
काबुल पर कब्जे के 22 दिन बाद मंगलवार को तालिबान ने अपनी सरकार का ऐलान कर दिया है। तालिबानी सरकार का मुखिया मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को बनाया गया है जो कि संयुक्त राष्ट्र की आतंकियों की लिस्ट में शामिल है। वह तालिबान के पिछले शासन में भी मंत्री था और कहा जाता है कि 2001 में अफगानिस्तान के बालियान प्रांत में बुद्ध की प्रतिमाएं तोड़ने की मंजूरी हसन अखुंद ने ही दी थी। उसने इस आदेश को अपनी धार्मिक जिम्मेदारी बताया था।
तालिबानी सरकार में शेख हिब्दुल्लाह अखुंदजादा सर्वोच्च नेता होंगे जिन्हें अमीर-उल-अफगानिस्तान कहा जाएगा। प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन के साथ दो डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बनाए गए हैं। तालिबानी सरकार का नाम इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान होगा। यह तालिबान की अंतरिम सरकार है, जिसमें किसी महिला को शामिल नहीं किया गया है।
कैबिनेट में ये भी शामिल-
न्याय मंत्री – मौलवी अब्दुल हकीम शरिया
पवित्रता मंत्री – शेख मोहम्मद खालिद
उच्च शिक्षा मंत्री – अब्दुल बाकी हक्कानी
ग्रामीण विकास मंत्री – यूनुस अखुंदजादा
जन कल्याण मंत्री – मुल्ला अब्दुल मनन ओमारी
मिनिस्टर ऑफ कम्युनिकेशन – नजीबुल्ला हक्कानी
माइन्स एंड पेट्रोलियम मंत्री – मुल्ला मोहम्मद अस्सा अखुंद
मिनिस्टर ऑफ इलेक्ट्रिसिटी – मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसौर
मिनिस्टर ऑफ एविएशन – हमीदुल्लाह अखुंदजादा
मिनिस्टर ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड कल्चर – मुल्ला खैरुल्लाह खैरख्वाह
मिनिस्टर ऑफ इकोनॉमी – कारी दिन मोहम्मद हनीफ
हज एंड औकाफ मिनिस्टर – मौलवी नूर मोहम्मद साकिब
मिनिस्टर ऑफ बॉर्डर्स एंड ट्राइबल अफेयर्स – नूरउल्लाह नूरी
शरिया कानून से चलेगी तालिबान सरकार
तालिबान ने कहा है कि अफगानस्तान के सरकारी और लोगों की जिंदगी से जुड़े सभी मामले शरिया कानून के मुताबिक चलेंगे। बता दें कि औरतों की नाक काटने से लेकर आंखें निकालने तक, तालिबान अपनी क्रूरता के लिए शरिया कानून का सहारा लेता रहा है।
तालिबान का शरिया
तालिबान क्रूरता की हदें पार करते हुए आज भी हुदूद सजाओं का इस्तेमाल करते हैं। ये शरिया का एक्सट्रीम वर्जन अपनाते हैं। पश्तो में तालिबान का मतलब स्टूडेंट होता है। तालिबान को खड़ा करने में मदरसों का बड़ा योगदान है। 1990 के दशक में इन मदरसों की फंडिंग सऊदी अरब से होती थी। वहीं से शरिया की विचारधारा भी आ गई। वक्त के साथ तालिबान की कट्टरवादी सोच और गहरी होती गई।
1996 से अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत आ गई। देश में शरिया कानून लागू हो गया। सार्वजनिक सजा देना आम हो गया। म्यूजिक, TV और वीडियो पर बैन लगा दिया गया। जो शख्स पांच वक्त की नमाज नहीं पढ़ता था या दाढ़ी कटवा लेता था, उसे सार्वजनिक रूप से पीटा जाता था।
तालिबान के राज में किस तरह की हो सकती है न्यायपालिका?
माना जा रहा है कि न्यायपालिका सीधे सुप्रीम लीडर के अंडर काम करेगी। सुप्रीम लीडर ही चीफ जस्टिस को नियुक्त करेगा और चीफ जस्टिस सीधा सुप्रीम लीडर को रिपोर्ट करेगा। ईरान में भी चीफ जस्टिस के पास गार्जियन काउंसिल के सदस्यों को भी नियुक्त करने का अधिकार होता है। ऐसी ही व्यवस्था तालिबान अपना सकता है।
इससे पहले तालिबान जब शासन में था, तब उसने अलग-अलग जगहों पर अपनी कोर्ट बना रखी थी। इन कोर्ट में दीवानी मामलों में फैसले के लिए स्थानीय इस्लामिक विद्वानों की राय ली जाती थी। तालिबान की कोर्ट विवादों की तत्काल सुनवाई और फैसलों के लिए लोगों के बीच चर्चा में थी।
दो तरह की हो सकती है कोर्ट
तालिबान की नई सरकार में दो तरह की कोर्ट हो सकती है। एक पब्लिक और दूसरी शरिया। मुस्लिमों से जुड़े मामलों की सुनवाई शरिया कोर्ट में हो सकती है और दूसरे धर्मों के लिए पब्लिक कोर्ट में न्याय के लिए जा सकते हैं। शरिया कोर्ट न्याय के लिए पूरी तरह शरिया कानूनों का सहारा लेगी।
तालिबानी शासन में कैसा होगा सेना का रोल?
सेना पर सीधा-सीधा कंट्रोल सुप्रीम लीडर का होता है। ईरान में जिस तरह इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स हैं, उसी तरह तालिबान में भी सेना की एक विशेष कमांड हो सकती है।
तालिबानी प्रवक्ता ने रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि तालिबान एक नई नेशनल फोर्स की स्थापना करने की प्लानिंग कर रहा है। इस फोर्स में तालिबानियों के साथ-साथ अफगानिस्तानी सेना के सैनिक भी होंगे। तालिबान ने अफगानी सेना में रहे पायलट और सैनिकों से कहा है कि वे दोबारा सेना जॉइन करें।
तालिबान 1.0 में किस तरह की सरकार थी?
तालिबान ने 1996-2001 के दौरान अफगानिस्तान पर शासन किया था। उस दौरान तालिबानी सरकार खुद को इस्लामिक एमीरेट कहती थी। हालांकि उस समय तालिबान की सरकार को चंद देशों ने ही मान्यता दी थी, लेकिन करीब 90% अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था।