
भारत ने विकसित देशों से कहा है कि उन्होंने एनर्जी के खूब फल चखे हैं और उन्हें जल्द से जल्द ‘नेट जीरो एमिशन’ के लक्ष्य को पूरा करना चाहिए, ताकि विकासशील देश अपनी विकास की रफ्तार तेज करने के लिए कुछ कार्बन स्पेस का इस्तेमाल कर सकें। नेट जीरो एमिशन का मतलब है उत्पादित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों और भूमंडल से बाहर जाने वाले ग्रीनहाउस गैसों के बीच संतुलन बनाना।
ब्रिटेन के ग्लासगो में होने वाली UN क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस से पहले इस आयोजन में भारत के प्रतिनिधि पीयूष गोयल ने कहा कि भारत विकासशील देशों की आवाज बनेगा क्योंकि भारत आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के लिए जलवायु परिवर्तन से लड़ रहा है।
क्लीन एनर्जी के लिए नई तकनीकों की जरूरत
पीयूष गोयल ने कहा कि अभी ऐसी कोई तकनीक नहीं आई है जिससे बड़ी मात्रा में क्लीन एनर्जी को ग्रिड्स में सोखा जा सके। हम कब तक नेट जीरो का लक्ष्य पा सकेंगे यह तय करने से पहले हमें नई तकनीक और इनोवेशन तैयार करने की जरूरत है। इसके बाद ही हम कह पाएंगे कि कब तक नेट जीरो एमिशन का लक्ष्य हम पा सकेंगे।
मसला गरीब-अमीर देशों का नहीं
पीयूष गोयल के भाषण से पहले समिट के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने अपनी शुरुआती स्पीच में कहा था- वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री के अंदर रखने के हमारे लक्ष्य को जीवित रखने के लिए कॉप26 क्लाइमेट नेगोशिएंस ही हमारी आखिरी और सबसे अच्छी उम्मीद हैं। मसला अमीर या गरीब देशों का नहीं है, अब तो सब इससे प्रभावित हो रहे हैं और नतीजे भी देख रहे हैं। मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि अगर हम अब भी नहीं चेते तो मानवता हमें कभी माफ नहीं करेगी।
पेरिस एग्रीमेंट सिर्फ कागज पर कारगर रहा
2015 में पेरिस एग्रीमेंट हुआ था। इसका एक ही मकसद था कि कार्बन उत्सर्जन कम करके दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग से बचाया जाए। इसमें तय हुआ था कि सभी देश मिलकर सख्त कदम उठाएं और 1.5 डिग्री सेल्सियस नहीं तो कम से कम 2 डिग्री सेल्सियस तो तापमान कम करने का टारगेट हासिल किया जाए। बदकिस्मती से यह समझौता कागज पर जितना कारगर दिखता है, हकीकत में देश इसे लागू करने में नाकाम रहे। सब अपनी-अपनी मजबूरियां गिनाते रहे, लेकिन विश्व पर्यावरण की चिंता किसी ने नहीं की।