रानिल विक्रमसिंघे आर्थिक तौर पर दिवालिया हो चुके श्रीलंका के नए राष्ट्रपति बन गए हैं। उन्हें 134 वोट मिले। राष्ट्रपति पद के सबसे मजबूत दावेदार माने जाने वाले दुलस अल्हाप्परुमा को 82 वोट मिले।
पार्लियामेंट में 44 साल बाद सीक्रेट वोटिंग हुई। यानी 1978 के बाद पहली बार देश में जनादेश के माध्यम से नहीं, बल्कि राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों के सीक्रेट वोट के माध्यम से हुआ।
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति को जानिए
1. 73 साल के रानिल 6 बार प्रधानमंत्री रहे। राजपक्षे की पार्टी SLPP के सांसदों ने राष्ट्रपति चुनाव में पूरी तरह समर्थन किया।
2. श्रीलंका में प्रदर्शन कर रहे लोग इन्हें राजपक्षे का साथी मानते हैं। माना जा रहा है कि रानिल प्रदर्शनकारियों पर सख्ती दिखाएंगे।
3. रानिल ने एक्टिंग प्रेसिडेंट के तौर पर श्रीलंका में इमरजेंसी लगाई। पुलिस और सुरक्षा बलों को इन्हें हटाने के अधिकार दिए। रानिल ने यह कदम प्रदर्शनकारियों के राष्ट्रपति भवन में दाखिल होने के बाद उठाया था।
4. राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्ष ने कहा था कि रानिल की प्रदर्शनकारियों पर सख्ती उन सांसदों के लिए अच्छी साबित हो रही है, जो जनता का गुस्सा झेल रहे हैं।
5. रानिल से चुनाव हारने वाले दुल्लास अल्हाप्परुमा पूर्व शिक्षा मंत्री थे। वे जर्नलिस्ट भी रह चुके हैं, जिन्हें विपक्ष का भरपूर समर्थन था।
दरअसल, कुछ रिपोर्ट्स बता रही हैं कि देश को नए राष्ट्रपति के साथ ही नया प्रधानमंत्री भी मिलने जा रहा है। बहुत गौर से देखें तो सच्चाई सामने आती है। और वो ये कि सत्ता की जिस बंदरबांट ने श्रीलंका को इन हालात में पहुंचाया, वही स्थिति अब भी है। नए प्रधानमंत्री के तौर पर सजिथ प्रेमदासा कुर्सी संभाल सकते हैं।
राष्ट्रपति चुनाव मैच फिक्सिंग कैसे
मंगलवार तक राष्ट्रपति की रेस में चार अहम नाम थे। रानिल विक्रमसिंघे, दुलस अल्हाप्परुमा, अनुरा कुमारा और सजिथ प्रेमदासा। इनमें से भी दो नाम प्रायोरिटी में सबसे ऊपर थे। दुलस अल्हाप्परूमा और सजिथ प्रेमदासा। हुआ ये कि सजिथ ने नाम वापस ले लिया और वो प्रेसिडेंट पोस्ट की रेस से बाहर हो गए।
दुनिया की भी नजर
- 2 जुलाई को जापान की तरफ से एक बयान जारी किया गया था। इसको बहुत गौर से देखने की जरूरत है। जापान सरकार ने श्रीलंका को ‘कैश रिलीफ’ देने से इनकार कर दिया था। इस कदम के मायने समझने की जरूरत है।
- अमेरिका, जापान और भारत तक श्रीलंका को बेलआउट के तौर पर कैश देने से बच रहे हैं। इसकी वजह वहां के करप्ट नेता और करप्ट सिस्टम है। इन देशों को लगता है कि कैश रिलीफ का फायदा अवाम को नहीं मिलेगा।
- IMF और वर्ल्ड बैंक को आगे किया जा रहा है। यही फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन श्रीलंका को सख्त शर्तों पर बेलआउट पैकेज देंगे। इनकी लीगल बाउंडेशन होगी और श्रीलंका की किसी भी सरकार को यह शर्तें माननी होंगी।
चीन की चुप्पी का राज
- श्रीलंका में बहुत बड़ा तबका मानता है कि मुल्क के दिवालिया होने के पीछे अगर राजपक्षे परिवार है तो इस फैमिली के पीछे भी चीन ही खड़ा था। करीब 30 साल तक राजपक्षे फैमिली और चीन के सीक्रेट रिलेशन रहे।
- जब राजपक्षे परिवार के खिलाफ अवाम सड़कों पर उतर आई तो चीन ने भी हाथ खींच लिए। हम्बनटोटा पोर्ट हथियाने के बाद से ही उसे विलेन के तौर पर देखा जा रहा था। अब चीन बिल्कुल चुप है।
- अमेरिका, जापान और भारत के साथ उनका चौथा क्वॉड साथी ऑस्ट्रेलिया। ये चारों देश अब चीन को श्रीलंका में पैर पसारने का कोई मौका नहीं देना चाहते। लिहाजा, कोशिश ये हो रही है कि मदद का वो तरीका अपनाया जाए, जिसका फायदा श्रीलंकाई नेताओं के बजाए सीधे जनता को मिले।