भारत में गर्मी एक परेशान कर देने वाला मौसम है, इसीलिए यहां वर्षा की धूमधाम से अगवानी की जाती है। भारत की समस्त ऋतुओं में वर्षा को रानी माना गया है। वर्षा के समाप्त होते ही शरद का आगमन होता है। इसी शरद की अगवानी का त्योहार है, दीपावली। वो भी कोई एक या दो रोज का नहीं, पूरे पांच रोज का। दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज तक लगातार पांच दिन तक चलता है। पूरे देश में यह पर्व समान रूप से मनाया जाता है और हिंदू, सिख, जैन तथा बौद्ध आदि इसे मनाते हैं। दुनिया के अन्य देशों में भी हिंदू यह पर्व मनाते हैं। वर्ष 2003 से तो हर साल दीपावली के रोज अमेरिका के ह्वाइट हाउस को भी रोशनी से सजाने की परंपरा चली आ रही है।
हां, भारत में अन्य त्योहारों की तरह इसे मनाने की परंपरा अवश्य अलग-अलग है। मसलन-कोई इसे लक्ष्मी के आगमन का त्योहार बताते हैं, तो किसी के लिए इसी रोज भगवान श्रीराम लंका विजय कर अयोध्या वापस लौटे थे, तो कोई मान्यता कहती है कि पांडव इसी रोज अपना 12 साल का वनवास व एक साल का अज्ञातवास काटकर आए थे। इसके विपरीत दक्षिण भारतीय इसे नरकासुर विजय के रूप में मनाते हैं।
मान्यता के अनुसार द्वारिका नरेश श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ इस दिन नरकासुर का वध किया था। तमिलनाडु में यह भी मान्यता है कि इसी दिन विष्णु ने वामनावतार के समय असुर राजा बलि से सब कुछ दान में ले लिया था। इसीलिए वहां इसे बलि पड़वा भी कहते हैं, पर गुजरात, महाराष्ट्र तथा राजस्थान के मारवाड़ इलाके में दीपावली से उनका पंचांग शुरू होता है। बंगाल व पूर्वी भारत में इसे काली पूजा कहा जाता है, जो देवी दुर्गा के मायके सिधारने के बीस दिन बाद आता है। कई अन्य जगहों पर इसे तांत्रिकों का त्योहार माना जाता है और माना जाता है कि तंत्र विद्याएं इसी दिन जागृत होती हैं। जैनियों के अनुसार इस दिन ही उनके 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को निर्वाण मिला था। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस दिन ही प्राण त्यागे थे।
मगर इसका जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही अधिक यह उल्लास का भी पर्व है। इस दिन पूरे देशम ें जितनी खरीदारी होती है, उतनी शायद किसी भी त्योहार में नहीं होती। गरीब से गरीब आदमी भी दीपावली में बर्तन से लेकर कपड़े, गहने, घर, गाड़ी सब खरीद लेना चाहते हैं। सो व्यापारी इसे त्योहारी सीजन भी कहते हैं।
दरअसल, भारत एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए शुरू से ही यहां फसलों के लिहाज से ही त्योहार मनाए जाते रहे हैं। ऊष्ण कटिबंधीय देश होने के कारण यहां मुख्यतौर पर दो फसलें खास होती हैं, रबी व खरीफ। रबी की मार्च से कटनी शुरू होती है और खरीफ की सितंबर मध्य से। चूकिं यहां धान मुख्य फसल है और धान ही खरीफ का आधार, इसलिए किसान के पास पैसा धान की फसल आने के बाद ही आता है। धान अब तक कट चुका होता है और किसान के पास खर्च करने के लिए पैसा होता है। दीपावली धान का पर्व है और इसीलिए इसे धन-धान्य का पर्व भी कहते हैं। दीपावली में लाई व खील खास तौर पर देवी लक्ष्मी को अर्पित की जाती है। आज भले ही अर्थव्यवस्था में तकनीक और कल कारखाने महत्वपूर्ण हो गए हों, लेकिन अभी भी उसकी रीढ़ कृषि ही है। आप देखिए कि हर साल मानसून के पहले कारों के व्यापारी रोना रोते हैं कि भारत में कार की बिक्री घटी, पर दीपावली के बाद जो आंकड़े आते हैं, उनसे पता चलता है कि कार की बिक्री पिछले साल की तुलना में बढ़ी है। जाहिर है, यह सारा खेल कृषि उपजों का है। यहां तक कि शहरी कामगार वर्गों का भी कृषि उपज के आधार पर ही वेतन मानक तय होता है। चाहे वह कर्मचारियों को मिलने वाला बोनस हो या वेतन संस्तुतियां। यही वेतनवृद्धि व बोनस उनकी खरीदारी का जरिया बनता है। पूरे साल लोग इंतजार करते हैं कि कब बोनस मिले और वे अतिरिक्त खरीदारी करें। संभार राजएक्सप्रेस