इन दिनों देश की सुर्खियों मे बेबस ,बेहाल मजदूरों की तस्वीरों की भरमार है ,इस भीषण गर्मी मे इन मजदूरों के दर्द को राजनैतिक लोग अपनी राजनीति का जरिया वनायें हुए हैं।लम्बे लम्बे भाषण ओर सिम्पैथी के अलावा मजदूरों को कुछ प्राप्त नहीं हो रहा ।एक राज्य से दूसरे राज्य को मजदूर आठ आठ सौ किमी पैदल जाने को मजबूर है। बगैर खानें पीने के इंतजाम के इस गर्मी मे इन बेहाल मजदूरों की दशा वाकई चिंतनीय है।
इस पूरे कोरोना काल का दुखद पहलू मजदूरों की बेबसी ओर राजनैतिक दलों की हलकी राजनीति दिखाई दिया ।एक देश की परिकल्पना मे ये मजदूर तेरा मेरा क्या हो गया ऐसा लग रहा है मजदूरों का बटवारा किसी अन्य देशों के बीच चल रहा हो ,अपने ही देश मे इस तरहा का बर्ताव सोचने को मजबूर करता है ।
इस पूरे मामले को प्रियंका बाड्रा ने ओर राजनैतिक रंग दे दिया ।जव एक हजार बसों की अनुमति योगी सरकार से मांगी ,योगी सरकार ने भी आने की अनुमति दे दी ओर साथ ही उन बसों की लिस्ट भी मांग ली जव लिस्ट मिली ओर लिस्ट का सत्यापन हुआ तो उसमें कुछ नम्बर आटो ,कुछ स्कूटर बगैरह बगैरह के निकले।अव सबाल यह उठता है कि प्रियंका बाड्रा को मजदूरों की मदद ही करनी थी जो राजिस्थान से मध्यप्रदेश आ रहे मजदूर ,राजिस्थान से विहार जाने बाले ,पंजाब से महाराष्ट्र से तमाम जगह सज मजदूरों का पलायन हो रहा है कहीं से भी मदद कर सकते है जैसा कई स्वयं सेवी संस्थाएं कर रही है ओर कई लोग कर रहे है ।पर वो राजनीति नहीं कर रहे ।यह तरीका कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता।