Monday, November 10

आठ साल में एक लाइन लिखना-पढऩा भी नहीं सिखा पाए सरकारी स्कूल

Allahabad: Children attend a class at a Government school on the occasion of ‘World Literacy Day’, in Allahabad, Saturday, Sept 8, 2018. (PTI Photo) (PTI9_8_2018_000090B)

विदिशा. जिन बच्चों ने आठ साल पहले पहली कक्षा में स्कूल में प्रवेश लिया था, वे अब आठवीं तक आ गए, लेकिन मजाल है कि हिन्दी की एक लाइन भी पढ़ पाएं, अपने शिक्षक या जिले का नाम भी सही लिख पाएं। आठ साल में क्या सीखा, यह कहने की स्थिति में न तो विद्यार्थी हैं और न ही शिक्षक। बस मध्यान्ह भोजन बंट रहा है, पुस्तकें, यूनीफार्म मिल रही है, छात्रवृत्तियां मिल रहीं हैं। शिक्षकों का वेतन और वेतन भत्ते समय से मिल रहे हैं। न कोई निरीक्षण करने जाता है और न ही स्थिति को देखने-समझने।

जब यही बच्चे आठवीं से निकलकर हाईस्कूल में पहुंचते हैं तो होता है हकीकत से सामना। जिन बच्चों को एक लाइन भी लिखना नहीं आता, उन्हें हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा के लिए तैयार करना भी हाईस्कूल शिक्षकों के सामने चुनौती से कम नहीं। लेकिन कमजोर नींव को मजबूत करने पर शिक्षा विभाग और शासन-प्रशासन का कोई ध्यान नहीं। हां, ग्रामीण जरूर यह बात समझते और कहते हैं कि साहब, हमारी तो जिन्दगी बर्बाद हो गई, लेकिन स्कूलों के रवैये से हमारे बच्चों की भी जिंदगी बर्बाद हो रही है।
—आठवीं का कोई बच्चा नहीं पढ़ पाता एक लाइन

शमशाबाद तहसील का ग्राम कोलुआ। यहां एक ही परिसर में प्राथमिक और माध्यमिक शालाएं हैं। प्राथमिक में 52 और माध्यमिक में 56 विद्यार्थी दर्ज हैं। हालांकि स्कूल में बच्चों की उपस्थिति बहुत कम रहती है। दोनों शालाओं में मिलाकर केवल नीतू भार्गव ही एकमात्र नियमित शिक्षिका हैं, बाकी पांच अतिथि शिक्षक यहां पदस्थ हैं। अतिथि शिक्षक दिनेश यादव बताते हैं कि स्कूल में कक्षा आठ में 18 बच्चे दर्ज हैं। लेकिन जब पत्रिका टीम ने पांचवीं और आठवीं के बच्चों से उनकी किसी भी पुस्तक की एक लाइन पढ़वाना चाही तो कोई बच्चा नहीं पढ़ सका। चौथी के अजय यादव, पांचवीं की सिमरन और आठवीं के अतुल, समर और शिवानी यादव को एक लाइन लिखना तो दूर विदिशा शब्द भी सही लिखना नहीं आया। ये बच्चे अपने शिक्षक का नाम तक नहीं लिख पाते हैं।

बच्चे नहीं लिख पाते शिक्षक का नाम

लटेरी तहसील के ग्राम नरसिंहपुर की प्राथमिक शाला में 42 बच्चे दर्ज हैं। यहां प्रभारी संजीव नामदेव हैं और एक अतिथि शिक्षिका हैं। दो कमरों की शाला में एक कमरे में पानी टपकने से सबको एक ही कक्ष में बैठाया जाता है, यहां पांचवीं तक के बच्चे हैं, लेकिन पांचवीं के किसी भी बच्चे को हिन्दी पढऩा या एक लाइन लिखना तक नहीं आता। ये अपने शिक्षक का नाम तक नहीं लिख पाते।

50 लाख खर्च, फिर भी बच्चे ज्ञान शून्य

सरकारी स्कूल के किसी भी स्कूल के एक शिक्षक का वेतन आठ साल में कम से कम 30 लाख रुपए होता है। इसके बाद अतिथि शिक्षकों का वेतन, स्कूल यूनीफार्म, मध्यान्ह भोजन, छात्रवृत्तियां, किताबों सहित अन्य सुविधाओं पर आठ साल में एक प्राथमिक स्कूल में ही 50 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हो जाते हैें, लेकिन सैंपल टेस्टिंग के लिए कोलुआ और नरसिंहपुर के स्कूल बताते हैं कि आधा करोड़ से ज्यादा खर्च करने पर भी बच्चों का ज्ञान शून्य से आगे नहीं बढ़ सका है।