
लखनऊ की रहने वाली ममता जब सोमवार को कोवीशील्ड की दूसरी डोज लगवाने के लिए अपने नजदीकी वैक्सीनेशन केंद्र पहुंचीं तो उन्हें टीका लगाने से मना कर दिया गया। उन्हें बताया गया कि पहले से निर्धारित तारीख पर टीका नहीं लग सकता, क्योंकि सरकार ने वैक्सीन लगाने की अवधि बढ़ा दी है और अब उन्हें वैक्सीनेशन के लिए डेढ़ महीने बाद यानी 1 जुलाई को आना होगा।
ऐसा तब हो रहा है जबकि एक दिन पहले ही स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से स्पष्टीकरण जारी किया जा चुका है कि अगर ऐसे लोग वैक्सीनेशन सेंटर पर आते हैं, जिनका रजिस्ट्रेशन पहले से है तो उन्हें वैक्सीन लगाई जानी चाहिए। इसके बावजूद अब भी यूपी में कोवीशील्ड की दूसरी डोज के लिए आए लोगों को लौटाने की प्रक्रिया जारी है। जिससे वैक्सीनेशन और खासकर दूसरी डोज लगवाने वालों की संख्या में तेजी से कमी आई है।
वैक्सीन के प्रभाव को लेकर यह साबित हो चुका है कि टीका लगने के बाद कोरोना से होने वाली मौत का डर लगभग शून्य हो जाता है। फिर भी वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में कोई खास तेजी नहीं आ सकी है। मई में वैक्सीनेशन में जबरदस्त गिरावट के बाद जब सरकार पर दबाव बढ़ा तो सरकार ने राज्य सरकारों से दूसरी डोज लगवाने वालों को वैक्सीनेशन में वरीयता देने की अपील की लेकिन यह शिगूफा साबित हुई। सच्चाई यह है कि पिछले हफ्ते में सिर्फ 2 दिन पहली डोज के मुकाबले दूसरी डोज लेने वालों को ज्यादा वैक्सीन लगी, बाकी 5 दिन पहली डोज लगवाने वालों की संख्या, दूसरी डोज वालों से 1.5 से 2 गुना ज्यादा रही।
आलम यह है कि रविवार को देशभर में जहां 6 लाख से ज्यादा लोगों को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज दी गई, वहीं सिर्फ 71 हजार लोगों को दूसरी डोज लगाई जा सकी। रविवार को वैक्सीनेशन में गिरावट आम बात है लेकिन दूसरी डोज लगवाने वालों की संख्या में इतनी बड़ी गिरावट सिस्टम की असफलता साफ बयान करती है। इस आंकड़े से यह भी पता चलता है कि वैक्सीनेशन प्रोग्राम को नुकसान पहुंचाने में सरकार के कोवीशील्ड लगाने की अवधि बढ़ाने वाले फैसले का ‘अहम योगदान’ है।
मौत का आंकड़ा बढ़ गया फिर भी लचर रही वैक्सीनेशन की रफ्तार
सोमवार को 3 लाख से कम कोरोना संक्रमण के मामले आने से पहले लगातार 26 दिनों तक देश में 3 लाख से ज्यादा मामले आए। इससे भी ज्यादा चिंता की बात रहा, मौतों का आंकड़ा। एक ओर जहां गंगा, यमुना आदि नदियों में लावारिस शव बहने की खबरों से देश में कोरोना से होने वाली मौत के असली आंकड़ों पर सवालिया निशान लगे, वहीं दूसरी ओर संक्रमण के अनुपात में आधिकारिक मौतों में भी बढ़ोतरी हुई। देश में 28 अप्रैल के बाद से सिर्फ 2 दिन छोड़कर अब तक रोज 3500 से ज्यादा मौतें कोरोना से हुई हैं। 6 दिन मौतों का आंकड़ा 4000 के भी पार रहा है। कोरोना संकट के गंभीर होते जाने के बावजूद वैक्सीनेशन की प्रक्रिया लचर ही रही है।
भारत में अब तक करीब 4 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज लगे हैं और केंद्र सरकार ने जुलाई के अंत तक 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगाने का लक्ष्य रखा है। यानी 16 जनवरी से शुरू हुए वैक्सीनेशन प्रोग्राम के तहत औसतन 3.3 लाख लोगों को रोजाना कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लग रही हैं।
