Thursday, October 30

दिल्ली में कृत्रिम बारिश का पहला प्रयोग फेल, फिर भी प्रदूषण घटा, क्यों भड़की AAP?

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कृत्रिम बारिश का पहला प्रयोग फेल हो गया है, लेकिन प्रदूषण के लेवल में कमी आई है। इसको लेकर आम आदमी पार्टी ने रेखा सरकार पर तीखा प्रहार किया है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हर साल की तरह इस साल भी जहरीले स्मॉग (धुंध और धुआं का मिश्रण) से घिर गई है। इससे एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) को 400 के पार पहुंचा दिया। इस समस्या के समाधान के लिए दिल्ली सरकार ने वैज्ञानिक तरीके से कृत्रिम बारिश कराने का निर्णय लिया था। इसके लिए बादलों में रसायन का छिड़काव किया गया, लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ। हालांकि दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार, कृत्रिम बारिश का प्रयोग भले ही सफल नहीं हुआ, लेकिन प्रदूषण लेवल में कमी जरूर आई है। दूसरी ओर, दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने के निर्णय को गलत बताते हुए आम आदमी पार्टी ने रेखा सरकार पर निशाना साधा है।

आईआईटी कानपुर के निर्देशन में हुआ प्रयोग

दिल्ली में कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) कराने के लिए आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के नेतृत्व में पहला प्रायोगिक परीक्षण किया गया। आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर मनींद्र अग्रवाल ने बताया कि यह प्रयास बारिश कराने में विफल रहा, लेकिन इसके परिणामों ने वैज्ञानिकों को एक नई उम्मीद दी है। इस प्रयोग के चलते दिल्ली के प्रदूषण में 6 से 10% की कमी दर्ज की गई है।

दिल्ली में क्यों सफल नहीं हो सकी कृत्रिम बारिश?

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर मनींद्र अग्रवाल ने बताया कि क्लाउड सीडिंग से बारिश न होने का मुख्य कारण बादलों में नमी की अत्यंत कम मात्रा थी, जो केवल 15% के आसपास मापी गई। प्रोफेसर अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि क्लाउड सीडिंग के लिए बादलों में पर्याप्त नमी बेहद जरूरी होती है, जिसे वैज्ञानिक रूप से लिक्विड वॉटर कंटेंट (LWC) कहा जाता है।

क्या होनी चाहिए बादलों में नमी न्यूनतम आवश्यकता?

अमेरिका के डेजर्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, क्लाउड सीडिंग के लिए रिलेटिव ह्यूमिडिटी [RH] कम से कम 75% होनी चाहिए। 50% से कम नमी पर सीडिंग कणों का काम करना मुश्किल हो जाता है। दूसरी ओर मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर बादलों में नमी 20-30% से कम हो तो बारिश की संभावना घटकर महज 10-20% रह जाती है। मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो दिल्ली में कम नमी के कारण सिल्वर आयोडाइड  के कणों से थोड़े क्रिस्टल तो बने, लेकिन वे बारिश की बड़ी बूंदे नहीं बना पाए। इसके चलते हल्की धुंध साफ हुई, लेकिन मूसलाधार बारिश नहीं हुई।

वैज्ञानिक तकनीक है क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसका उपयोग दुनिया भर के देश, जैसे अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया, सूखे से निपटने या प्रदूषण को साफ करने के लिए करते हैं। इस प्रक्रिया में बादलों में पर्याप्त नमी होना जरूरी है। मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि आकाश में मौजूद बादलों की पानी की बूंदे कभी-कभी इतनी छोटी होती हैं कि वे नीचे नहीं गिर पातीं। ऐसे में कृत्रिम बारिश की कोशिश नाकाम हो जाती है।

नमी क्यों है ‘की फैक्टर’ ?

नमी (लिक्विड वॉटर कंटेंट) ही तय करती है कि बादल में पानी कितना है। अगर नमी कम हो तो बीज (सिल्वर आयोडाइड) डालने पर भी बूंदें बड़ी नहीं हो पातीं। इसके साथ ही बादलों में हवा का ऊपर की ओर बहाव (उपड्राफ्ट) भी 100-200 फीट प्रति मिनट की रफ्तार से होना चाहिए। ताकि नम हवा लगातार बादल में आती रहे।

दिल्ली में बारिश न होने के बावजूद प्रयोग उपयोगी

दिल्ली में AQI के 400 से ऊपर जाने के बाद सरकार ने प्रदूषण से लड़ने के लिए आईआईटी कानपुर को यह ज़िम्मेदारी सौंपी थी। प्रोफेसर अग्रवाल ने स्वीकार किया कि कम नमी के चलते बारिश न होने के कारण यह प्रयास बारिश के नज़रिए से सफल नहीं रहा। लेकिन यह प्रयोग ‘बेहद उपयोगी’ साबित हुआ। दरअसल, वैज्ञानिकों की टीम ने दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में 15 स्टेशन लगाए थे, जिन्होंने हवा का प्रदूषण और नमी मापा। कृत्रिम बारिश के लिए किए गए प्रयोग के बाद जुटाए गए डेटा से पता चला कि क्लाउड सीडिंग के बाद PM2.5 (छोटे कण) और PM10 (बड़े कण) की सांद्रता में 6 से 10% की कमी आई।

वैज्ञानिकों का मानना है कि भले ही कम नमी से बारिश न हुई हो, लेकिन सीडिंग कणों ने प्रदूषण के कणों (PM2.5, PM10) को खुद से चिपका लिया और उन्हें “वॉशआउट” (धुल जाने) प्रक्रिया के तहत जमीन पर गिरा दिया। यह दर्शाता है कि क्लाउड सीडिंग कम नमी वाले बादलों में भी प्रदूषण को साफ करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। आईआईटी कानपुर की टीम अब बेहतर नमी की स्थिति का इंतजार कर रही है। ताकि आने वाले दिनों में और दो उड़ानें कर आदर्श परिणाम प्राप्त किए जा सकें।

क्लाउड सीडिंग फेल होने पर क्या बोली AAP ?

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग पर AAP नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा, “तीन केंद्रीय एजेंसियों आईएमडी, सीएक्यूएम और सीपीसीबी ने दिल्ली सरकार को सलाह दी थी कि इस मौसम में क्लाउड सीडिंग लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगी। इसके बावजूद क्लाउड सीडिंग की गई है। दिल्ली सरकार ने शहर-राज्य की जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिए ऐसा किया है।”