Thursday, September 25

बर्खास्त गवर्नर बेनीवाल पर चल सकता है 1000 करोड़ के जमीन घोटाले में केस

5252_kamla-beniwal001नईदिल्ली। मिजोरम की राज्यपाल पद से बर्खास्त की गई कमला बेनीवाल शुक्रवार को मिजोरम से विदा हो गईं। मणिपुर के राज्यपाल विनोद कुमार दुग्गल ने उनकी जगह मिजोरम का अतिरिक्त प्रभार ले लिया है। खबर है कि परंपरा से हट कर बेनीवाल के लिए विदाई भोज आयोजित नहीं किया गया। उधर, बताया जा रहा है कि बेनीवाल की बर्खास्तगी के मामले में राष्ट्रपति ने बेनीवाल के खिलाफ साक्ष्यों को देखने के बाद एक गोपनीय नोट लिखकर संतुष्टि जताई थी। इसके बाद ही बेनीवाल की बर्खास्तगी का फैसला लिया गया। यह दावा एनडीटीवी ने अपने सूत्रों के हवाले से किया है। दूसरी ओर, राज्यपाल पद पर रहते हुए मिला संवैधानिक संरक्षण हटने के साथ ही बेनीवाल को 1000 करोड़ की जमीन हड़पने के मामले में आरोपी बनाए जाने की भी आशंका है। यह मामला इन दिनों जयपुर की एक स्थानीय अदालत में चल रहा है।
जयपुर की वैशाली नगर पुलिस इस मामले की जांच कर रही है। उसके मुताबिक इस मामले में 16 अन्य अभियुक्तों के साथ बेनीवाल की भी स्पष्ट भूमिका होने के सबूत मिले हैं। मामले में पुलिस ने इसी साल 15 मई को रिपोर्ट भी ट्रायल कोर्ट को सौंप दी है। आगामी 27 अगस्त को अगली सुनवाई होना है। एडवोकेट अजय जैन के मुताबिक हम अब कोर्ट से बेनीवाल को आरोपी बनाने और नोटिस जारी करने की अपील करेंगे। जैने जमीन घोटोले के इस मामले को उजागर करने वाले एक्टिविस्ट संजय अग्रवाल के वकील हैं। अग्रवाल और अन्य ने ही अगस्त 2012 में बेनीवाल सहित 16 अन्य के खिलाफ जमीन हड़पने की यह शिकायत दर्ज कराई थी। इन आरोपियों में कांग्रेस के भी कई नेता हैं। बेनीवाल को अभी तक संविधान की धारा 361 के तहत मिली शक्तियों के चलते बतौर राज्यपाल संरक्षण मिला हुआ था, जो अब नहीं रहा।
किसान सामूहिक कृषि सहकारी समिति लिमिटेड को 1953 में 25 रूपए प्रति एकड़ से हिसाब से 20 साल के लिए 384 बीघा सरकारी जमीन लीज पर आवंटित की गई थी। जमीन जयपुर के बाहरी इलाके झूटवाड़ा में दी गई। कमला बेनीवाल 1954 में तब राजनीति में आईं, जब वह महज 27 साल की थीं। इसी साल वह राज्य की पहली महिला मंत्री भी बनीं। 1970 में कमला बेनीवाल इस समिति की सदस्य बनीं। एग्रीमेंट के आधार पर 1978 में लीज अवधि समाप्त हो गई और सरकार ने जमीन वापस ले ली। राज्य सरकार ने इसमें से 221 बीघा जमीन पर करघानी और पृथ्वीराज नगर रेजीडेंशियल स्कीम के तहत अक्टूबर 1999 में चिह्नित कर दी। लीज अवधि 1978 में ही समाप्त हो गई थी, इसलिए सोसाइटी क्षतिपूर्ति का दावा भीं नहीं कर सकी, जबकि सोसाइटी के सदस्य इसे भूमि अधिकग्रहण बता रहे थे। बाद में बतौर क्षतिपूर्ति 15 फीसदी विकसित जमीन सोसाइटी को वापस की गई।