौना मचो है। जादें लोग तो अपनी घरवालियों खौं अध्यक्ष बनावे ऐसे बौरा रए हैं कि उन्हें नींदई नई आ रही। ऐसे में का हो रओ बताएं, दूसरे वार्ड के जो अध्यक्ष पद के दावेदार हैं न उनपे भी नजर रखके उन्हें भी अपनेई वाले निपटावे में जुट गए।
पार्षद बनवे के पहलेई?तो और का। पार्षद बन जेहें तो दावेदारी और न बढ़ जेहे। जासे अबे सेई काम शुरू हो गओ है। सामने वाले खों पार्षदई न बनने देओ, टंटा खत्म, फिर अपनई रह जेहें तो घरवाली को नाम और अपनो काम..।हओ भैया, देखत जाओ, जो चुनाव तो बहुतई मच गओ। देखियो वोट डलवे तक का-का होत है।