
कोरोना के बढ़ते कहर के बीच देश में वैक्सीनेशन को और तेज करने के प्रयास किए जा रहे हैं। 1 मई से 18 साल से ज्यादा सभी लोगों को वैक्सीन लगेगी, लेकिन वैक्सीनेशन को लेकर लोगों के बीच में बहुत सारे भ्रम और अफवाह हैं।
दैनिक भास्कर ने मुंबई के मुस्लिम बहुल इलाके भिंडी बाजार और डोंगरी में वैक्सीनेशन की स्थिति का जायजा लिया। लोग इस बारे में क्या सोचते हैं? रमजान और लॉकडाउन सीरीज की दूसरी रिपोर्ट में हमने इन्हीं सवालों का जवाब जानने की कोशिश की।
भिंडी बाजार की गलियों में रात में भी दिन जैसी चहल-पहल है। अपने-अपने घरों के सामने बैठे लोग गप लड़ा रहे हैं। यहां हम कुछ लोगों से बात करने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई आसानी से तैयार नहीं होता। बड़ी मुश्किल से एक सज्जन बात करने के लिए राजी होते हैं, लेकिन अपना नाम नहीं बताते।
कोरोना इतनी तेजी से फैल रहा है, लेकिन यहां कोई मास्क लगाए नहीं दिखता? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘लगाते हैं, जब बाहर जाते हैं, यहां घर पर कौन मास्क लगाए। दम घुटता है।’ क्या आपने वैक्सीन लगवा ली? जवाब मिलता है – ‘हां कह रहे हैं कि 45 से ऊपर वालों को लग रही है, लेकिन हमारा नंबर तो आया नहीं। और अभी तो रोजे चल रहे हैं, अब रमजान बाद ही देखेंगे?’
भिंडी बाजार से डोंगरी के रास्ते में हमें नसीम मिलते हैं। क्या वैक्सीन लगवाने के लिए आपके पास कोई फोन, सरकारी आदमी आया? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि मुझे न तो किसी ने इंजेक्शन लगवाने के लिए कहा है और न मैं लगवाऊंगा। अभी रोजे चल रहे हैं तो इंजेक्शन का सवाल ही नहीं उठता।
मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और वैक्सीनेशन के प्रति जागरूकता के अभियान देश भर में चलाए जा रहे हैं, लेकिन भिंडी बाजार की इन गलियों में इसका ज्यादा असर नहीं दिखता है। निम्न-मध्यमवर्गीय और कामगारों के इस इलाके में शिक्षा और जागरूकता पहले से कम है। कोरोना जागरूकता वाली सरकारी टीमों की आमदरफ़्त भी यहां कम है।
कई उम्रदराज लोगों से बात करने पर कमोबेश ऐसे ही जवाब मिलते हैं। मास्क और वैक्सीनेशन के सवाल को लोग हंसी में उड़ा देते हैं।
डोंगरी की दरगाह के पास काफी चहल-पहल है। वहां एक दुकान पर बैठे अकबर कहते हैं, ‘मुझे कुछ लोगों ने कहा था कि चचा वैक्सीन लगवा लो, लेकिन मैंने तो नहीं लगवाई। वैक्सीन लगवाने के बाद भी कोरोना हो ही रहा है तो क्या फायदा। मैं तो मास्क भी नहीं पहनता। बस गले में लटकाए रखता हूं। दादर, बांद्रा जाओ तो वहां चेकिंग होती है इसलिए मुंह पर चढ़ा लेता हूं।’
यहीं पास में बैठे जमाल मास्क का जिक्र होने पर बोल पड़ते हैं, ‘मैं तो मास्क नहीं लगाता। नागपाड़ा, माहिम, मुंबई सेंट्रल अक्सर आता-जाता रहता हूं, किसी ने नहीं टोका। प्रधानमंत्री मोदी खुद मास्क नहीं पहनते। ये बस 200-500 रुपए का फाइन बनाकर सबको ठगने का तरीका है।’
