Wednesday, September 24

मध्यप्रदेश के गांवों से ग्राउंड रिपोर्ट:दो बार घर-घर सर्वे और बायकॉट की चेतावनी देकर कोरोना से जीती जंग, कुछ गांव ऐसे जहां बीमारी के डर से ज्यादा विस्थापन का दर्द

सागर से कोई 60 किलोमीटर दूर नौरादेही अभयारण्य में बसा गांव खापा। यहां विस्थापन हो रहा है, इसलिए कोरोना को लेकर कोई चर्चा नहीं है। इन्हें कोरोना से बचने से ज्यादा रोटी, कपड़ा और मकान की चिंता है। वहीं, नीमच जिले के 25 किलोमीटर के दायरे के तीन गांवों की कहानी एकदम अलग है। इन गांव के लोगों के तीन प्रयासों ने कोरोना को फटकने भी नहीं दिया।

1. तीन गांवों की कहानी

जिले का गांव अल्हेड़। दोपहर 12 बजे यहां पहुंची, तो कुछ युवा गांव के मुख्य मार्ग पर कांटे लगाकर नाकेबंदी कर रहे थे। किशोर पाटीदार बोले- रास्ता तो 20 दिन से बंद है, आज तो यहां और ज्यादा झाड़ियां लगा रहे हैं ताकि कोई खोल नहीं पाए।

दशरथ ने बताया- चार दिन पहले यहां मरीज थे, अब सब ठीक हैं। सरपंच पति श्यामलाल वसीटा ने बताया- मुझे और पिताजी को कोरोना हो गया था। पिताजी की मौत हो गई। मैं अब ठीक हूं। गांव में अब तक 50 मौतें हो चुकी है। हर दूसरे घर में सर्दी-खांसी और बुखार के मरीज थे। तब कोरोना को हराने के लिए दो बार सर्वे कराया। जांच कराई और जो पॉजिटिव निकले, उनका इलाज कराया। लोग डरे हुए हैं, लेकिन अब केवल 15 मरीज बचे हैं, वे भी ठीक हो रहे हैं।

जहां मौतें हुई, उनके घर जाकर हाथ जोड़े, मृत्युभोज रुकवाया
4000 की आबादी वाला गांव पिपल्या रावजी। दोपहर 2 बजे गांव में सन्नाटा था। इस गांव में अब 12 पॉजिटिव मरीज हैं। कभी 1000 से ज्यादा लोग सर्दी-खांसी और बुखार से पीड़ित थे। इनमें से 15 की मौत हो गई थी। इन मौतों के बाद गांव को कोरोना से मुक्त करने के लिए कड़े कदम उठाए गए।

सरपंच रमेशचंद्र पाटीदार ने बताया कि लोगों से कोरोना गाइडलाइन मानने की अपील की। असर कम दिखाई दिया तो चेतावनी दी कि अब यदि मास्क नहीं पहना तो गांव से बहिष्कार कर दिया जाएगा। इसके बाद लोग सहयोग करने लगे। जिन परिवारों में मौतें हुई थी, उनके घर गए। हाथ जोड़कर मृत्युभोज रुकवाया। शादियों पर भी पूरी तरह प्रतिबंध लगाया। धर्मशाला पर ताला लगाकर उसे सील कर दिया। डॉ. मुकेश राठौर ने बताया- लक्षण दिखाई देते ही मरीजों का इलाज किया गया, इससे संक्रमण फैलने से रुका।

एक व्यक्ति शहर जाकर सबके लिए सामान ले आता है
प्रदेश के पहले 125 मेगावाट बिजली उत्पादन वाले सोलर प्लांट के नजदीक बसे भगवानपुरा गांव में शाम 4 बजे लोग मास्क लगाए दिखे। यह ऐसा गांव है जहां 14 महीने में कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिला। इसकी प्रमुख वजह के बारे में सरपंच सुखदेव गुर्जर दावा करते हैं कि यह नीम का काढ़ा और गोमूत्र से हुआ। अब तो गांव के लोग भी आगे रहकर इसका सेवन करने लगे हैं।

वे कहते हैं कि इस गांव ने शहर से भी दूरी बना रखी है। एक व्यक्ति शहर जाकर 5-10 परिवार की जरूरत का सामान ले आता है। इससे सभी को शहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। सरपंच गुर्जर ने बताया- गांव में पिछले एक महीने में केवल एक मौत हुई, वह भी हार्टअटैक से। यहां अब तक किसी को कोरोना नहीं हुआ। 85 साल की मां सजनी बाई की तबीयत बिगड़ी थी, लेकिन कोरोना नहीं था, वे अब स्वस्थ हैं। गांव में अब तक 16 लोगों को टीके लगे हैं।

