विदिशा। हलाली बांध की नहरों से जुड़े अंतिम छोर के किसानों को बांध से पानी छोड़ने के दस दिन बाद भी अब तक पानी नहीं मिला है। उनके खेत खाली खाली है और पलेवा व बोवनी कार्य नहीं कर पा रहे। वहीं बोवनी में हो रही देरी से किसानों में आक्रोश बढ़ रहा और वे आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि अभी तो नहरों की सफाई तक नहीं हुई ऐसे में पानी आने में और अधिक वक्त लग जाएगा। इससे उनका बोवनी कार्य प्रभावित हो रहा है।
क्षेत्र के किसान नेता गोविंदसिंह राजपूत ने बताया कि टेल क्षेत्र में नहर का पानी पहले देने का नियम है लेकिन इस नियम का पालन कभी नहीं होता है। इससे हलाली बांध की नहरों के अंतिम छोर के किसानों की हर बार देर से बोवनी होती और इससे किसानों को फसल में पर्याप्त पैदावार नहीं मिल पा रही। उन्होंने बताया कि 10 नवंबर को नहरों से पानी छोड़ा गया लेकिन टेल क्षेत्र में अब तक पानी नहीं आया है। इससे किसानों में नाराजी बढ़ रही और क्षेत्र के किसान पदयात्रा कर जिला मुख्यालय पहुंँचकर विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे हैं।
कचरे से ठसाठस नहरें, स्टॉप डेम भी क्षतिग्रस्त
किसानों के मुताबिक उनके क्षेत्र में अभी भी नहरें कचरे से ठसाठस है। नहरों की सफाई एवं मरम्मत कार्य भी नहीं किया गया। इस बार डेम में पर्याप्त पानी हाेने से नहरों से भी समय पर पानी मिलने की उम्मीद थी लेकिन पानी होने के बाद भी खेती के लिए पानी न मिलने जैसी दुर्भाग्यपूर्ण िस्थति से वे गुजर रहे हैं। किसानों ने बताया कि यहां पीपलखेड़ा खुर्द पर एक स्टाप डेम है। वह भी क्षतिग्रस्त होने लगा और इसकी मरम्मत पर भी ध्यान नहीं दिया तो अगली बारिश में यह डेम भी बह जाएगा। इससे कई किसानों को सिंचाई में मिलने वाली मदद का यह विकल्प भी बंद हो जाएगा।
करीब 15 गांव की सैकड़ों हैक्टेयर भूमि को पानी का इंतजार
किसानों के मुताबिक टेल क्षेत्र के हिरनोदा, वामनखेड़ा, लश्करपुर, हरुखेड़ी, जमाल्दी, खेरूआ, गजार मूंडरा, पहो पड़रिया, पैरवासा, आदि करीब 15 गांव है जहां नहरों के पानी के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। पानी नहीं मिलने से सैकड़ो ंहैक्टेयर कृषि भूमि खाली पड़ी है और बोवनी कार्य नहीं हो पा रहा है।
वर्जन
टेल क्षेत्र में नहर का पानी पहुंचने में करीब 25 दिन तक लग जाते हैं, हम जल्द पानी पहुंचाने का प्रयास कर रहे हँं। दो-तीन दिन में इन क्षेत्रों में पानी पहुंच जाएगा।
-राजीव जैन, ईई सम्राट अशोक सागर, हलाली परियोजना