जुलाई का वैक्सीनेशन लक्ष्य पाने के लिए रोज लगानी होंगी 55 लाख वैक्सीन
इन आंकड़ों के मुताबिक वैक्सीनेशन प्रोग्राम अपने जुलाई के लक्ष्य से पिछड़ गया है और अगर सरकार इस लक्ष्य को पाना चाहती है तो उसे अगले 84 दिनों में करीब 26 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगानी होंगी। इसके लिए सरकार को रोज 27.50 लाख लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगाने की जरूरत होगी।
यानी टारगेट पूरा करने के लिए अब रोज 55 लाख वैक्सीन की डोज लगाने की जरूरत होंगी। जबकि कोविन डैशबोर्ड के मुताबिक पिछले पूरे हफ्ते में कुल मिलाकर सिर्फ 1.24 करोड़ वैक्सीन ही लगाई जा सकीं यानी प्रतिदिन 17.78 लाख वैक्सीन डोज ही लगीं। यह आंकड़ा जरूरी आंकड़े के एक-तिहाई से भी कम है।
वैक्सीन लगवाने वालों की लाइन लंबी होती गई, नहीं बढ़ी वैक्सीन
मसला सिर्फ वैक्सीन लगाने का नहीं है, बात यह है कि तेज वैक्सीनेशन के लिए जितने टीकों की जरूरत है, सरकार की खराब प्लानिंग की वजह से वह भी देश में उपलब्ध नहीं है। एक ओर जहां वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी, वहीं दूसरी ओर सरकार वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या भी बढ़ाती जा रही थी।
भारत में दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन कार्यक्रम फ्रंटलाइन कर्मचारियों को वैक्सीन लगाने से शुरू हुआ था। मार्च से 60 साल से अधिक के लोगों और 45 साल से अधिक के गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को भी इसमें शामिल कर लिया गया। एक महीने बाद 45 साल से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन लगाई जाने लगी और 1 मई से वैक्सीनेशन प्रोग्राम में 18 साल से अधिक के सभी लोगों को शामिल कर लिया गया। जिससे वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या करीब 110 करोड़ हो गई।
हर्ड इम्यूनिटी पाने के लिए करीब 70% लोगों को लगानी होगी वैक्सीन
अब तक भारत की सिर्फ 11% जनसंख्या को ही कोरोना वैक्सीन की कम से कम एक डोज लगी है और सिर्फ 3% जनसंख्या को दोनों डोज लग चुकी हैं। ऐसे में अगर भारत हर्ड इम्यूनिटी के करीब भी पहुंचना चाहता है तो उसे कुल जनसंख्या के करीब 70% का दोनों डोज वैक्सीनेशन करना होगा।
ऐसे में जुलाई के लक्ष्य को पाने के लिए 55 लाख डोज प्रतिदिन लगाए जाने की बात तो दूर, अगर भारत 30 लाख लोगों को भी रोजाना वैक्सीनेट करने की कोशिश करता है तो भारत सरकार का 2 करोड़ वैक्सीन ऑर्डर का नया स्टॉक एक हफ्ते में ही खत्म हो जाएगा।
और वैक्सीन डोज आने में अभी लगेगा समय
वैक्सीन निर्माण के मामले में भारत सबसे ज्यादा क्षमता वाला देश है। यह एक महीने में ही 7-8 करोड़ वैक्सीन का निर्माण कर सकता है। फिलहाल सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, हर महीने कोवीशील्ड की 6-7 करोड़ डोज का निर्माण कर रहा है। जबकि भारत बायोटेक कोवैक्सिन की करीब 1 करोड़ डोज हर महीने बना रहा है। ये दोनों ही निर्माता अपनी वैक्सीन निर्माण क्षमता को और बढ़ाने वाले हैं लेकिन इस प्रक्रिया में अभी समय लगेगा।
