Monday, September 29

वकीलों के लिए सुप्रीम कोर्ट से आई बड़ी राहत! ‘खामी’ के लिए नहीं चलेगा केस

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि वकीलों पर सेवा में ‘खामी’ के लिए उपभोक्ता अदालत में केस नहीं चलाया जा सकता। वकील उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में नहीं आते। इसी के साथ शीर्ष कोर्ट ने कंज्यूमर कमीशन का 2007 का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उपभोक्ता के अधिकारों का ध्यान रखते हुए अगर वकील ठीक से सेवा नहीं देते हैं तो उन्हें उपभोक्ता अदालत में लाया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी.पी. शांता मामले में उसके 1995 के फैसले पर भी पुनर्विचार की जरूरत है, जिसमें डॉक्टरों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शामिल किया गया था।

वकीलों पर सेवा में ‘खामी’ के लिए उपभोक्ता कोर्ट में नहीं चलेगा केस

सीजेआई से यह मामला बड़ी पीठ को सौंपने का अनुरोध किया गया है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने उस अपील पर फैसला सुनाया, जिसमें सवाल उठाया गया था कि क्या सेवाओं में कमी के लिए वकीलों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है? सुनवाई के बाद पीठ ने 26 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसले में पीठ ने कहा कि वकील जो सेवा देते हैं, वह अलग तरह की है। उपभोक्ता संरक्षण कानून से उन्हें बाहर रखा जाना चाहिए। कंज्यूमर कमीशन के 2007 के फैसले में कहा गया था कि वकीलों की सेवा भी सेक्शन 2 (1) ओ के तहत आती है, इसलिए उनके खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रेल 2009 में इस फैसले पर रोक लगा दी थी।

पीठ ने कहा, गड़बड़ी पर आम कोर्ट में चलाया जा सकता है मुकदमा

  1. फीस देकर कोई भी काम करवाने को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की ‘सेवा’ के दायरे में नहीं रखा जा सकता। अगर वकील गड़बड़ी करते हैं तो उनके खिलाफ सामान्य अदालतों में मुकदमा चलाया जा सकता है।
  2. पेशेवरों के साथ किसी व्यवसायी, व्यापारी, उत्पादों या वस्तुओं के सेवा प्रदाता के समान व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। पेशे के लिए उन्नत शिक्षा और प्रशिक्षण की जरूरत होती है।
  3. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 का मूल उद्देश्य और लक्ष्य उपभोक्ता को अनुचित व्यापार प्रथाओं और अनैतिक व्यापार व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करना था। यह नहीं कहा जा सकता कि विधायिका का इरादा किसी पेशे या पेशेवर को अधिनियम के दायरे में लाने का था।
  4. वकील और क्लाइंट के बीच सामंजस्य एक तरह की निजी अनुबंधित सेवा है। अगर इस सेवा में कोई खामी होती है तो वकील को उपभोक्ता अदालत में नहीं घसीटा जा सकता।

काम करने के लिए सुरक्षा और स्वतंत्रता की जरूरत

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के डेटा के मुताबिक देश में करीब 13 लाख वकील हैं। वकीलों की कई संस्थाओं ने कंज्यूमर कमीशन के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। उनका कहना था कि अपना काम करने के लिए उन्हें सुरक्षा और स्वतंत्रता की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉड्र्स एसोसिएशन का कहना था कि कानूनी सेवा किसी वकील के नियंत्रण में नहीं होती। वकीलों को निर्धारित फ्रेमवर्क में काम करना होता है। फैसला भी वकीलों के अधीन नहीं होता। ऐसे में किसी केस के परिणाम के लिए वकीलों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट परिसर में मारपीट मामले में 10 वकीलों को अवमानना नोटिसप्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज जिला अदालत परिसर में वादियों के साथ मारपीट के आरोपी दस वकीलों को आपराधिक अवमानना नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उनके जिला जज अदालत परिसर में प्रवेश पर रोक भी लगा दी। जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरिसी की खंडपीठ कहा, इस मामले में घटना को पूरी गंभीरता से देखा जाना चाहिए। किसी अदालत की कार्यवाही को इस तरह बाधित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती कि वादियों को अदालत कक्ष में बेरहमी से पीटा जाए और पीठासीन अधिकारी को सुरक्षा के लिए अपने कक्ष में भागना पड़े। कोर्ट इस तरह की घटनाओं का मूक दर्शक नहीं बना रह सकता। पीठ ने कहा, बेईमान व्यक्तियों को स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि इस तरह की घटना से सख्ती से निपटा जाएगा।