वैक्सीन लगवा ली आपने? इस पर जमाल कहते हैं कि मुझे तो किसी ने वैक्सीन के लिए नहीं कहा। कोई सरकारी कागज भी नहीं आया। वैसे ये कोरोना कुछ नहीं है। वहम है। अल्लाह जो करता है, अच्छा करता है।’
भिंडी बाजार से डोंगरी तक बहुत से लोगों के साथ बातचीत में यह पता चला कि यहां ज्यादातर लोग वैक्सीन को लेकर गंभीर नहीं हैं। कुछ लोगों के लिए कोरोना मजाक है तो कुछ इससे उदासीन हैं। बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें यह तक नहीं पता कि सरकार मुफ्त वैक्सीनेशन करवा रही है। फिलहाल यहां सरकारी तौर पर भी वैक्सीन अवेयरनेस के लिए कुछ होता नहीं दिखता। लोग बताते हैं कि यहां न तो कोई कैंप लगा और न कोई हमें कुछ बताने आया। भाजपा नेता और रीता फाउंडेशन नाम से एक एनजीओ चलाने वाली रीता निलेश सिंह भी जागरूकता की कमी की बात को मानती हैं। उनके एनजीओ ने मुंबई के पठानवाड़ी इलाके में कैंप लगवाकर वैक्सीनेशन करवाया है। एनजीओ अब तक 240 लोगों को वैक्सीन लगवा चुका है।
हां, एक वर्ग ऐसा भी है जो वैक्सीन के प्रति जागरूक है, लेकिन उसके मन में यह सवाल है कि रमजान में वैक्सीन लगवानी चाहिए या नहीं? उबेज खान कहते हैं, ‘वैक्सीन अभी मेरे घर में किसी ने नहीं लगवाई है। लेकिन ये जरूरी है। फिलहाल तो रमजान चल रहा है, रमजान के बाद देखेंगे।’ लेकिन वैक्सीन तो लगवा सकते हैं रमजान में भी, यह तो दवा है? इसके जवाब में उबेज हिचकते हुए कहते हैं कि ‘नहीं रमजान में कोई दवा शरीर के अंदर नहीं ले सकते।’
लेकिन, रहमान शेख इस मामले में ज्यादा जागरूक नजर आते हैं। वे कहते हैं, ‘मेरी उम्र 32 साल है। जैसे ही मेरी उम्र के लोगों को वैक्सीन लगनी शुरू होगी मैं लगवा लूंगा।’ बहुत सारे लोग रोजे के चलते फिलहाल वैक्सीन लगवाने से बच रहे हैं, इस सवाल पर रहमान कहते हैं, ‘ये जागरूकता की कमी है। मेरे अम्मी-अब्बा दोनों वैक्सीन का एक डोज लगवा चुके हैं और रोजे भी रख रहे हैं। अगर दूसरी डोज का नंबर रमजान में आ गया तो भी वैक्सीन लगवाएंगे।’
वे आगे कहते हैं, ‘इन इलाकों में सरकार की तरफ से भी कोई कोरोना और वैक्सीन के बारे में बताने नहीं आया। लोगों के दिमाग में गलतफहमियां हैं, उसे दूर नहीं किया गया। इसलिए ये लोग कतराते हैं। दूसरा एजुकेशन और अवेयरनेस की कमी तो है ही।’
रात भर भिंडी बाजार और डोंगरी घूमते-घूमते सुबह हो जाती है। पास की मस्जिद से सहरी के वक्त के ऐलान के साथ कहा जाता है कि रोजे की नीयत कर लें। लोग जल्दी से सारे काम छोड़ सहरी की तैयारियों में जुट जाते हैं।
धार्मिक-सांस्कृतिक अपीलों का असर काफी गहरा होता है। अगर इन इलाकों में सरकारी जागरूकता कार्यक्रमों के साथ इस्लामिक धर्मगुरु भी वैक्सीनेशन और मास्क की जरूरत की अपील करें तो इसका ज्यादा असर होगा।