आंदोलन निश्चित ही हितों की रक्षा का एक प्रमुख हथियार है ।ओर इस हथियार से अपने हितों की रक्षा के साथ ही दशा ओर दिशा दोनों तय की जाती है । पर जव यह हथियार दिशा हीन होकर जिद्द पकड़ ले तो उससे किसी का भला नहीं होता न तो आंदोलन करनेवाले का ओर नाही जिसके खिलाफ आंदोलन किया जा रहा उसका ।

इस समय यही हाल देश मे चल रहे किसान आंदोलन का देखने को मिल रहा है । किसनों के हित के लिए मोदी सरकार ने संसद तीन विल पास किये जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य के साथ उनके विकास का रास्ता भी खुल सके इस पर किसानों को कई विंदुओं पर शंका है उसको लेकर सरकार ने किसान नेताओं को लिखित भरोसा दिया पर किसान अव पूरा विल ही बापिस करने पर अढ़ गये है ।
पिछले पंद्रह दिनों से दिल्ली के बार्डर पर किसानों का लग्जीरियस आंदोलन चल रहा है किसान दिल्ली मे घुसने की जिद्द कर रहे है उन्होंने दिल्ली सहित आसपास के फ्लाईओवर को बंधक बना रखा है ऐसे में आम आदमी को काफी परेशानी हो रही है ।उधर सरकार ओर किसानों के बीच इस समस्या का हल निकालने के लिए कई बैठक हुई पर सव बेनतीजा निकली कारण किसानों के आंदोलन मे राजनीति का प्रवेश हो गया है देश कु वाइस राजनैतिक पार्टी समर्थन में उतर आईं है । ऐसे में समस्या का हल निकालने की जगह समस्या को उलझाने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार के सामने भी बढी चुनौती है यदि वह पीछे हटती है तो उसके सुधार कार्यक्रम पर असर पडेगा । ओर किसान जिद्द पर अड़े है ओर समस्या का समाधान तो सिर्फ बातचीत से ही सम्भव है ।