Friday, September 26

जलवायु परिवर्तन:आर्कटिक पर तेजी से पिघलती बर्फ की वजह से भारत में नम हवाओं का नया स्रोत बना; इससे तूफान, बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं तेज होंगी

भारतीय उपमहाद्वीप यानी बांग्लादेश से नेपाल, दक्षिणी चीन और भारत होते हुए अफगानिस्तान तक का पूरा क्षेत्र लगातार तूफानी बारिश, बाढ़ और बादल फटने जैसी विपदाओं का सामना कर रहा है। ग्लेशियोलॉजिस्ट पॉल मायेव्स्की का कहना है कि आने वाले समय में इन घटनाओं की तीव्रता और बढ़ेगी।

कारण…आर्कटिक, एंटार्कटिक और एवरेस्ट के ग्लेशियरों की बर्फ का तेजी से पिघलना। पॉल दुनिया के अकेले ग्लेशियोलॉजिस्ट हैं जिन्होंने इन तीनों ही क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन किया है। वे दुनिया के सबसे पुराने क्लाइमेट चेंज इंस्टीट्यूट, यूनिवर्सिटी ऑफ मेन के निदेशक भी हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में बाढ़-सूखा बढ़ क्यों रहे हैं?
भारत में नमी के स्रोत दक्षिण और पश्चिम के क्षेत्र रहे हैं। लेकिन कुछ सालों से आर्कटिक पोल से भी नमी भारत पहुंच रही है। इसका कारण यह है कि जलवायु परिवर्तन की मार सबसे ज्यादा आर्कटिक, एंटार्कटिक और हिमालय के ग्लेशियर्स पर पड़ रही है। जहां दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री रही है, वहीं इन क्षेत्रों में वार्मिंग 4 डिग्री तक मापी गई है। बर्फ तेजी से पिघल रही है और इनकी नमी लेकर हवाएं तेजी से हिमालय के उत्तर और दक्षिण में बहने लग रही है।

जब ये ठंडी हवाएं, निचले इलाकों की गर्म हवाओं से टकराती हैं तब तूफान बनता है। लिहाजा भारत में तूफानी बारिश और बाढ़ की आशंका बढ़ने लगी हैं। जंगल घटने से बारिश जमीन बहाकर नदियों को भर दे रही है। लिहाजा थोड़ी सी बारिश भी बाढ़ बन जाती है। बारिश खत्म होते ही नदियों में बहाव एकदम थम जाता है और सूखा पड़ जाता है।

इस परिस्थिति में कितनी तेजी से बदलाव हो रहा है?
90 के दशक में हमें लगता था कि बदलते परिवेश का असर लोगों को 50 से 90 सालों में महसूस होगा। लेकिन अब यह 10 से 30 सालों में दिखने की आशंका है। क्या आपको महसूस नहीं हो रहा कि बादल फटने की खबरें बढ़ी हैं। बादल फटने का मतलब है नमी इतनी ज्यादा होना कि दिनों में होने वाली बारिश कुछ घंटों में हो जाए। हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियल लेकबर्स्ट बढ़ेंगे।

रोजमर्रा का जीवन कैसे प्रभावित हो रहा है?
बर्फ स्पंज की तरह प्रदूषण सोख लेती है। ग्लेशियर में एकत्रित जहरीले तत्वों से नदियां दूषित हो रही हैं, इनका पानी पीने वाले बीमार हो रहे हैं। साथ ही बर्फ का रंग स्लेटी होने लगा है। वातावरण की गर्माहट छिटकने के बजाय देर तक बर्फ में बनी रहती है। जो बर्फ के पिघलने की रफ्तार को बढ़ा रहा है। इससे हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी से बारिश ज्यादा हो रही है।

आम आदमी के पास उपाय क्या है?
इस समस्या की कोई वैक्सीन नहीं बन सकती, एकमात्र उपाय ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करना है। जब तक वैभव की परिभाषा नहीं बदलेगी और जलवायु राजनीतिक मुद्दा नहीं बनेगी, तब तक समस्या बनी रहेगी।

जलवायु परिवर्तन का सबसे भयानक स्वरूप कैसा होगा?
ग्लेशियर की बर्फ के नीचे करोड़ों टन मीथेन गैस जमा है। बर्फ की परत जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहते हैं, अगर उसके पिघलने से मीथेन वातावरण में आ गई तो ये वातावरण में गर्मी को रोके रखने की क्षमता 30 से 50 गुना तक बढ़ा सकती है। गर्मी बढ़ने से दुनिया का आइस कवर पिघला तो समुद्र का स्तर 70 मीटर तक बढ़ जाएगा। जो समुद्र के करीब नहीं रहते हैं उन्हें भीषण सूखा, जंगल में आग और धूल के बवंडर झेलने पड़ जाएंगे।