कोरोना संकट ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है ।इससे दुनिया का कोई देश अछूता नहीं रहा ।बढे बढे देश की अर्थव्यवस्था जमीन पर आ गई ,अमेरिका जैसा देश भी इस संकट के आगे वौना सावित हो रहा है ।मौतों के आंकड़े हों या संक्रमित होने के सभी में ये साधन सम्पन्न देश असहाय दिखाई दे रहे है ।उनकी तुलना में हम यदि भारत की बात करे तो दोनों ही मामले में अन्य देशो की तुलना में बहुत बेहतर स्थिति में है।

भारत की केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रीओं को साथ लेकर जो काम किया है वह सराहनीय है। यहां के लोगों ने भी देश के प्रधानमंत्री की बातोँ का पालन बढी ही सिद्धत से किया है। उसी का परिणाम है जो.भारत को एक बढे संकट से बचा पाया ।हालांकि इसके लिए केन्द्र सरकार को बहुत बढी कीमत चुकानी पडी ।
देश की अर्थव्यवस्था को ठप्प करके देश के लोगों की सलामती करना बडा निर्णय रहा हें ।इसके लिए केन्द्र सरकार को विपक्ष की आलोचना का सिकार भी होना पढा है।
अव सबाल यही है एक ओर देश के नागरिकों को सुरक्षित रखने की चुनौती तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था की चिंता ,दोनों के बीच तालमेल बिठा कर निर्णय लेना कठिन काम होता है ।पर जव नागरिक ही नहीं बचेंगे तो अर्थ व्यवस्था क्या करेगी ।यह सही है जिस तरह से लॉकडाउन हुआ ओर उसके बाद से रोजगार की समस्या पैदा होना स्वाभाविक है ।इस पूरी व्यवस्था को सुचारु होने मे समय लगेगा पर इसका मतलब यह नहीं की अर्थव्यवस्था की आढ में मानव सभ्यता की अनदेखी की जाये ।
विपक्ष को राजनीति करने का अधिकार है पर हर समय राजनीति समझ से परे है अमेरिका उदाहरण है जिसने अपनी अर्थव्यवस्था से प्यार किया तो नागरिकों की मौत का आंकड़ा सबके सामने है ओर ब्राजील ने लॉकडाउन का मजाक बनाया उसकी स्थिति भी सामने है। कहने का अभिप्राय यह है की सरकार के निर्णयों का मूल्यांकन हम किस आधार पर करेंगे कहीं न कहीं से तो हमें तुलना करनी पडेगी ।इसी के बाद राजनीति का पैमाना तय किया जाना चाहिए।