बढ़ाया जाएगा वैक्सीन का उत्पादन, लेकिन अभी देर
सरकार की ओर से वैक्सीन निर्माण क्षमता बढ़ाए जाने को लेकर भी एक कार्यक्रम शुरू किया गया है। सीरम इंस्टीट्यूट के CEO अदार पूनावाला ने फाइनेंशियल टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा था कि जुलाई तक वैक्सीन उत्पादन बढ़कर 10 करोड़ डोज प्रतिमाह पहुंच सकता है। केंद्र ने पिछले महीने कोवैक्सिन का निर्माण बढ़ाने की बात भी कही। मई-जून से यह दोगुना होकर 2 करोड़ डोज प्रतिमाह होगा, फिर जुलाई-अगस्त तक यह 6-7 करोड़ डोज प्रतिमाह हो जाएगा। सितंबर तक इसकी क्षमता 10 करोड़ डोज प्रतिमाह हो जाएगी।
वहीं रूस की स्पुतनिक वैक्सीन को भारत में प्रयोग की अनुमति मिलने के बाद रशियन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट फंड ने भारत की 6 कंपनियों के साथ वैक्सीन निर्माण के लिए पार्टनरशिप की है। ये कंपनियां साथ मिलकर 85 करोड़ वैक्सीन का निर्माण करने वाली हैं। कंपनियों ने यह भी इशारा किया है कि वे जुलाई से देश में ही वैक्सीन का निर्माण शुरू कर देंगी, जिसके बाद वैक्सीन सप्लाई और बढ़ने के आसार हैं। हालांकि जिन वैक्सीन का निर्माण होगा, उनके एक हिस्से का निर्यात भी किया जाएगा। भारत में रूसी वैक्सीन की विक्रेता कंपनी डॉ. रेड्डीज को अभी स्पुतनिक V वैक्सीन की पहली 1.5 लाख वैक्सीन डोज की खेप इस महीने मिली है और वैक्सीन जून से देश में आने का अनुमान है।
अन्य वैक्सीन को अनुमति देने की प्रक्रिया भी तेज हुई, फिर भी महीनों का इंतजार
जिन कोविड-19 वैक्सीन को पश्चिमी देश और जापान पहले ही अनुमति दे चुके हैं, भारत ने उनकी अनुमति प्रक्रिया को भी तेज करने का निर्णय किया है। इससे फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन और मॉडर्ना वैक्सीन के जल्द भारत में आने के रास्ते भी खुल गए हैं।
हालांकि इनमें से कोई भी वैक्सीन जल्द मार्केट तक नहीं पहुंचेगी। फाइजर की अनुमति को लेकर सरकार अब भी बातचीत के दौर में है। जबकि जॉनसन एंड जॉनसन ने भारतीय वैक्सीन निर्माता बायोलॉजिकल ई के साथ समझौता कर लिया है, लेकिन इस वैक्सीन के भारत में बनने की प्रक्रिया शुरू होने में अब भी 4-5 महीने का समय है। हालांकि बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा है कि जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन के उत्पादन की प्रक्रिया जल्द से जल्द जून-जुलाई तक भी शुरू की जा सकती है।
फिर भी विदेशी वैक्सीनों के भारत में आने तक कम से कम तीन महीने देश को सिर्फ अपनी वैक्सीन से ही काम चलाना पड़ेगा। वैक्सीन निर्माण के लिए जरूरी बड़े प्लास्टिक कंटेनर की कमी से भी निर्माण प्रक्रिया धीमी हुई है। इन चीजों के निर्यात पर अमेरिका ने बैन लगा रखा है ताकि फाइजर अमेरिका के लिए वैक्सीन निर्माण कर, वहां की जरूरतों को पूरा कर सके। पूनावाला इससे सप्लाई चेन में जबरदस्त गिरावट की चेतावनी भी दे चुके हैं।
राज्यों और प्राइवेट हॉस्पिटल को वैक्सीन डिलीवरी में हो सकती है देरी
एक बड़ी समस्या यह भी है कि केंद्र कोवैक्सिन और कोवीशील्ड के स्टॉक को जहां 150 रुपए में खरीदेगी, वहीं 28 राज्यों और सैकड़ों प्राइवेट हॉस्पिटलों को दोगुना और आठ गुना दाम चुकाना होगा। सीरम इंस्टीट्यूट ने पिछले महीने कहा कि उसे राज्यों से कोवीशील्ड के 34 करोड़ डोज के और प्राइवेट अस्पतालों से 2 करोड़ डोज के ऑर्डर मिले हैं। हालांकि सीमित निर्माण क्षमता की वजह से इनकी डिलीवरी में देरी होने और रुकावट आने के आसार हैं।
