Sunday, September 28

नामकरण पर विवाद:शिवसेना के असलम शेख ने मैदान का नाम टीपू सुल्तान रखा, हिंदू संगठन बोले- यह मुंबई की शांति भंग करने किया है

मुंबई में नाम को लेकर फिर एक बार राजनीति शुरू हो गई है। 26 जनवरी को शहर के मलाड इलाके में कांग्रेस नेता और मुंबई के गार्जियन मिनिस्टर असलम शेख एक मैदान का उद्घाटन करने वाले हैं। शेख ने इस मैदान को ‘टीपू सुल्तान’ का नाम दिया है। इस ऐलान के बाद भारतीय जनता पार्टी सहित कई हिन्दू संगठनों ने आपत्ति जताते हुए इसका नाम शिवाजी महाराज या वीर सावरकर के नाम पर रखने की मांग की है।

विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता श्रीराज नायर ने कहा, ‘यह ऐलान मुंबई की शांति भंग करने के इरादे से किया गया है। इससे बचा जा सकता था। महाराष्ट्र संतों की भूमि है और एक क्रूर बर्बर हिंदू विरोधी के नाम पर प्रोजेक्ट का नाम रखना निंदनीय है।’

हिंदुओं पर जुल्म करने वाले करेंगे शिवसेना की जयकार: भाजपा
भाजपा के प्रवक्ता राम कदम का कहना है कि 24 घंटे पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवसेना के हिंदुत्व की बात कर रहे थे और अब उनके मुख्यमंत्री रहते मैदान का नाम टीपू सुल्तान रखा जा रहा है। ठाकरे सरकार की अगुवाई में उनके मंत्री टीपू सुल्तान नाम के मैदान का उद्घाटन करेंगे। अब तो हिंदुओं पर जुल्म करने वाले सारे आक्रांता कब्र से उठकर शिवसेना की जयकार करेंगे।

पिछले साल भी हुआ था नाम को लेकर विवाद
पिछले साल मुंबई के गोवंडी इलाके में टीपू सुलतान के नाम पर एक पार्क का नाम रखने पर भी विवाद खड़ा हुआ था। उस दौरान भाजपा ने शिवसेना पर हिंदुत्व विरोधी होने का आरोप लगाया था। इस बार फिर भाजपा को शिवसेना को घेरने का मौका मिल गया है। हालांकि, मुंबई की मेयर किशोरी पेडणेकर ने गोवंडी के पार्क का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखने का आरोप बीजेपी पर लगाया था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी ने 2013 में गोवंडी में एक पार्क का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखा था और अब वह इस मामले में दोहरा चरित्र अपना रही है।

क्यों है टीपू सुल्तान के नाम को लेकर विवाद
सम्राट हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान को शेर-ए-मैसूर का खिताब हासिल है। अंग्रेजों के खिलाफ सिर्फ 18 की उम्र में पहला युद्ध जीतने वाले टीपू सुलतान ने पिता की मौत के बाद मैसूर की कमान अपने हाथों में संभाली थी। अंग्रेजों और टीपू के बीच हुए पहले युद्ध के बाद दोनों के बीच 1784 में मंगलौर की संधि हुई थी। लेकिन उसके पांच साल बाद ही अंग्रेजों और मराठाओं की सेना ने फिर से टीपू सुल्तान पर हमला कर दिया। जिसमें बड़ी तादाद में अंग्रेजी और मराठा सैनिक मारे गए थे। यही वजह है कि कुछ इतिहासकार टीपू को एक आक्रांता भी बताते हैं और समय-समय पर हिन्दू संगठन उनके नाम का विरोध करते रहे हैं।