Tuesday, September 23

स्वाभिमान की लड़ाई, इस्तीफे तक आई

भोपाल। यहां उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफा ने राजनैतिक विश्लेषकों को भी अचंभित कर दिया है। जहां एक ओर विपक्ष भी नहीं समझ पा रहा कि अचानक ऐसी कौन सी घटना घटी जिससे उपराष्ट्रपति को इस्तीफा देने की नौबत आ पहुंची। जिस तरह से कारण बताया जा रहा है वह कारण  इस घटना से कहीं से भी मेल नहीं खा रहा है। आपको ज्ञात होगा विगत तीन माह पूर्व धनखड़ जी के आश्वस्त होने पर डाक्टर ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी। पर तीन महीने गुजर जाने के बाद जब संसद का वर्षाकालीन सत्र शुरू हो गया था तो इस्तीफा या तो उसके पूर्व में देना था या सत्र समाप्त होने के बाद। धनखड़ जी द्वारा राज्य सभा की कार्यवाही दिनभर चलाने के बाद अचानक रात में अपना इस्तीफा राष्ट्रपति महोदय के पास भेज देते हैं। इतना ही नहीं साथ में एक्स पोस्ट पर भी लिखते हैं कि प्रधानमंत्री जी का सहयोग मुझे मिलता रहा है। राजनैतिक दुनिया में कब क्या हो जाये, कोई नहीं समझ सकता।

एक पूर्व की घटना पर दिखाई थी कड़ी प्रतिक्रिया

जब कारण खोजे जा रहे हैं तो प्रथम दृष्टया जज कांड को लेकर दिखाई दे रहा है जिसमें 15 करोड़ रूपये जले हुये वर्मा जज साहब के निवास पर मिले थे, उस घटना को लेकर उपराष्ट्रपति महोदय ने कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई थी। इतना ही नहीं समय समय पर धनखड़ साहब इस मुददे को उठाते रहे हैं। जैसा कि आप लोगों को पता है कि संसद के दोनों सदनों में जज महोदय के खिलाफ महाभियोग लाया जा रहा है, बस इसी महाभियोग की कड़ी उपराष्ट्रपति महोदय की ओर इस्तीफे की ओर इशारा कर रही है। लोकसभा में करीब डेढ़ सांसदों में महाधिवक्ता वर्माजी के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रस्ताव पेश किया। उधर राज्य सभा में भी 50 सांसदों ने भी राज्य सभा में महाभियोग के लिये प्रस्ताव पेश किया। मजेदार बात यह रही कि उन 50 सांसदों में सारे के सारे कांग्रेस पार्टी के सांसद थे और उस प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति महोदय ने जो राज्यसभा के सभापति हैं उन्होंने स्वीकार कर लिया था। अब यहां जो समस्या दिखाई दे रही है वह यह थी कि इसमें भाजपा का एक भी सांसद नहीं था इसलिये आनन फानन में भाजपा द्वारा एक बैठक बुलाकर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया और दूसरी ओर लोकसभा में भी उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। यहां देखने वाली बात यह थी जैसा कि कहा जाता है कि सदन के दोनों सदनों में से सबसे पहले जिस सदन में प्रस्ताव आता है कमेटी बनाने का अधिकार उसी को होता है। बस यहीं से प्रतिष्ठा की जो लड़ाई थी वो दिखाई देने लगी है लोकसभा की ओर से यदि समिति बनाई जाती है तो उसका नेतृत्व लोकसभा स्पीकर करेंगे और राज्यसभा की ओर से भी बनाई जाती तो राज्य सभा के सभापति की देखरेख में बनाई जाती। मूल समस्या प्रतिष्ठा की दिखाई दे रही है। ऐसा लगता है कि इसी बात को लेकर धनखड़ साहब कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गये और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अभी तो यह सब अटकलें हैं सच्चाई आना अभी बाकि है। पर जिस तरह से घटनाक्रम घटा है वह बहुत कुछ इशारा कर रहा है। अब देखना यह होगा कि अगला उपराष्ट्रपति कौन बनता है और धनखड़ साहब को आगे की क्या जिम्मेदार मिलती है। तब तक विपक्ष सहित राजनैतिक विशलेषकों के लिये यह मुद्दा बना रहेगा।