ऐसे में अगले तीन महीने तक भारत वर्तमान निर्माण क्षमता के अनुसार 8 करोड़ वैक्सीन डोज के हिसाब से अधिक से अधिक 13 लाख लोगों को ही एक दिन में वैक्सीनेट करने के बारे में सोच सकता है। जानकारों के मुताबिक वायरस संक्रमण और भविष्य में फिर से संक्रमण फैलने के खतरे को रोकने के लिए यह अपर्याप्त होगा। ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि कम लोगों को ही टीका लगाया जा सकेगा बल्कि इसलिए भी भारत में लगातार बढ़ते मामलों की वजह से कोरोना और चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है और अब तो संक्रमण से रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा भी 4 हजार के पार जा चुका है।
15% जनसंख्या को दोनों वैक्सीन डोज लगाने से मामले हो सकते हैं स्थिर
वैक्सीनेशन से ही नए संक्रमणों को रोका जा सकता है। 18 से 44 साल के बीच के लोगों को वैक्सीन लगाना बहुत जरूरी है क्योंकि 62% कोरोना संक्रमण के मामले 40 साल से कम उम्र के लोगों के हैं।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन निर्माण की क्षमता में हुई बढ़ोतरी और आयात के बल पर भारत इस साल अक्टूबर तक कुल 104.8 करोड़ वैक्सीन डोज लोगों को लगा सकता है। जिससे देश की 15% जनसंख्या को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज और 63% जनसंख्या को पहली डोज लगाई जा सकती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अन्य देशों का अनुभव दिखाता है कि देश की 15% जनसंख्या को वैक्सीन की दूसरी डोज लगने के बाद नए संक्रमण के मामले स्थिर हो जाते हैं।’
वैक्सीन डोज की कमी के लिए सरकार की लापरवाही जिम्मेदार
फिलहाल वैक्सीन डोज की कमी सबसे बड़ी समस्या है। और इसके पीछे बड़ी वजह भारत का सिर्फ दो वैक्सीन पर निर्भर रहना भी है। भारत बायोटेक उत्पादन बढ़ाने की जद्दोजहद कर रही है। पश्चिमी देशों से उलट भारत सरकार ने वैक्सीन के लिए एडवांस में बड़े ऑर्डर नहीं दिए, जिससे ये वैक्सीन निर्माता अपनी क्षमता नहीं बढ़ा सके। भारत सरकार ने इन वैक्सीन निर्माताओं को एडवांस पेमेंट भी 28 अप्रैल से देनी शुरू की, जब राज्यों ने अपने यहां वैक्सीन की कमी होने का शोर मचाना शुरू कर दिया। अब तो कुछ राज्य अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं से भी वैक्सीन खरीदने की कोशिश कर रहे हैं।
कुछ दिन पहले अदार पूनावाला ने फाइनेंशियल एक्सप्रेस को दिए अपने इंटरव्यू में खुलासा किया कि भारत सरकार ने फरवरी के अंत में कोवीशील्ड की 2.1 करोड़ डोज का ही ऑर्डर दिया था लेकिन यह नहीं बताया था कि यह और वैक्सीन कब खरीदेगी। उन्होंने कहा, ‘सीरम इंस्टीट्यूट ने पहले अपनी क्षमता को इसलिए नहीं बढ़ाया क्योंकि कोई ऑर्डर ही नहीं दिए गए थे, हमने नहीं सोचा था कि हमें एक साल में 100 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की जरूरत होगी।’ सरकार ने मार्च में तब जाकर 11 करोड़ वैक्सीन डोज का ऑर्डर दिया, जब कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे।