Saturday, October 4

नेशनल सिक्योरिटी कमेटी ने कहा- इमरान सरकार गिराने में US का हाथ नहीं, साजिश के आरोप बेबुनियाद

पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NSC) ने 15 दिन में दूसरी बार साफ कर दिया है कि इमरान खान सरकार गिराने में किसी विदेशी ताकत (अमेरिका) का हाथ नहीं है। इमरान खान के लिए NSC का यह बयान बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि वो अपनी हर रैली में यह आरोप लगा रहे हैं कि उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव अमेरिका के इशारे पर लाया गया था।

NSC की एक मीटिंग पिछले महीने हुई थी, तब इमरान प्रधानमंत्री थे। तब भी मीटिंग के मिनिट्स जारी किए गए थे और फौज ने साफ कर दिया था कि विदेशी साजिश के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

शहबाज शरीफ भी शामिल हुए
NSC की शुक्रवार को मीटिंग हुई। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसकी अध्यक्षता की। खास बात यह है कि इसमें वो असद मजीद भी शामिल हुए जिनके कथित लेटर पर विवाद है। शहबाज और मजीद के अलावा जॉइंट चीफ स्टाफ जनरल नदीम रजा, आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा, नेवी चीफ मोहम्मद अमजद खान नियाजी और एयरफोर्स चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर भी शामिल हुए। इनके अलावा डिफेंस मिनिस्टर ख्वाजा आसिफ, होम मिनिस्टर राणा सनाउल्लाह, इन्फॉर्मेशन मिनिस्टर मरियम औरंगजेब और विदेश राज्यमंत्री हिना रब्बानी खार भी इसका हिस्सा रहे।

दूसरी बार पुष्टि
NSC की मीटिंग के बाद जारी बयान में कहा गया- हमने फिर उस कथित लेटर की जांच की है। इसमें सरकार के खिलाफ विदेशी साजिश जैसी कोई बात नहीं है। विवादित लेटर या केबल का मुद्दा मार्च की शुरुआत में सामने आया था।

क्या है इस लेटर में
सबसे जरूरी यह जानना है कि इमरान जो कागज दिखा रहे थे, वो वास्तव में है क्या। पाकिस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट रिजवान रजी कहते हैं- यह कागज ब्लफ है, झूठ है और इसके सिवाए कुछ नहीं। कुछ महीनों पहले तक अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत थे असद मजीद। उनके बारे में ये जानना बेहद जरूरी है कि वो इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के सदस्य और इमरान के खास दोस्त हैं।

इमरान ने मजीद को एक मिशन सौंपा कि किसी तरह जो बाइडेन एक फोन इमरान को कर लें। यह हो न सका। फिर खान ने मजीद से कहा कि वो ये बताएं कि बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन इमरान सरकार और पाकिस्तान को लेकर क्या सोच रखती है। जवाब में मजीद ने एक बढ़ाचढ़ाकर इंटरनल मेमो लिखा। इसमें बताया कि व्हाइट हाउस को लगता है कि इमरान सरकार के रहते पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर नहीं हो सकते।

अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत ही नहीं
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी वकील और पॉलिटिकल एनालिस्ट साजिद तराड़ के मुताबिक- पहली बात तो यह कि यह ऑफिशियल कम्युनिकेशन नहीं है। यह एक ऐंबैस्डर का अपने विदेश मंत्रालय को लिखा इंटरनल मेमो है, जिसकी कोई कानूनी या डिप्लोमैटिक हैसियत नहीं।

दूसरी बात, अमेरिका को अब पाकिस्तान की कोई जरूरत नहीं। अगर होगी भी तो वो इमरान से मंजूरी क्यों मांगेगा? वो फौज से बात करता है और करता रहेगा। इसे आप इंटरनल मेमो, इंटरनल केबल, वायर या बहुत हुआ तो डिप्लोमैटिक नोट कह सकते हैं। ये तो बेहद आम चीज है। खान राई का पहाड़ बनाकर पॉलिटिकल माइलेज चाहते हैं।

एक्शन क्या लिया
पाकिस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट इमरान शफकत कहते हैं- चलिए मान लेते हैं कि इमरान खान को अमेरिका या किसी दूसरे मुल्क से धमकी मिली। तो वो ये लेटर दबाकर क्यों बैठे रहे? डिप्लोमैटिक चैनल्स के जरिए उस मुल्क से बात क्यों नहीं की? पाकिस्तान में अमेरिका का और अमेरिका में पाकिस्तान का परमानेंट एम्बेसडर लंबे वक्त से नहीं है, लेकिन चार्ज डि अफेयर्स (दूतावास प्रभारी) तो है, उसे क्यों नहीं बुलाया?

चार्ज डि अफेयर्स को बुलाकर उसे डिमार्शे (डिप्लोमैसी में किसी मुद्दे पर असहमति दर्ज कराने का सबसे हल्का तरीका) ही सौंप देते। सच्चाई ये है कि इमरान और उनके मंत्री अगले चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। खुद को सियासी शहीद बताने की कोशिश कर रहे हैं?