Monday, September 29

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस:मध्यप्रदेश में हर साल 3.75 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में कम हुए, लेकिन इन पर खर्च 1470 करोड़ से बढ़कर 5000 करोड़ हो गया

  • दावा- 10 साल में साक्षरता दर 53% से बढ़कर 70 फीसदी हुई
  • हकीकत- इसी दौरान स्कूलों में 40.13 लाख बच्चे कम हो गए
  • 2010-11 में सरकारी स्कूलों में 100.97 लाख पंजीकृत थे, जो 2019-20 में 65 लाख रह गए
  • इन 10 साल में प्राइवेट स्कूलों में सिर्फ 3 लाख 53 हजार बच्चे ही बढ़े, फिर भी 37 लाख का हिसाब नहीं

प्रदेश में भले ही साक्षरता दर हर साल बढ़ रही हो, लेकिन इस सरकारी दावे से हकीकत एकदम अलग है। दरअसल, प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पिछले 10 साल में पहली से आठवीं तक के 40 लाख 13 हजार बच्चे कम हो गए।

इन स्कूलों में 2010-11 में बच्चों की संख्या 100.97 लाख थी, जो 2019-20 में घटकर 65 लाख 84 हजार रह गई। यानी हर साल औसतन 3 लाख 75 हजार बच्चे कम होते गए। जबकि सरकार का दावा है कि इन 10 सालों में साक्षरता दर 53% से बढ़कर 70 फीसदी हो गई। माध्यमिक स्कूली शिक्षा का बजट भी 1470 करोड़ से बढ़कर 5000 करोड़ रुपए हो गया है। सरकारी स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या ने चिंता बढ़ा दी है। राज्य सरकार अब यह जांच करा रही है कि आखिर ये 40 लाख 13 हजार बच्चे कहां चले गए।

सवाल- सरकारी स्कूलों के बच्चे कहां गए

सरकार का दावा- जिन्होंने सरकारी स्कूल छोड़ा, वे आरटीई के तहत निजी स्कूल गए

माध्यमिक शिक्षा के अफसरों से जब पूछा गया कि आखिर ये 40 लाख बच्चे कहां गए? सरकारी स्कूलों में बच्चे बढ़ने के बजाय घट कैसे गए? तो उन्होंने दावा किया कि जिन बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़ा वे शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में गए। लेकिन इस दावे की पड़ताल में पता चला कि निजी स्कूलों में 2010-11 में बच्चों की संख्या 47 लाख 27 हजार थी, जो 2019-20 में 50.80 लाख हो गई। यानी 10 साल में 3 लाख 53 हजार बच्चे निजी स्कूल गए। फिर बचे हुए 37 लाख 50 बच्चे कहां गए?

10 साल में आबादी 18% बढ़ी, इस हिसाब से मप्र में 20 लाख बच्चे बढ़ने चाहिए थे

  • पिछले 10 साल में प्रदेश की आबादी 18% बढ़ी है। इस लिहाज से 2010-11 में 1 करोड़ 6 लाख बच्चे थे तो इसमें 20 लाख की बढ़ोतरी होनी थी।
  • वर्तमान में पहली से आठवीं तक स्कूलों में बच्चों की संख्या 1 करोड़ 26 लाख होनी थी, जो 65 लाख 41 हजार है।
  • पहली से पांचवीं तक के बच्चों की संख्या 20 लाख बढ़नी थी, जो 1 करोड़ 6 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 26 लाख हो जाती, लेकिन अभी ये 64 लाख 58 हजार कम है।

65 लाख बच्चों को 1100 करोड़ की ड्रेस, किताबें और मिड-डे मील बांट दिया
छात्रों को दी जाने वाली सुविधाओं के हिसाब से प्रदेश में जितने बच्चों के नामांकन हुए उसी हिसाब से उन्हें ड्रेस, पुस्तकें और मध्यान्ह भोजन बांटा गया। जबकि हाल ही में हुई लोक लेखा समिति की बैठक में स्कूल शिक्षा विभाग के अफसरों ने स्वीकार किया कि माध्यमिक स्कूलों में औसतन बच्चों की उपस्थिति 20 से 25 फीसदी ही रहती है, लेकिन 65 लाख बच्चों को ड्रेस, पुस्तकें और मध्यान्ह भोजन वितरण करने में 1100 करोड़ रुपए खर्च किए।

बच्चे घट रहे हैं, इसकी जांच कराएंगे
माध्यमिक (पहली से आठवीं तक) शालाओं में बच्चों की संख्या कम हो रही है, इसका परीक्षण करवाया जाएगा। इसके बाद जो भी निष्कर्ष आएगा, उसके हिसाब से आगे फैसला लिया जाएगा। – इंदर सिंह परमार, स्कूल शिक्षा मंत्री