2. अफ्रीकी चीतों को बसाने के लिए विस्थापन

सागर के नौरादेही अभयारण्य में बसे गांव खापा में कोरोना ने दस्तक नहीं दी है। अब यह गांव वीरान हो रहा है। यहां रह रहे लोगों को फिलहाल कोरोना से बड़ी चिंता अपनी गृहस्थी का सामान समेटने की है। लोग अपने घरों को तोड़ रहे हैं। जरूरी सामान उठाकर ट्रैक्टर-ट्रॉली में भर रहे हैं।

टीम उबड़-खाबड़ रास्तों और नदी-नालों को पार कर अभयारण्य में 30 किमी अंदर बसे खापा गांव पहुंची। यहां 50 परिवार थे, जो अपने हाथों से अपने आशियाने गिरा रहे थे। अपनी जमीन छोड़कर जाने का दर्द इनके चेहरे से साफ झलक रहा था।

जब कोरोना के बारे में बात की, तो यहां के रहने वाले महेंद्र सिंह ने कहा- वन विभाग के अफसरों ने जंगल खाली करने के लिए दो दिन का समय दिया है, इसलिए हम लोग जंगल से परिवार समेत विस्थापित होकर देवरी जाने की तैयारी कर रहे हैं। जंगल में प्रकृति बीच रहते हुए हमने कभी कोरोना को नहीं जाना, लेकिन जहां जा रहे हैं। सुना है कि वहां यह बीमारी (कोरोना) है। कुछ लोगों के मरने की जानकारी भी मिली है, इसलिए अब हम भी वहां मर्यादा का पालन करेंगे। मास्क लगाएंगे।

नौरादेही अभयारण्य में दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए सरकार ने सागर और दमोह जिले की सीमा में बसे करीब 120 गांवों के विस्थापन की सूची तैयारी की। इसमें अभी तक 15 गांव विस्थापित हो चुके है। इन्हीं में खापा गांव भी शामिल है। नौरादेही अभयारण्य के गांवों में बुखार और सर्दी-खांसी के मरीज हैं, लेकिन सरकारी आंकड़ों में यहां मरीजों और मौतों की गिनती शून्य है, क्योंकि यहां आज तक स्वास्थ्य विभाग की टीम ही नहीं पहुंची।

गांव की सीमा पर पहरा, रिश्तेदारों को बुलाने पर भी रोक
खापा गांव से आगे बढ़कर हम जंगल के रास्ते 6 किमी दूर उनारीखेड़ी गांव पहुंचे। लोगों ने गांव की सीमा पर पहरा लगाया है। हर 4 घंटे एक ग्रामीण की जिम्मेदारी होती है कि वह बाहर से आने वालों से पूछताछ करें। गांव में रिश्तेदारों को बुलाने की भी मनाही है। गांव के राधेश्याम बताते हैं कि हम भले ही जंगल में रह रहे हैं, लेकिन शहर के लोगों से कहीं ज्यादा अनुशासित हैं। गांव में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश बंद है।

मंदिर के चबूतरे पर मिले लाल सिंह बोले- हम जंगल में रहते हैं, इसलिए हमारे गांव में कोरोना नहीं है। छोटू जैन ने कहा- सर्दी-खांसी बुखार आता है, तो जंगली काढ़ा पी लेते हैं। उन्होंने बताया कि यदि गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है तो उसे झालौन या छिरारी में बंगाली डॉक्टरों के पास ले जाते हैं। तेंदूखेड़ा का सरकारी अस्पताल तो यहां से 50 से 60 किमी दूर है। यहां न तो कभी एंबुलेंस आती है और न डॉक्टर।
राशन दुकान पर दो माह बाद राशन मिला तो टूट पड़े ग्रामीण
तेंदूखेड़ा स्थित बम्हौरी गांव में सरकारी राशन दुकान पर ग्रामीणों की भीड़ लगी थी। न सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल, न मास्क। ग्रामीण मोहन रैकवार ने बताया कि दो माह बाद राशन बंट रहा है। लॉकडाउन के चलते मजदूरी नहीं मिल रही, अब कोरोना के डर से राशन भी छोड़ देंगे तो परिवार भूख से मर जाएगा।