शनिवार-रविवार की अर्द्ध रात्रि में धर्म का सूर्य अस्त हो गया। युग दृष्टा संत आचार्य श्रीविद्यासागरजी महाराज ब्रह्म में लीन हो गए। संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज की रात्रि 2: 30 बजे चंद्रागिरी तीर्थ डोंगरगढ़ में समाधि हुई। संत विद्यासागर की समाधि की सूचना मिलते ही देशभर में शोक व्याप्त हो गया है। डोंगरगढ़ में भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा है।
शनिवार-रविवार की अर्द्ध रात्रि में धर्म का सूर्य अस्त हो गया। युग दृष्टा संत आचार्य श्रीविद्यासागरजी महाराज ब्रह्म में लीन हो गए। संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज की रात्रि 2: 30 बजे चंद्रागिरी तीर्थ डोंगरगढ़ में समाधि हुई। संत विद्यासागर की समाधि की सूचना मिलते ही देशभर में शोक व्याप्त हो गया है। डोंगरगढ़ में भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा है।
संत विद्यासागरजी 17 फरवरी शनिवार यानि माघ शुक्ल अष्टमी को पर्वराज के अंतर्गत उत्तम सत्य धर्म के दिन रात्रि 2:35 बजे ब्रह्मलीन हुए। राष्ट्रहित चिंतक गुरुदेव विद्यासागरजी ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण कर ली थी। उन्होंने पूर्ण जागृतावस्था में आचार्य पद का त्याग किया। 3 दिन के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था। प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और मौन धारण कर लिया था।
आचार्य ने 6 फरवरी यानि मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेज दिया था। इसके बाद निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागरजी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली। उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था।
उन्होंने आचार्य पद के लिए प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागरजी महाराज को योग्य समझा। उन्हें आचार्य पद दिए जाने की घोषणा भी कर दी थी जिसकी विधिवत जानकारी कल दी जाएगी।
श्रीजी का डोला गुरुवार को चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे निकाला जाएगा। आचार्य विद्यासागरजी को चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया जाएगा।